18 साल संघर्ष के बाद नौकरी की सौगात, प्रदेश के आठ सौ लोगों को मिलेगा लाभ
रेलवे ने 1991 में पार्सल विभाग में बुक होने वाले सामान को मेलवान में चढ़ाने और उतारने वाले हजारों लोगों को हटा दिया था। संयुक्त याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला।
कानपुर (आलोक शर्मा)। नौकरी के लिए 18 वर्षों से रेलवे के खिलाफ कानूनी संघर्ष कर रहे पार्सल कर्मचारियों का इंतजार अब खत्म हुआ है। सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने पार्सल कर्मचारियों को नौकरी देने के लिए रेलवे को आदेश दिया है। हालांकि अभी रेलवे ने अपनी तरफ से स्थिति साफ नहीं की है।
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत शुक्ला के मुताबिक रेलवे ने 1991 में एक मौखिक आदेश के जरिए पार्सल विभाग में कार्यरत ऐसे हजारों लोगों को हटा दिया था। जो बुक होने वाले सामान को मेलवान में चढ़ाने और उतारने के बाद मालगोदाम में सुरक्षित रखवाते थे। कर्मचारियों के आंदोलन पर रेलवे अधिकारी आश्वासन देते रहे। अंतत : कर्मचारियों ने वर्ष 2000 में अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में रिट (याचिका) दाखिल की।
याचिका संख्या 121 और 269 में प्रदेश से दाखिल सभी आइए (इंटरलोकेटरी एप्लीकेशन) को शामिल कर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की। अधिवक्ता ने बताया कि जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस संजय किशन कौल की खंडपीठ ने रेलवे को आदेश दिया है कि क्षेत्रीय लेबर कमिश्नर द्वारा जारी सूची में शामिल कर्मचारियों की नियुक्ति एक माह के भीतर कर ले। यदि नामों को लेकर कोई आपत्ति है तो रेलवे एक माह में दाखिल कर सकता है।
शहर से इन लोगों ने की थी याचिका
ट्रेड यूनियन के महामंत्री अविनाश यादव ने बताया कि दीपक श्रीवास्तव, अनुज श्रीवास्तव, नंद कुमार शर्मा, केशव कटियार, अजय श्रीवास्तव, रामकृष्ण, विनोद कुमार यादव, सतीश कुमार द्विवेदी, रवींद्र कुमार द्विवेदी, अमित श्रीवास्तव समेत चौदह कर्मचारियों ने याचिका दाखिल की थी।
प्रदेश में कहां कितने याची
बरेली से 78, मऊ से 27, गाजीपुर से 48, लखनऊ से 70, रायबरेली से 14, मुरादाबाद से 26, प्रतापगढ़ से 14 और चंदौली से 11 कर्मचारियों ने याचिका दाखिल की थी। इसके साथ ही उन्नाव, सुल्तानपुर, फैजाबाद, जौनपुर, अकबरपुर, बिजनौर, हरदोई, रामपुर, चंदौली समेत अन्य जिलों से भी याचिका दाखिल की गई थी। ट्रेड यूनियन नेता अविनाश बताते हैं कि 116 पेज की सूची में प्रदेश भर से करीब 800 कर्मचारी शामिल हैं। याचिका नंबर 433/98 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से 1998 में देश भर के करीब दो हजार से ज्यादा लोगों को रेलवे में नौकरी मिल चुकी है।