आलू उत्पादक किसान की आमदनी अठ्ठनी खर्चा रुपया
आलू की खुदाई के शुरुआती दौर में ही कम कीमत होने के कारण किसानों को अपनी लागत निकालने में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। खेतो में आलू के व्यापारियों के नहीं पहुंचने से किसान आलू कोल्ड स्टोर में जमा करने लगे हैं। पिछले साल आलू की खेती में हुए नुकसान के बाद इस साल भी किसानों को घाटे की चिता सताने लगी है।
संवाद सहयोगी गढ़मुक्तेश्वर : आलू की खुदाई के शुरुआती दौर में ही कम कीमत होने के कारण आलू उत्पादक किसानों निराश हैं। इस कारण उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। दाम कम होने और मांग की कमी के कारण किसान आलू शीतगृहों में रखने लगे हैं। गत वर्ष आलू की फसल में हुए नुकसान के बाद इस वर्ष भी किसानों को घाटे होने की चिता सताने लगी है।
इस समय खेतों से आलू की खुदाई चल रही है। बाजार में फिलहाल आलू का थोक मूल्य 600 से 800 रुपये प्रति क्विटल है। हालांकि मांग कम होने के कारण इन दामों में भी किसान का आलू नहीं बिक पा रहा है। इन दामों में आलू बेचने पर किसान को उसका लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। सिभावली क्षेत्र के गांव फुल्डेहरा निवासी किसान सतवीर सिंह के अनुसार पांच दिन से आलू की खुदाई हो रही है लेकिन अब तक एक भी व्यापारी आलू खरीदने नहीं आया है। आलू का बीज, खाद, पानी, जुताई, बुआई, खुदाई, मजदूरी, बोरे की कीमत, भाड़ा आदि जोड़ने के बाद बाजार में मिल रहे आलू के दाम से लागत भी नहीं निकल पा रहा। इन दामों में आलू बेच कर किसान को लगभग एक हजार से पंद्रह सौ रुपये का प्रति बीघा नुकसान हो रहा है। उन्होंने सरकार से गेहूं और धान की तरह आलू की भी सरकारी खरीद शुरू करने की मांग की। उनका कहना है कि आलू की खेती लगातार कई वर्ष से किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित हो रही है। वर्तमान में उचित दाम नहीं मिलने और भविष्य में दामों में वृद्धि होने की संभावना की आशा में किसान अपना आलू कोल्ड स्टोरेज में रखने को मजबूर हो रहे हैं। आलू उत्पादक किसानों ने प्रदेश सरकार से आलू की सरकारी खरीद शुरू कराने की मांग की है।