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देश की पहली ऐसी मस्जिद जो दे रही नैतिकता की सीख, यहां लगीं हैं महापुरुषों की तस्वीरें

मस्जिद के इमाम मौलाना सैयद तफाकुर अली जैदी का दावा है कि यह देश की पहली ऐसी मस्जिद है जहां महापुरुषों की तस्वीर के साथ हजरत इमाम हुसैन के बारे में उनके विचारों को प्रस्तुत किया गया है। मौलाना तफाकुर अली छह साल से यहां इमाम हैं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2020 08:10 AM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2020 03:05 PM (IST)
तस्वीरों के साथ पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन के बारे में उनके विचार भी लिखे गए हैं।

गाजियाबाद, हसीन शाह। गाजियाबाद की शिया मस्जिद पर मानवता के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, महान साहित्यकार चा‌र्ल्स डिकेंस और सरोजनी नायडू जैसे महापुरुषों की तस्वीरें लगी हैं। इन तस्वीरों के साथ पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन के बारे में उनके विचार भी लिखे गए हैं।

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गाजियाबाद की शिया मस्जिद पर लगीं गांधी

मस्जिद के इमाम मौलाना सैयद तफाकुर अली जैदी का दावा है कि यह देश की पहली ऐसी मस्जिद है, जहां महापुरुषों की तस्वीर के साथ हजरत इमाम हुसैन के बारे में उनके विचारों को प्रस्तुत किया गया है। मूलरूप से बरेली के सैथल कस्बा निवासी मौलाना तफाकुर अली छह साल से यहां इमाम हैं। तीन माह पहले उन्होंने मस्जिद की कमेटी को उन महापुरुषों की तस्वीर लगाने का सुझाव दिया, जिन्होंने इमाम हुसैन की शहादत पर श्रेष्ठतम विचार रखे थे। कमेटी ने चार महापुरुषों का चयन किया।

नेहरू, चा‌र्ल्स डिकेंस और सरोजनी नायडू की तस्वीरें

इनकी तस्वीरों के साथ इमाम हुसैन के संबंध में उनके विचारों को भी दर्शाया गया। सुन्नी समुदाय में तस्वीर लगाना गलत माना जाता है। शिया समुदाय में भी नमाजी के सामने तस्वीर लगाने से परहेज करते हैं। चूंकि यहां महापुरुषों की तस्वीर के साथ अमन व भाईचारे का संदेश दिया गया है, लिहाजा किसी को हर्ज नहीं है।

मुल्क से मोहब्बत की दी जा रही तालीम

इमाम तफाकुर अली कहते हैं कि मुल्क से मोहब्बत ईमान का हिस्सा है। यहां बच्चों को इस्लाम की तालीम के साथ मुल्क से मोहब्बत और वफादारी की तालीम दी जाती है। तभी तो मोहर्रम के जुलूस में भी कई वर्षो से राष्ट्रीय ध्वज लहराते हैं। मस्जिद में लगी इन तस्वीरों के साथ दिए गए संदेश भी उसी अमन और मोहब्बत की तालीम का हिस्सा है।

तस्वीरों के साथ लिखे संदेश जो समरसता सिखाते हैं

करबला की लड़ाई से जो मैंने समझा है उसे बता रहा हूं। हमें हुसैन के बताए रास्ते पर चलना है।

मोहनदास कर्मचंद गांधी

1300 साल पहले इमाम हुसैन ने दुनिया को जीने का जो तरीका बताया, वह सर्वोत्तम है। वह सिर्फ मुस्लिमों के लिए नहीं है, वह धरती के हर इंसान के लिए है।

सरोजनी नायडू

हुसैन दुनियावी हसरतों को लिए करबला की जंग में शामिल हुए तो मैं नहीं समझ पा रहा हूं कि वह अपने साथ बहन, पत्नी और परिवार को क्यों ले गए। जाहिर है, उन्होंने इस्लाम के लिए शहादत दी।

चा‌र्ल्स डिकेंस

इमाम हुसैन की शहादत पूरी इंसानियत के लिए है।

जवाहर लाल नेहरू

कौन थे हजरत इमाम हुसैन

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार पहला महीना मोहर्रम का होता है। इस महीने की 10 तारीख को रोजे-आशूरा कहते हैं। इस दिन पैगंबर मुहम्मद के नवासे इमाम हुसैन को उनके 71 साथियों के साथ इराक के करबला में अत्याचारी शासक यजीद ने शहीद कर दिया था। 

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