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जौनपुर का चुनाव हुआ दिलचस्प, बाबूसिंह कुशवाहा, जिन्हें अखिलेश यादव ने बनाया है सपा का प्रत्याशी, ऐसा रहा है राजनीतिक सफर

Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) ने रविवार को पीडीए प्रत्याशियों की एक और लिस्ट जारी कर दी है। सपा ने उत्तर प्रदेश में सात और प्रत्याशियों के नाम का एलान किया है। सपा ने फूलपुर से अमरनाथ मौर्य और श्रावस्ती से राम शिरोमणि पर दांव लगाया है। वहीं बाबू सिंह कुशवाह को जौनपुर से प्रत्याशी बनाया गया है।

By Jagran News Edited By: Abhishek Saxena Published: Sun, 14 Apr 2024 02:32 PM (IST)Updated: Sun, 14 Apr 2024 02:32 PM (IST)
Lok Sabha Election 2024; बाबू सिंह कुशवाहा, फाइल तस्वीर।

ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में रविवार को सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सात और सीटों पर उम्मीदवारों का एलान किया। जिसमें जौनपुर से बाबू सिंह कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया गया है। बाबू सिंह कुशवाहा मायावती सरकार में मंत्री थे। हालांकि एक घाेटाले में वे लंबे समय तक जेल में रहे।

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बाबू सिंह कुशवाहा का राजनीतिक सफर

  • बांदा जिले के बबेरू तहसील के पखरौली गांव में एक कृषक परिवार से जुड़े कुशवाहा ने जीवन यापन के लिए अतर्रा में ही लकड़ी का टाल खोलकर जीवन यापन शुरू किया था।
  • वर्ष 1985 में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले बाबू सिंह 17 अप्रैल 1988 को बसपा संस्थापक कांशीराम के संपर्क में आए।
  • कांशीराम ने दिल्ली बुलाया तो सियासी तकदीर आजमाने का ख्वाब लेकर बाबू सिंह दिल्ली गए।
  • कांशीराम ने बसपा कार्यालय का कर्मचारी बना दिया।
  • दिल्ली के बसपा कार्यालय में छह माह भी नहीं बीते होंगे कि उनको प्रोन्नत कर लखनऊ कार्यालय में संगठन का काम करने भेजा गया।
  • 1993 में सपा व बसपा के गठबंधन हुए तो बाबू सिंह को बांदा का जिलाध्यक्ष बनाया गया।
  • मायावती ने उनको बसपा दफ्तर में टेलीफोन ऑपरेटर की जिम्मेदारी सौंपी।
  • 1997 में उनको पहली बार विधान परिषद सदस्य के तौर पर बड़ा इनाम मिला।
  • वर्ष 2003 में बाबू को परिषद में दोबारा भेजा गया।
  • 2003 में तीसरी बार बसपा की सरकार बनी तो कुशवाहा को पंचायती राज मंत्री बनाया गया।
  • 2007 में बसपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई तो बाबू सिंह को खनिज, नियुक्ति, सहकारिता जैसे महत्वपूर्ण विभाग मिले।
  • परिवार कल्याण विभाग बना तो बाबू सिंह को यह विभाग भी सौंपा गया।

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राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के जो करोड़ों रुपये सरकार खर्च नहीं कर पाती थी, उसपर बाबू की नजर गई और फिर बंदरबांट का खेल शुरू हो गया। राजधानी में दो सीएमओ की हत्या और जेल में एक डिप्टी सीएमओ की रहस्यमयी मौत के बाद कुशवाहा और स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्रा ने 17 जुलाई 2011 को इस्तीफा दे दिया। 19 नवंबर को बाबू सिंह ने बगावत कर दी और बसपा ने भी नौ दिन बाद उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

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घाेटाले में था नाम

केन्द्र सरकार की तरफ से उत्तर प्रदेश में एनआरएचएम के तहत 10 हजार करोड़ रुपये दिए गए थे। इस ग्रांट से प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के 133 अस्पतालों के विकास और आरओ लगाने तथा दवाओं की आपूर्ति के नाम पर पांच हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का गोलमाल करने के आरोप की जांच कर रही सीबीआइ ने 2012 में कुशवाहा व अन्य को गिरफ्तार किया था। अस्पतालों में केवल आरओ लगाने में सरकार को 6 करोड़ तीन लाख का नुकसान हुआ था। 


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