सूडान से लौटे नागरिकों का दर्द, आधा पेट खाकर गुजारने पड़े छह दिन, गोलियों की तड़तड़ाहट से थम जाती थीं धड़कनें
सूडान में फंसे भारतीय नागरिकों को आपरेशन कावेरी के तहत देश लाया गया। घर पहुंचते ही गोरखपुर-बस्ती मंडल के नागरिकों ने अपना दर्द बयां किया। कहा कि फैक्ट्री परिसर में खौफ में छह दिन बीते थे। युद्ध में शामिल रहे जवान गन प्वाइंट पर पैसे लूट ले गए।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। रोजी-रोटी की तलाश में वर्षों पहले सूडान गए थे। खारतूम शहर के पास शोभा मालेजी में स्थापित ओमेगा स्टील कंपनी में काम कर रहे थे। वहीं रहने की भी व्यवस्था थी। सबकुछ ठीक चल रहा था। 15 अप्रैल की सुबह अचानक शुरू हुई बमबारी व आसमान से गिरती मिसाइलों से धरती हिलने लगी। समझते देर न लगी कि सेना के दो गुटों में वर्चस्व को लेकर युद्ध छिड़ गया है। सभी का कलेजा कांप गया। मन में एक ही चिंता थी कि इस पराए देश में उनका क्या होगा? छह दिनों तक कैदी की तरह फैक्ट्री में एक जून का खाना खाकर किसी तरह गुजर-बसर करना पड़ा। सेना के दो गुटों के बीच शुरू हुए संघर्ष के कारण संकटग्रस्त हुए सूडान में रोजगार की तलाश में गए गोरखपुर व बस्ती मंडल के लोग गुरुवार को गोरखपुर पहुंचे। 15 से लेकर 21 अप्रैल तक बिताए गए दिन उनके लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं है।
अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट से कांप गई रूह
फैक्ट्री परिसर के बाहर जब अचानक गोलियां तड़तड़ाने लगीं तो उन्हें अहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ हो गया है। 15 को ही दोपहर तक पैरामिलिट्री एसआरएफ के जवान फैक्ट्री परिसर में घुस गए। यहां करीब 700 लोग काम करते हैं। उन्हें गन प्वाइंट पर ले लिया और धमकाकर उनके पास रखा पैसा छीन लिया। एंड्रायड मोबाइल भी ले लिए। यह सिलसिला एक बार में नहीं थमा, बल्कि वे दिन में तीन से चार बार वहां पहुंचते थे। कभी पैसा, कभी मोबाइल तो कभी फैक्ट्री की गाड़ी लेकर चले जाते थे। फोन से घरवालों से बात होती थी तो उन्हें सब ठीक होने का हवाला देते थे। राशन की कमी के कारण एक समय खाना खा रहे थे, वो भी आधा पेट।
केंद्र सरकार की ओर से संदेश आया तो मिली राहत
घर आए नागरिकों ने बताया कि छह दिन काफी संकट में बीते। 22 तारीख को भारतीय दूतावास की ओर से संदेश मिला। कमरे में रहने को कहा गया और निरंतर संपर्क करने का भरोसा दिलाया गया। इसके बाद इस बात को लेकर राहत मिली कि सरकार हमारी चिंता कर रही है और हमें इस संकट से उबार लिया जाएगा।
इंडिया का नाम सुनते तो बस में नहीं करते थे लूटपाट
देश की सरकार का प्रभाव सूडान में भी देखने को मिला। नागरिकों का कहना है कि फैक्ट्री से पोर्ट जाते हुए रास्ते में वहां के सेना के जवान बस में लूट के इरादे से चढ़ते थे लेकिन जब उन्हें यह बताया जाता था कि इंडिया से हैं तो बस से उतर जाते थे और आगे जाने देते थे।
क्या कहते हैं सूडान से लौटे नागरिक
मैं आठ साल से सूडान में हूं। इस बार 17 फरवरी 2023 को वहां गया था। फैक्ट्री परिसर में हम सभी मौजूद थे कि 15 अप्रैल को अचानक बम और गोलियों की आवाज सुनाई देने लगी। एसआरएफ के जवान फैक्ट्री में घुस आए थे। हम डर गए थे कि बचेंगे भी या नहीं। सरकार ने हमारी सहायता की और आज हम अपने घर आ गए। विनोद कुमार शर्मा, धुरिया मोतीपुर, कसया, कुशीनगर
मैं 2014 से सूडान में रह रहा हूं। बेटी की शादी करने के बाद अबकी तीन मार्च को वहां गया था। फैक्ट्री में घुसकर हमें भी बंधक बना लिया गया। आंखों के सामने अंधेरा छा गया था। 18 अप्रैल को मेरी बात सदर सांसद रविकिशन से हुई तो हम आश्वस्त हो गए कि हमारे देश की सरकार यहां से निकालेगी। जनार्दन त्रिपाठी, हथिया परास, सदर तहसील
नौ साल पहले वहां गया था। पिछली बार 2021 में पहुंचा। सबकुछ ठीक चल रहा था। 15 अप्रैल को अचानक सब बदल गया। मिसाइलें गिरने लगीं। मानो धरती हिल रही हो। लेकिन हमारी सरकार ने हमें सुरक्षित निकाल लिया। पूरे रास्ते हमारा भरपूर ध्यान रखा गया है। मेरा पूरा परिवार प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री का आभारी है। देव नारायण, झरना, गगहा
आठ माह से जितनी भी कमाई की, वह सब डूब गई। पैरामिलिट्री फोर्स और सेना के जवान सूडान में पहुंचते ही कनपटी पर बंदूक रख पैसा और सामान लूट रहे थे। वापस लौटने की उम्मीद छूट चुकी थी, लेकिन भगवान का शुक्र है कि सकुशल घर पहुंच आए। संतोष कुमार चौरसिया, खुखुंदू, देवरिया
सूडान में विवाद शुरू होने पर घरवालों को बताने में पहली बार तो डर लग रहा था। संवाद का एकमात्र जरिया इंटरनेट ही था, लेकिन वह भी घंटों बंदकर दिया जाता था। ऐसा लगा कि अब बचना मुश्किल हो, लेकिन देश आने का फिर अवसर मिला है। महेंद्र कुमार, सुखुई, सिद्धार्थनगर
सूडान की राजधानी खारतूम से करीब 35 किमी. दूर शोभा माले जी शहर में ओमेगा इस्पात स्टील में काम कर रहे थे। विवाद का मुख्य केंद्र खारतून धीरे-धीरे खत्म हो चुका है और वहां सरकारी दफ्तरों पर उग्रवादियों का कब्जा हो गया है। भारत सरकार ने सूडान गए लोगों को नया जीवन दिया है। रामहंस, बसवारी, सिकरीगंज, गोरखपुर
गोलियों की तड़तड़ाहट से थम जाती थीं धड़कनें
सूडान में फंसे गोरखपुर-बस्ती मंडल के 31 भारतीय लोग गुरुवार को करीब साढ़े चार बजे बस से सहजनवां पहुंचे। इन लोगों में अपनों से मिलने की खुशी साफ झलक रही थी, लेकिन सूडान में मिले दर्द से आंखें नम थीं। पीड़ितों ने आपबीती बताते हुए कहा, वहां बमबाजी और गोलियों की तड़तड़ाहट से धड़कनें सहसा रुक जाती थीं, आंखों के सामने सिर्फ अपनों की तस्वीर नजर आती थी। सहजनवां में बस पहुंची तो लोगों के उतरते ही भारत माता के जयकारे गूंजने लगे। कई नागरिकों ने धरती को प्रणाम भी किया और रोजी-रोटी के लिए दूसरे देशों में नहीं जाने की बात कही। अफसरों ने माला पहना स्वागत किया और नाश्ता कराने के बाद वाहनों से उन्हें घर भेज दिया।