आतंकी सैफुल्लाह के पिता बोले, नई पीढ़ी को भटकने से बचाएं माता-पिता
देशद्रोही बेटे का शव लेने से इन्कार कर मिसाल बने सरताज कहते हैं कि मैं गुजारिश करना चाहता हूं। कि मेरे ऊपर बीती इस घटना से दूसरे मां-बाप सबक लें और आतंकवाद के खिलाफ खड़े हों।
कानपुर (जेएनएऩ)। 'मेरा दर्द कोई नहीं समझ सकता। लखनऊ में मुठभेड़ में मारे गए आतंकी सैफुल्लाह के पिता के इन शब्दों को उनके हाव-भाव भी बयां करते हैं। बेटे को खो दिया। घर के बाहर मजमा भी है, लेकिन वहां जुटे लोग हमदर्द नहीं। वह तो आतंकी का घर, आतंकी के बाप को देखने आ रहे हैं। यही उनका असल दर्द है। देशद्रोही बेटे का शव लेने से इन्कार कर मिसाल बने सरताज कहते हैं कि मैंने बेटा खोया, लेकिन आंख में आंसू नहीं हैं। अब सिर्फ एक गुजारिश करना चाहता हूं कि मेरी ऊपर बीती इस घटना से दूसरे मां-बाप सबक लें और आतंकवाद के खिलाफ खड़े हों। प्रस्तुत हैं सैफुल्लाह के पिता सरताज की 'जागरण से हुई बातचीत के मुख्य अंश -
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- जब लखनऊ में मुठभेड़ चल रही थी, तब आपको पता था कि वह आपका बेटा है?
सरताज- मैं शाम लगभग पौने छह बजे टेनरी से नौकरी करके घर लौटा तो बहू ने बताया कि
सैफुल्लाह ने ये किया है और मुठभेड़ चल रही है। इतने में नमाज का वक्त हो
गया तो मैं नमाज पढऩे चला गया।
- मुठभेड़ के दौरान आपके पास लखनऊ से फोन आया था कि अपने बेटे को सरेंडर
के लिए समझाइए?
सरताज - मेरे बड़े बेटे खालिद के पास किसी अधिकारी का फोन आया था। उसने कहा कि
वहां तक मोबाइल पहुंचा दो, मैं समझाने की कोशिश करता हूं। फोन तो पहुंच गया,
लेकिन उस तरफ से सिर्फ गोलियों की आवाज आ रही थी। उससे बात नहीं हो पाई।
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- क्या आपको सैफुल्लाह के रवैये से कभी नहीं लगा कि वह गलत रास्ते पर चल पड़ा
है?
सरताज- वह काम धंधा नहीं करता था, इसलिए मैं डांटता था। दो-ढाई महीने पहले घर
छोड़कर मुंबई चला गया। वहां पता नहीं कैसे और किसके बहकावे में आ गया।
- आप एक पिता हैं। क्या आपने जानने की भी कोशिश नहीं की कि वह क्या कर
रहा है? जेबखर्च कहां से चल रहा है?
- मैं तो इसी उम्मीद में था कि खाली जेब कब तक भटकेगा। कुछ दिन ठोकर
खाकर लौट आएगा।
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- यहां साथ रहते वक्त कभी उसके पास कोई अजीब चीज देखी क्या?
- ऐसा खास तो कुछ नहीं। उसके पास सिर्फ एक ऐसा मोबाइल था, जिसमें सिर्फ
बटन थे, स्क्रीन नहीं। वह उसी से बात करता था। वह क्या था, ये नहीं पता।
- आतंकी पाए जाने पर आपने बेटे का शव लेने से इन्कार कर मिसाल पेश की है।
क्या इस फैसले में परिवार साथ था?
सरताज- बाप होने के नाते कौन पिता नहीं चाहेगा कि वह अनहोनी होने पर बेटे का
अंतिम संस्कार भी करे। मगर, मेरे घर में आतंकवादी के लिए कोई जगह नहीं। मेरे
फैसले में पूरे परिवार ने साथ दिया।
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- सैफुल्लाह से आखिरी बार आपकी बात कब हुई थी?
सरताज - मौत से एक दिन पहले उसका फोन आया था। कह रहा था कि मेरा वीजा बन गया
है। जल्द ही मैं सउदी जा रहा हूं।
- धर्म के नाम पर यूं नई पीढ़ी को भटकाया जा रहा है। इस पर क्या कहेंगे?
सरताज- आतंक का कोई मजहब नहीं होता। ये बच्चे क्या जानें कि देश की आजादी में
हमारे पुरखों ने क्या कुर्बानी दी। जरूरत है कि माता-पिता अपने बच्चों पर सख्त नजर
रखें। खास तौर पर देखें कि वह किसके संपर्क में हैं, किससे बात कर रहे हैं।
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- आइएस दावा कर रहा है कि हम भारत में पहुंच चुके। आपको क्या लगता है?
सरताज - धर्म-मजहब छोड़कर सबको आतंक के खिलाफ खड़ा होना होगा। कोई अपना भी
इसमें शामिल पाया जाए तो उसके खिलाफ भी लड़ें।