जागरण संवाददाता, उरई : मुहल्ला लहरियापुरवा में तेज हवा से कच्चे घर की दीवार व छप्पर ढह जाने से उसमें दबकर महिला और मासूम बच्चों की
मौत की घटना से हर कोई स्तब्ध हैं। सबसे बुरी हालत नूरजहां की है। हादसे में उसकी जान भले ही बच गई लेकिन आंखों के सामने बेटी व नाती और नातिन की मौत होने के सदमे से शायद वह पूरी जिंदगी न उबर पाए।
बेटी के आने से कल तक जो झोपड़ी गुलजार थी आज वहां तबाही का मंजर नजर आ रहा था।
लहरियापुरवा के फकीरन टोला में साबिर झोपड़ी जैसे कच्चे घर में पत्नी नूरजहां के साथ रहता है। मजदूरी कर किसी तरह वह दो वक्त की रोटी जुटा पाता है।
आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के पक्की छत तो दूर की बात लोहे या फिर सीमेंट की चादर भी नहीं रखवा पाया। बारिश के मौसम में छप्पर के नीचे किसी तरह वह गुजारा करता है। गरीबी की इंतहा में होने के बाद भी उसे आवासीय योजना का लाभ नहीं मिला। इन हालातों के बीच भी खुशहाली से वह पत्नी के साथ रहता है।
इस बार ईद पर बेटी सबिया नाती शाहरुख एवं छह माह की नातिन अनाविया को लेकर आई थी, लिहाजा ईद से पहले घर का माहौल गुलजार हो गया। किसी ने सोचा भी नहीं था कि सुबह तक मंजर पूरी तरह से बदल जाएगा। बेटी काफी दिन बाद ससुराल से आई थी लिहाजा ईद से पहले मां नूरजहां ने न सिर्फ बेटी को नए कपड़े खरीदवाए बल्कि नातिन व नाती को भी नए कपड़े और खिलौने दिए।
खाना खाने के बाद देर रात सभी बातें करते रहे, लेकिन नमी की वजह से छप्पर ढह गया।
नूरजहां ने आंखों के सामने बेटी व नाती नातिनों की मौत का मंजर देखा।
पोस्टमार्टम न कराने से उठ रहा सवाल
गंभीर घटना के बाद भी शवों का पोस्टमार्टम नहीं कराया गया है। इससे घटना पर तमाम सवाल खड़े हो रहे हैं। शवों का पोस्टमार्टम नहीं होने से पीड़ित परिवार मुआवजा मिलना भी कठिन है।