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    बहुत गहरे हैं नमक सत्याग्रह के ऐतिहासिक संदर्भ, कैसे मुट्ठी भर नमक ने गला दी अंग्रेजी हुकूमत, पढ़िये- ये खास आलेख

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Sun, 06 Mar 2022 11:58 AM (IST)

    बहुत कम ही लोगों को अंदाजा था कि 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से निकले महात्मा गांधी के कदम स्वाधीनता संग्राम की यादगार घटना को जन्म देंगे। ऐसा आंदोलन जो भारतीयों की नजर में आत्मसम्मान और अंग्रेजों की नजर में अवज्ञा था।

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    महात्मा गांधी के नम सत्याग्रह की खास संदर्भ।

    सागर किनारे सत्याग्रह का वह आंदोलन वस्तुत: स्वावलंबन के अभियान का शंखनाद था। यह वह समुद्र मंथन था, जहां साध्य सीप में छुपा मोती नहीं, अपितु स्वाधीनता की देवी का अभिषेक करने के लिए अपने हाथों से तैयार नमक था। वह नमक जिसे बनाना अंग्रेजों की नजर में अवज्ञा था और भारतीयों की नजर में आत्मसम्मान। डा. मनोज कुमार राय का आलेख...

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    62वर्ष की उम्र में 78 साथियों के साथ 12 मार्च, 1930 को साबरमती आश्रम से निकले महात्मा गांधी के कदम स्वाधीनता संग्राम के दौरान एक ऐसी यादगार घटना को जन्म देंगे, इसका अनुमान कम लोगों को था। हालांकि गांधी जी जानते थे कि भारी से भारी जोखिम उठाए बिना सत्य की कभी जीत नहीं हुई। नमक सत्याग्रह 1882 के नमक अधिनियम से अंग्रेजों को नमक बनाने और बिक्री के लिए प्राप्त एकाधिकार के खिलाफ जन प्रतिरोध था। गांधी जी ने यह एकाधिकार छह अप्रैल, 1930 को समुद्र के किनारे एक मुट्ठी नमक उठाकर तोड़ दिया था। ऊपरी तौर पर तो यह बड़ा सरल दिखता है, लेकिन असल में यह था ठीक विपरीत। गांधी जी का यह कदम इतना सरल होता तो सुदूर बिहार में श्रीकृष्ण सिंह जैसे स्वाधीनता सेनानी खौलते कड़ाहे को अपने हाथ से कभी न पकड़ते। प्रसंग ये है कि जब गांधी जी नमक कानून तोड़ रहे थे तो बिहार में श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में भी प्रतीकात्मक रूप से पानी को गर्म करके नमक बनाया जा रहा था। अंग्रेजों ने जब खौलते पानी के कड़ाहे पलटाने की कोशिश की तो श्रीकृष्ण सिंह ने उसको पकड़ लिया, जिसमें वो जख्मी भी हुए थे।

    नमक सत्याग्रह के ऐतिहासिक संदर्भ बहुत गहरे हैं। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में स्वराज को पूर्ण लक्ष्य घोषित करते हुए सत्याग्रह अथवा सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की अनुमति प्रदान की गई थी। चूंकि कांग्रेस उस वक्त तक किसी खास कार्यक्रम की योजना नहीं बना पाई थी अंत: वह गांधी जी के सहारे थी। गांधी जी कार्ययोजना की तलाश में साबरमती आश्रम लौटे। फरवरी मध्य में उन्हें इसकी एक झलक दिखाई दी।

    सरदार की राह पर

    गांधी जी का व्यक्तित्व जितना सरल था, उतना ही जटिल भी था। इसलिए अंग्रेजों को उनके बारे में ठीक-ठीक अनुमान लगाना सदैव कठिन होता था। दांडी अभियान में भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब गांधी जी दांडी अभियान के लिए जगह और तरीके की कल्पना कर रहे थे, तब उनके दिमाग में दो वर्ष पहले का बारदोली सत्याग्रह उमड़-घुमड़ रहा था, जिसमें उन्होंने सत्य और अहिंसा की विजय को प्रतिष्ठित होते हुए देखा था और जिसे रवींद्रनाथ टैगोर ने ‘नवीन महाभारत’ की संज्ञा से नवाजा था। बारदोली सत्याग्रह अनुशासन, त्याग और नेतृत्व की त्रिवेणी के रूप में सामने आया था, जिसने भारत के भविष्य के सरदार यानी वल्लभ भाई पटेल को पेश किया। 27 फरवरी के पहले तक गांधी जी ने अपनी वैचारिक स्थिति को सार्वजनिक नहीं किया था। नमक को लेकर पहली बार उन्होंने अपना विचार प्रकट करते हुए बताया कि हवा और पानी के बाद नमक ही जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। नमक कर की आलोचना करते हुए इसे अमानवीय और ब्रिटिश राज को धिक्कार योग्य कहा। इस आलेख में उन्होंने एक शोधार्थी की तरह नमक कर के इतिहास के बहाने जनता के चौतरफा शोषण को भी सामने रखा और एक सप्ताह के भीतर प्रार्थना सभा में उन्होंने इसकी घोषणा भी कर दी।

    अहिंसा का अस्त्र

    एक सवाल यहां जरूर उठता है कि गांधी जी के दिमाग में अभियान का मूल विचार कहां से प्रकट हुआ! इसके लिए हमें दक्षिण अफ्रीका की ओर मुड़ना होगा, जब 17 वर्ष पूर्व ट्रांसवाल में गांधी जी ने एक अभियान का नेतृत्व किया था। इसका उद्देश्य था- दमनकारी कानून का विरोध और भारतीय समुदाय का सम्मान। यहां भी गांधी जी ने अहिंसा की शक्ति का प्रयोग किया था और वहां के मुख्य प्रतिद्वंद्वी जनरल स्मट्स के हृदय में जगह भी बनाई। बीते 13 वर्ष में गांधी जी ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे और तदनुरूप अभियान को और धारदार बनाते चले गए।

    अनुशासन का मंत्र

    एक चीज की ओर हमारा ध्यान जाना चाहिए कि कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में राजनीतिक हिंसा की वकालत करने वाले भी थे। गांधी जी इस विचार से 1908 से ही संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने कांग्रेस को मना तो लिया था, लेकिन वे एक अहिंसक समूह तैयार करना चाहते थे जो इसे सिद्धांत के रूप में अपनाए। इसके लिए उन्होंने हर तबके से लोगों का चयन तो किया मगर कहा कि आंदोलन केवल आश्रम के अंतेवासियों और उन लोगों द्वारा आरंभ किया जाना चाहिए जो आश्रम के अनुशासन को मानते हैं और इसे आत्मसात कर चुके हैं। संदेश साफ था ‘अहिंसा की सक्रिय शक्ति में जीवंत विश्वास।’

    हर पहलू पर नजर

    आंदोलन की तैयारी की अद्भुत कला महात्मा गांधी के पास थी। दांडी अभियान इसका अप्रतिम उदाहरण है। रास्ता तय करने के पूर्व पहले के संबंध, आंकड़े, मौसम का ध्यान, सेवा के लिए तत्पर समूह की योग्यता की जांच आदि पर महात्मा गांधी ने नजर रखी और समाचारपत्रों के माध्यम से लोगों तक इस बारे में जानकारी पहुंचाई। यह सब करने के बाद गांधी जी ने इरविन को पत्र लिखकर इस आंदोलन को शुरू करने के पीछे के तर्क को रखा और समझौते के रास्ते का भी निमंत्रण दिया। अंग्रेजी राज को अभिशाप कहने के पीछे के कारणों का उल्लेख करते हुए उन्होंने भारत दुर्दशा की तस्वीर रखते हुए हृदय परिवर्तन की आकांक्षा की थी, लेकिन जैसी आशंका थी वायसराय लार्ड इरविन सहित ब्रिटिश सरकार ने नमक कर के खिलाफ अभियान की संभावना को बहुत गंभीरता से नहीं लिया।

    दुनिया भर का खींचा ध्यान

    महात्मा गांधी मीडिया की ताकत से बखूबी वाकिफ थे। उन्होंने इस अभियान में इसका ठीक से सदुपयोग किया। परिणाम यह हुआ कि देसी-विदेशी सभी मीडिया ने इस अभियान को कवर करने के लिए अपने-अपने प्रतिनिधियों को भेजा। दांडी अभियान को सभी अखबारों ने प्रथम पृष्ठ पर जगह दी। एक अमेरिकी प्रतिनिधि ने तो अभियान की पूर्व संध्या पर पहुंचकर उस शानदार दृश्य को अपनी कूंची से रंग भरा। राजनीति में प्रतीकों का प्रयोग और उससे जनता के भीतर समस्या की समझ को बैठा देने की कला का यह सर्वोत्कृष्ट प्रयोग था। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया और विश्व के नेताओं का ध्यान आकर्षित करने वाला यह अभियान वास्तव में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

    चल पड़े कोटि पग उसी ओर

    अभियान की पूर्व संध्या पर अहमदाबाद में जबरदस्त उत्साह था। साबरमती आश्रम के आस-पास भारी भीड़ जमा हो गई और रातभर रुकी रही। महात्मा गांधी ने उस रात जवाहर लाल नेहरू को पत्र लिखकर उनकी गिरफ्तारी की अफवाहों के बारे में बताया। सुबह प्रतिदिन की तरह भजन-प्रार्थना का कार्यक्रम हुआ। कस्तूरबा ने तिलक और खादी की माला से गांधी का स्वागत किया। तत्पश्चात गांधी जी ने भीड़ को संबोधित किया। गांधी जी के सहयोगी महादेव देसाई ने इस दृश्य की तुलना राम वन गमन और बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के महाभियान से की है। इसके बाद महात्मा गांधी आश्रम से बाहर निकले और कहा कि स्वराज ही इसकी एकमात्र दवा है और मेरे पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। दांडी अभियान ने संपूर्ण भारत में एक अभूतपूर्व जोश पैदा कर दिया था। अखबारों ने विस्तार से इस अभियान के पल-पल को खबर के रूप में प्रस्तुत करते हुए बताया कि कैसे हर पड़ाव पर उत्साही अनुयायियों द्वारा गांधी का स्वागत किया गया। अमीर और गरीब, हर वर्ग गांधी का सम्मान करने में एक-दूसरे के साथ हो लिया था।

    एक मुट्ठी विद्रोह

    पांच अप्रैल को गांधी जी दांडी पहुंचे। अगले दिन सुबह-सुबह उन्होंने प्रार्थना सभा में उपस्थित भीड़ को संबोधित किया और एक बार फिर उनकी प्रेरक भाषा और मर्मस्पर्शी बातें लोगों के हृदय को छू गईं। उन्होंने कहा था- ‘पिछले 24 दिनों से हमारा गंतव्य दांडी था। इसका चुनाव मनुष्य का नहीं ईश्वर का किया हुआ है, लेकिन अंत में तो हमें स्वतंत्रता देवी के धाम तक पहुंचना है।’

    फिर महात्मा गांधी साथियों के साथ समुद्र की ओर बढ़े, जहां उन्होंने एक छोटे से गड्ढे में पड़े प्राकृतिक नमक के ढेरों को उठाया और कहा ‘इसी के साथ मैं ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला रहा हूं।’ उन्होंने लोगों का आह्वान करते हुए कहा, ‘अब जब नमक कानून का तकनीकी या औपचारिक उल्लंघन किया गया है, तो यह किसी के लिए भी खुला है जो नमक कानून के तहत मुकदमा चलाने का जोखिम उठा सकता है। जहां वह चाहता है और जहां भी यह सुविधाजनक हो। मेरी सलाह है कि मजदूरों को हर जगह नमक का निर्माण करना चाहिए और इसका इस्तेमाल करने के लिए ग्रामीणों को निर्देश देना चाहिए।’ दांडी अभियान वस्तुत: भीरु भारतीय जनता में अदम्य शौर्य और स्वाभिमान का संचार करने वाला अभियान था, जिसका अंतिम लक्ष्य स्वराज्य की देवी का साक्षात्कार था। - (लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग में प्राध्यापक हैं)