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रामनगरी अयोध्या ने युगों पूर्व दुनिया को दी थी रामराज्य की अवधारणा

देश को आजादी मिलने के दो वर्ष के भीतर ही चुनाव आयोग में एक ऐसा राजनीतिक दल पंजीकृत हुआ, जिसका नाम ही था, अखिल भारतीय रामराज्य परिषद। दल के संस्थापक करपात्री जी थे।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 31 Jan 2017 09:30 AM (IST)Updated: Tue, 31 Jan 2017 09:41 AM (IST)
रामनगरी अयोध्या ने युगों पूर्व दुनिया को दी थी रामराज्य की अवधारणा
रामनगरी अयोध्या ने युगों पूर्व दुनिया को दी थी रामराज्य की अवधारणा

रघुवरशरण, अयोध्या। वह रामनगरी ही थी, जिसने युगों पूर्व दुनिया को रामराज्य की अवधारणा दी। आधुनिक भारत में महात्मा गांधी जैसी विभूति ने इस अवधारणा को अंगीकार किया, तो तीन दशक पूर्व रामजन्मभूमि का मुद्दा बुलंद करने के साथ भाजपा नेतृत्व भी प्राय: रामराज्य की अवधारणा के अनुरूप सुशासन का वादा करता रहा। इतना ही नहीं देश को आजादी मिलने के दो वर्ष के भीतर ही चुनाव आयोग में एक ऐसा राजनीतिक दल पंजीकृत हुआ, जिसका नाम ही था, अखिल भारतीय रामराज्य परिषद। इस दल के संस्थापक दिग्गज और धर्म सम्राट की पदवी से विभूषित करपात्री जी थे।

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उनका आश्रम तो काशी में था पर वह पूरे देश में अपने प्रकांड वैदुष्य और परंपरागत सनातनी सरोकार के लिए जाने जाते थे। यह उनके भारी-भरकम कद और रामराज्य के आदर्शों के प्रति पीढिय़ों से प्रवाहित आस्था ही थी कि 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में ही रामराज्य परिषद को तीन सीटें मिलीं। साथ ही 1952, 57 एवं 62 के विस चुनाव में भी रामराज्य परिषद ने छाप छोड़ी और मध्यप्रदेश तथा राजस्थान में इस दल के दर्जन भर से अधिक विधायक चुने गए। रामराज्य की अवधारणा के साथ करपात्री जी का स्वाभाविक रूप से रामनगरी के भी प्रति प्रबल अनुराग रहा। उन्होंने गत शताब्दी के सातवें-आठवें दशक में रामनगरी की अनेक यात्राएं कीं, भगवान राम के प्रति आस्था निवेदित किया और रामनगरी में भी रामराज्य परिषद को विस्तार देने की कोशिश की।

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अक्षुण्ण है रामराज्य परिषद का नारा
करपात्री जी ने राम राज्य परिषद के नाम से राजनीतिक दल ही नहीं अपनी शिष्या डॉ. सुनीता शास्त्री को भी रामनगरी के प्रति समर्पित किया। करपात्री जी के संरक्षण में काशी से आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत करने के बाद वाल्मीकि रामायण एवं रामकथा का अनुशीलन करने के उद्देश्य से सुनीता शास्त्री साढ़े तीन दशक पूर्व रामनगरी आईं और यहीं की होकर रह गईं। वे याद दिलाती हैं कि ङ्क्षहदू धर्म के प्राय: हर आयोजनों में लगने वाला जयकारा, 'धर्म की जय हो-अधर्म का नाश हो-प्राणियों में सद्भावना हो-विश्व का कल्याण हो। यह मूलत: रामराज्य परिषद का नारा था और जिसका सूत्रपात स्वयं करपात्री जी ने ही किया था।

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