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राजनीतिक नहीं, सांप्रदायिक है कश्मीर की समस्या : मेजर जनरल बख्शी

सीमा पर जवान शहीद हो रहे हैं। पत्थरबाजों के हौसले बढ़ते जा रहे हैं और पाकिस्तान की भी नापाक हरकतें जारी हैं। हर कोई चाहता है कि देश के दुश्मनों को करारा जवाब मिले।

By Edited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 01:57 AM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 08:28 PM (IST)
राजनीतिक नहीं, सांप्रदायिक है कश्मीर की समस्या : मेजर जनरल बख्शी
कानपुर (जागरण संवाददाता)।सीमा पर जवान शहीद हो रहे हैं। पत्थरबाजों के हौसले बढ़ते जा रहे हैं और पाकिस्तान की भी नापाक हरकतें जारी हैं। हर कोई चाहता है कि देश के दुश्मनों को करारा जवाब मिले। मगर, क्या हैं सीमा पर वास्तविक हालात और कैसे सुधर सकते हैं। इस संबंध में रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख्शी का नजरिया बिल्कुल स्पष्ट है। सन् 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से उन्होंने सैन्य अभियान शुरू किए। इसके बाद कारगिल युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे किए। उन्हें जम्मू कश्मीर में आतंकवाद का सख्ती के साथ खात्मा करने वाले सैन्य अफसर के रूप में भी जाना जाता है। शनिवार को शहर आए मेजर बख्शी ने दैनिक जागरण के गौरव दीक्षित के साथ साझा किए अपने विचार। पेश हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश..
मेजर बख्शी का परिचय
नाम : रिटायर मेजर जनरल गगनदीप बक्शी  
उपलब्धि : कारगिल युद्ध में बेहतर युद्ध संचालन के लिए विशिष्ट सेवा मेडल मिला। जून 1967 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में शामिल हुए।
शिक्षा : एमएससी, एमफिल पीएचडी
प्रश्न: कश्मीर के खराब हो रहे हालात आखिर कैसे सुधरेंगे ?
उत्तर: कश्मीर में समस्या राजनैतिक नहीं बल्कि सांप्रदायिक है। जब तक यहां सूफी संस्कृति रही, कश्मीर धरती का स्वर्ग रहा। अब कश्मीर जेहादियों का अड्डा बन गया है। पाकिस्तान ने पहले भाड़े के आतंकवादी कश्मीर में भेजे, लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो अब पत्थरबाज तैयार कर रहा है। कई राष्ट्रों में पत्थरबाजी पर सख्त कानून हैं, लेकिन यहां पर मुख्यमंत्री रहते महबूबा सरकार पत्थरबाजों को रिहा करती रही। पत्थरबाजों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना होगा।
प्रश्न: पाकिस्तान में इमरान खान की सरकार के बनने के बाद जम्मू एवं कश्मीर के हालात और खराब हुए हैं। अब केंद्र सरकार को क्या करना चाहिए?
उत्तर: इमरान खान पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आइएसआइ के मोहरे हैं। सेना और आइएसआइ भारत विरोधी हैं। ऐसे में इमरान खान से कोई उम्मीद करना बेकार है। फिलहाल वेट एंड वॉच की नीति सबसे बेहतर है।
प्रश्न: सीमा पर घुसपैठ क्यों नहीं रुक रही है?
उत्तर: यह गलत धारणा फैलाई जा रही है कि सीमा पर घुसपैठ रुक नहीं रही। जब मैं कश्मीर में तैनात था, उस वक्त वहां चार हजार हथियारबंद आतंकवादी थे और अब उनकी संख्या घटकर 250 रह गई है।
प्रश्न: सीमा पर सैनिकों की हत्याएं रुक नहीं रही। शहीद सैनिकों के शवों के साथ बर्बरता हो रही है। सरकार को क्या करना चाहिए कि शहादत रुके ?
उत्तर: यह दुखद है। नोबेल पुरस्कार की चाहत में हमारे राजनीतिज्ञ बार-बार वार्ता की दुहाई देते हैं। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने ऐसे प्रयासों को पागलपन करार दिया है। हमें यह समझना होगा कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
प्रश्न: क्या अब समय आ गया है कि संसद पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करे? उत्तर: पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने यह प्रस्ताव संसद में रखा था, लेकिन कुछ पार्टियों के विरोध के चलते प्रस्ताव पास नहीं हो सका था। पता नहीं कुछ पार्टियों को पाकिस्तान के नाराज होने का डर क्यों सताता है।
प्रश्न: वन रैंक वन पेंशन के कितने वादे पूरे हुए?
उत्तर: सच कहूं तो 80 से 90 फीसद मांगें पूरी हो चुकी हैं।
प्रश्न: बिम्स्टेक देशों के भारत में हुए सैन्य अभ्यास में नेपाल ने भाग नहीं लिया। क्या नेपाल से संबंध खराब हो रहे हैं?
उत्तर: पूर्ववर्ती सरकारों ने नेपाल में राजतंत्र को समाप्त कर चीन समर्थित माओवाद को बढ़ावा दिया। इसी का दुष्परिणाम है कि नेपाल चीन के खेमे में जा रहा है।
प्रश्न: नेपाल का चीन की ओर झुकाव भारत के लिए कितना नुकसानदेह है?
उत्तर: भारी नुकसान है। नेपाल ही क्यों सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मालदीव और श्रीलंका जैसे देश भी चीन के पाले में जा रहे हैं।
प्रश्न: क्या अमेरिकी धमकियों को नजरंदाज करके भारत को रूस से रक्षा सहयोग बढ़ाना चाहिए?
उत्तर: अमेरिका से दोस्ती से भारत को क्या मिला? , न्यूक्लियर सबमरीन, पांचवीं पीढ़ी के एयरक्राफ्ट और एस-400 मिसाइल क्या अमेरिका देगा? अगर रूस दे रहा है तो हमें रूस की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना होगा।
प्रश्न: विश्व के सैन्य संतुलन में भारत को किसके साथ होना चाहिए? अमेरिका या चीन में किसका साथ मुफीद होगा?
उत्तर: चीन इस समय खतरा नंबर वन है। चीन को रूस का साथ मिल रहा है। ऐसे में अमेरिका से दोस्ती हमारी मजबूरी है। अमेरिका अविश्वसनीय है, इसलिए बेहद जटिल हैं। भारत को चाहिए कि अमेरिका का पिछलग्गू बनकर नहीं बल्कि बराबर का साझीदार बनकर रहे।
प्रश्न: राफेल को लेकर उठ रहे विवाद में आपका क्या मानना है?
उत्तर: राफेल को लेकर उठा विवाद निराशा भरा है। सैन्य दृष्टि से यह सौदा अनिवार्य है। वायुसेना की शक्ति बढ़ाने के लिए यह जरूरी है। सैन्य साजोसामान की खरीदारी में राजनीति हमेशा से नकारात्मक रही है। बोफोर्स को लेकर हौवा खड़ा किया लेकिन बोफोर्स ने ही हमें कारगिल में जीत दिलाई। विवाद अब बंद होना चाहिए।
प्रश्न: सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर उठ रहे सवालों पर आपका क्या कहना है?
उत्तर: बड़ी खुशी हुई थी, लेकिन एक सर्जिकल स्ट्राइक पर्याप्त नहीं है। ऐसी सैंकड़ों सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरतें हैं। अगर एक पर्याप्त होती तो पाक यूं ही हमारे सैनिकों के सिर कलम नहीं करता। पता नहीं सरकार मौन क्यों है।

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