Solar Energy: अब सौर ऊर्जा के लिए जरूरी नहीं धूप, ऐसे काम करेगा सोलर प्लांट
गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जेपी पांडेय ने बताया कि जनउपयोगिता को ध्यान में रखकर ही शोध की प्रक्रिया आगे बढ़नी चाहिए। हम इसे लेकर प्रतिबद्ध हैं। खुशी की बात है कि हमारे विश्वविद्यालय के शोधार्थी ऐसा कर रहे हैं।
डा. राकेश राय, गोरखपुर : सौर ऊर्जा के लिए अब सूरज को बादलों से बाहर आने की बाध्यता नहीं होगी। उसकी गर्मी को ही ऊर्जा में बदलकर इस्तेमाल में लिया जा सकेगा। यह संभव होगा मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य डा.प्रशांत सैनी के उस सोलर प्लांट से, जिसमें बादलों के पीछे छिपे सूर्य से भी ऊर्जा प्राप्त कर लेने की क्षमता होगी। यह प्लांट 10 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी को भी सौर ऊर्जा में बदल देगा। यानी इस सोलर प्लांट का इस्तेमाल उन स्थानों पर भी किया जा सकेगा, जहां कई बार पूरे-पूरे दिन धूप नहीं निकलती। मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभागाध्यक्ष प्रो.जीऊत सिंह के मार्गदर्शन में तैयार डा.प्रशांत के सैद्धांतिक प्रारूप से संबंधित शोधपत्र को युनाइटेड किंगडम के अंतरराष्ट्रीय जर्नल एनर्जी कनवर्जन एंड मैनेजमेंट ने भी प्रकाशित किया है।
कंबाइंड कूलिंग, हीटिंग, पावर एंड डिसैलिनेशन नाम के इस प्लांट में सोलर पैनल की जरूरत नहीं होगी। थर्मल आयल भरे इंक्यूबेटेड ट्यूब से बना सोलर कलेक्टर सौर ऊर्जा को एकत्र करेगा। फेज चेंज मैटेरियल टैंक में उसे सुरक्षित करके बिजली से चलने वाले यंत्रों को संचालित किया जा सकेगा। सौर ऊर्जा तैयार करने की इस नई तकनीक के जरिये डा.प्रशांत ने ऐसे सोलर प्लांट का सैद्धांतिक प्रारूप तैयार किया, जिसका इस्तेमाल बिजली बनाने, माहौल को ठंडा या गर्म करने और दूषित जल को पेयजल में परिवर्तित करने में किया जा सकेगा। इस शोध में डा.प्रशांत को आइआइटी बीएचयू के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के आचार्य प्रो.जे. सरकार का भी मार्गदर्शन मिला है। शोध की सैद्धांतिक सफलता से उत्साहित डा.प्रशांत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की आर्थिक मदद से प्लांट को भौतिक रूप देने की तैयारी में हैं।
ऐसे काम करेगा प्रशांत का सोलर प्लांट
डा. प्रशांत के शोध निर्देशक डा.जीऊत सिंह के अनुसार 600 डिग्री सेल्सियस तक क्वथनांक (ब्वायलिंग प्वाइंट) वाले थर्मल आयल से भरे इंक्यूबेटेड ट्यूब से बने सोलर कलेक्टर में सूर्य की उर्जा एकत्र होगी। अगले चरण में वह फेज चेंज मैटेरियल टैंक में जाएगी और उसमें भरे अपेक्षाकृत कम क्वथनांक वाले कार्बनिक द्रव्य (एन ब्यूटेन, एन पेंटेन आदि) को वाष्पीकृत करना शुरू कर देगी। वाष्पीकरण की प्रक्रिया से मिली ऊर्जा टरबाइन को चलाएगी और बिजली निर्माण शुरू हो जाएगा। बिजली बनाने की यह प्रक्रिया दिन में होगी। दिन ढलने के बाद जब सूर्य की ऊर्जा मिलनी बंद हो जाएगी, तो फेज चेंज टैंक में भरा कार्बनिक द्रव्य ठोस में बदलने लगेगा और इस बदलाव से मिली ऊर्जा से बिजली बनने की प्रक्रिया अनवरत जारी रहेगी।
सोलर प्लांट के प्रोजेक्ट पर काम करते डा प्रशांत सैनी
बैट्री के कचरे से मिलेगी निजात
डा.प्रशांत के मुताबिक प्लांट का उद्देश्य गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है। इस प्लांट से बिजली बनाने में प्रति यूनिट 8.50 रुपये का खर्च आएगा। इसमें किसी तरह की बैट्री का इस्तेमाल नहीं हो रहा है, जिससे यह प्लांट पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होगा। प्लांट लगाने की लागत का वास्तविक अनुमान अभी नहीं है।
गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जेपी पांडेय ने बताया कि जनउपयोगिता को ध्यान में रखकर ही शोध की प्रक्रिया आगे बढ़नी चाहिए। हम इसे लेकर प्रतिबद्ध हैं। खुशी की बात है कि हमारे विश्वविद्यालय के शोधार्थी ऐसा कर रहे हैं। गैर परंपरागत ऊर्जा के क्षेत्र में डा.प्रशांत का शोध जनोपयोगी होगा।