संवादीः चुनौतियों के बीच बनी रहेगी टीवी की 'खुराक'
टीवी के शुरुआती दौर में साहित्य को खूब जगह मिली, लेकिन वक्त ने फिर उसे उतनी ही दूर कर दिया। दर्शकों का चाव बदला तो कहानियां और संवाद बदलते चले गए।
लखनऊ (आलोक मिश्र )। टेलीविजन की दुनिया अलग है। टीवी सीरियल के शुरुआती दौर में साहित्य को खूब जगह तो मिली, लेकिन वक्त के मिजाज ने फिर उसे उतनी ही दूर भी कर दिया। दर्शकों का चाव बदला तो कहानियां और उनके संवाद भी बदलते चले गए। बाजार ने टीवी की दुनिया पर कुछ ऐसा शिकंजा कसा कि सीरियल लंबे होते चले गए। टीआरपी ने कहानियां व मुद्दे भी तय करना शुरू कर दिए।डिजिटल मीडिया ने नई चुनौतियां भी खड़ी कीं, लेकिन दर्शकों में टीवी सीरियल के क्रेज व अच्छे साहित्य की मांग अब भी बरकरार है।
संवादीः कविता से न निजाम बदलता है, न प्रेमिका मानती है..
छोटे परदे पर साहित्य के लिए जगह को लेकर लेखक रामकुमार सिंह ने ससुराल गेंदा फूल टीवी सीरियल के निर्देशक जामा हबीब, बहुचर्चित सीरियल सरस्वतीचंद्र के निर्देशक अरविंद बब्बल व कथाकार ऋषिकेश सुलभ के सामने कई मौजूद सवाल खड़े किए। अरविंद बब्बल ने स्वीकार किया कि टीआरपी को देखकर कहानियों के चयन किया जाने लगा। ब्राडकास्ट के दबाव व महंगे सेट के चलते सीरियल लंबे होते चले गए। उन्होंने टीवी के बढ़ते चलन के साथ काम के दबाव को भी रखा। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद साहित्य के लिए अब भी टीवी में स्थान है। कथाकार ऋषिकेश ने कहा कि एक साक्षात्कार में मशहूर फिल्मकार श्याम बेनेगल ने कहा था कि वह चाहते हैं कि उनकी फिल्में साहित्य तक पहुंचे। उन्होंने कि टीवी दर्शक अच्छे संवाद व कहानी वाले सीरियल देखना चाहते हैं, लेकिन बाजार के बढ़ते दबाव ने निर्माता-निर्देशकों के हाथ रोक दिए हैं। उन्होंने कहा कि अर्थतंत्र व बाजार की गुलामी ने ही दर्शकों में घटिया देखने की प्रवृत्ति पैदा की है। निर्देशक जामा हबीब ने इस बदलते माहौल में सबकी जिम्मेदारी की बात को प्रमुखता से रखा। उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया के बढ़ते चलन से टीवी को अभी कोई खतरा नहीं है। युवा वर्ग को हटा दें तो बड़े वर्ग में घर की महिलाओं के लिए टीवी रोजाना की जरूरत है। वक्त के साथ कहानी की उम्र जरूर बढ़ गई है।
कविता और साहित्य से लोगों को कनेक्ट करने की जरूरत
पहले 13, 26 व 52 एपिसोड के सीरियल थे, जो लंबे होते चले गए। गांवों से लेकर मुंबई जैसे महानगर में महिलाएं व बुजुर्ग अपनी पसंद के सीरियल व प्रोग्राम को देखते हैं। टीवी सीरियल के साप्ताहिक से डेली होने पर प्रभाव जरूर पड़ा है, लेकिन उसे बदला जा सकता है। टीवी सीरियल में अच्छी कहानी व साहित्य की गुंजाइश भी हमेशा बनी रहेगी। टीवी पर नए दौर के साहित्य लेखन व कहानियों को लेकर भी चर्चा हुई। निर्देशक अरविंद बब्बल ने कहा कि पुराने साहित्य पर सीरियल बनाने में उस दौर की कहानी को वर्तमान परिवेश में ढालना और उस काल के अनुरूप दिखाना बड़ी चुनौती होता है। ऐसे में कई बार कहानी का वास्तविक स्वरूप तक बदल जाता है। नए दौर के अच्छे साहित्य व कहानियों पर सीरियल जरूर बनने चाहिए। उन्होंने कहा कि जरूर इस बात की भी है कि अब कहानी व संवाद सच के करीब हों। तभी युवा वर्ग को डिजिटल मीडिया की चुनौती के बीच टीवी से जोड़े रखा जा सकता है।