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Swami Vivekananda: मुसीबत में फंसने पर पहली बार विवेकानंद ने पहना था ये अंग्रेजी कोट

स्वामी विवेकानंद को भीषण ठंड में विदेश में मालगाड़ी में कई रातें गुजारनी पड़ी थीं। ये एकमात्र मौका था, जब वह अंग्रेजी कोट पहने नजर आए थे। इसकी भी कहानी बेहद दिलचस्प है।

By Amit SinghEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 04:32 PM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 06:31 PM (IST)
Swami Vivekananda: मुसीबत में फंसने पर पहली बार विवेकानंद ने पहना था ये अंग्रेजी कोट
Swami Vivekananda: मुसीबत में फंसने पर पहली बार विवेकानंद ने पहना था ये अंग्रेजी कोट

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। स्वामी विवेकानंद ने 125 साल पहले 1893 में शिकागों के विश्वधर्म सम्मेलन में जो भाषण दिया था, वो ऐतिहासिक बन गया। इसका अंदाजा खुद विवेकानंद को भी नहीं था। हालांकि, इस पल के लिए उन्हें शिकागों में उन परेशानियों का सामना करना पड़ा था, जिसका कल्पना भी नहीं की जा सकती। विवेकानंद ने खुद लिखा था कि सम्मेलन से पहले एक क्षण ऐसा आया था, जब उनका मन हुआ कि सब कुछ छोड़छाड़ कर भारत वापस लौट जाएं।

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विवेकानंद ने इस पल का जिक्र करते हुए लिखा है कि जब उनके मन में भारत वापसी का ख्याल आया, तभी उनके जेहन में ये बात भी उठी कि उनके पास दुनिया के सामने भारत को पक्ष रखने का एक सुनहरा अवसर है। अगर वह लौट आते हैं तो, ये मौका उनके हाथ से निकल जाएगा। भारत के उनके शिष्यों और उनके चाहने वालों ने बहुत भरोसा कर उन्हें शिकागो भेजा था। लिहाजा विवेकानंद ने तय किया कि भले परेशानियां उनके प्राण निकाल दे, लेकिन वह अपने इरादों से पीछे नहीं हटेंगे।

शिकागो भाषण में ओवर कोट पहनने का राज
स्वामी विवेकानंद जब विश्वधर्म सम्मेलन में शामिल होने शिकागो पहुंचे, वहां कड़ाके की ठंड थी। विवेकानंद को उनके शिष्यों और मित्रों ने मुंबई से रवाना होने से पहले कुछ गर्म कपड़े दिए थे, लेकिन वो पर्याप्त नहीं थे। उन गर्म कपड़ों से शिकागो की सर्दी का सामना नहीं किया जा सकता था। लिहाजा विवेकानंद की हड्डियां तक जम गईं थीं। उन्होंने अपने एक पत्र में लिखा था ‘मैं हड्डियों तक जम गया था। शायद मेरे दोस्तों को नॉर्थवेस्ट अमेरिका की कड़ाके की ठंड का अनुमान नहीं था।’ इसके बाद उन्होंने बड़ी मुश्किलों से कुछ लोगों की मदद से अपने लिए एक अंग्रेजी कोट (ओवर कोट) का इंतजाम किया था। शिकागो में भाषण के दौरान उन्होंने यही अंग्रेजी कोट पहना था।

विदेश में पैसे खत्म होने पर मालगाड़ी में बिताई थी रात
विश्वधर्म सम्मेलन में शामिल होने के लिए स्वामी विवेकानंद गलती से पांच सप्ताह पहले ही शिकागो पहुंच गए थे। उनका जहाज 25 जुलाई 1893 को शिकागो पहुंचा था। वहां कड़ाके की सर्दी थी और शहर काफी महंगा था। ऐसे में विवेकानंद के पास खर्चों के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। उनके पैसे तेजी से खत्म हो रहे थे। ऐसे में कड़ाके की सर्दी में जान बचाने के लिए उन्हें शिकागों में कई रातें यार्ड में खड़ी खाली मालगाड़ियों में सोकर गुजारनी पड़ी थीं।

गेरुआ वस्त्र ने डाला दिया था मुसीबत में
विवेकानंद भारतीय परिधान के तौर पर केवल गेरुआ वस्त्र धारण करते थे। यही ड्रेस पहनकर वह शिकागो भी चले गए थे। उन्होंने लिखा है ‘साथ लाई अजीब सी चीजों का बोझ लेकर मैं कहां जाऊं, कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर मेरी अजीब से वेशभूषा, जिसे देखकर बच्चे मेरे पीछे भी दौड़ पड़ते थे।’ उन्हें कई बार उनके वस्त्रों की वजह से भिखारी, चोर और डाकू तक समझ लिया गया था। इन सबके बावजूद विवेकानंद ने हिम्मत नहीं हारी और विश्वधर्म सम्मेलन में मजबूती से भारत का पक्ष रखा था।

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