सत्यापन के लिए जेब गर्म करो वरना जमानत के बाद भी नहीं मिलेगी रिहाई Kanpur News
हाईकोर्ट से जमानत मिलने के 22 दिन बाद भी जेल में बंद है दहेज हत्या का आरोपित न्यायालय ने तलब की रिपोर्ट।
कानपुर, जेएनएन। किसी भी मामले में जमानत मिलने के बाद आरोपित को जेल से रिहा कर दिया जाता है पर भ्रष्ट सिस्टम में ये इतना आसान नहीं है। यदि आपने जमानत के दस्तावेजों के सत्यापन के लिए चढ़ावा नहीं चढ़ाया तो सलाखों से बाहर आने के लिए और इंतजार करना पड़ सकता है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है, जिसमें हाईकोर्ट से मिली जमानत 22 दिन बाद भी जिंदगी रिश्वत की सलाखों के पीछे छटपटा रही है। रिश्वत नहीं मिलने के कारण पैरोकार बंध पत्र के दस्तावेज सत्यापन के लिए ले ही नहीं गया और रिपोर्ट भी नहीं भेजी। रिहाई न होने पर निजी स्वतंत्रता हनन की अपील दाखिल की गई तो अपर सत्र न्यायाधीश ने कोर्ट लिपिक से रिपोर्ट तलब की है। इसके बाद से खलबली मची हुई है।
छह नवंबर को हाईकोर्ट ने स्वीकार कर ली थी जमानत
नवाबगंज पुराना कानपुर निवासी और पेशे से मजदूर अंशू की पत्नी ने आत्महत्या कर ली थी। सास ज्ञानवती की तहरीर पर पुलिस ने दहेज हत्या और प्रताडऩा का मुकदमा दर्ज कर अंशू को जेल भेजा था। सत्र न्यायालय से जमानत खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में अपील की गई। हाईकोर्ट ने 6 नवंबर 2019 को अंशू की जमानत स्वीकार कर ली। अधिवक्ता कौशल किशोर शर्मा के मुताबिक जमानत स्वीकृति का आदेश न्यायालय में 15 नवंबर को दाखिल हुआ। वहां से एक-एक लाख रुपये के बंधपत्र पर रिहाई के आदेश हो गए। अंशू की मजदूर मां ने किसी तरह एक-एक लाख के बंधपत्र के लिए दो वाहनों की व्यवस्था की और 22 नवंबर को प्रपत्र दाखिल किए।
आरटीओ में बंधपत्रों का नहीं हुआ सत्यापन
अंशू की रिहाई उसी समय हो जानी चाहिए थी लेकिन बंधपत्रों के सत्यापन पर मामला अटक गया। अधिवक्ता ने कहा कि पुलिस के पैरोकार सत्यापन के दस्तावेज ले गए लेकिन आरटीओ के पैरोकार ने रिश्वत नहीं मिलने पर दस्तावेज लेने से इन्कार कर दिया। प्रक्रिया के तहत दो कार्य दिवस तक रिपोर्ट का इंतजार करने के बाद 26 नवंबर को अपर सत्र न्यायाधीश की कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया। न्यायालय ने उसी दिन कार्यालय लिपिक से रिपोर्ट मांगी कि किसकी गलती से रिहाई नहीं हो पाई। इस पर आरटीओ का पैरोकार 26 की शाम को ही सत्यापन के लिए दस्तावेज ले गया लेकिन सत्यापन रिपोर्ट अभी तक नहीं दाखिल की।
इनका ये है कहना
यह अनुच्छेद 14 के तहत निजी स्वतंत्रता का सीधे तौर पर हनन है। बंधपत्रों का सत्यापन कार्य प्रशासनिक है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि बंधपत्र दाखिल करते ही आरोपित की तत्काल रिहाई की जाए। सत्यापन प्रक्रिया अवैध कमाई का साधन बन गई है।
-कौशल किशोर शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता