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जितने जुल्म करोगे, उतना ही लड़ूंगा

1947 की आजादी के लिए बरेली में अंग्रेजों के खिलाफ छिड़ी जंग में प्रताप चंद्र आजाद ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 12 Aug 2018 10:40 AM (IST)Updated: Sun, 12 Aug 2018 12:23 PM (IST)
जितने जुल्म करोगे, उतना ही लड़ूंगा

गौरव गाथा

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1947 की आजादी के लिए बरेली में अंग्रेजों के खिलाफ छिड़ी जंग में प्रताप चंद्र आजाद ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह प्रारंभ हुआ तो बरेली से कई युवाओं के साथ आजाद भी कूद पड़े। वह उस वक्त बरेली कॉलेज में बीए फाइनल के छात्र थे। नगर कांग्रेस के महामंत्री भी थे। उन्होंने सैकड़ों लोगों के साथ कंधा मिलाकर अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका। सुल्तानपुर स्थित अपने गांव में सत्याग्रह किया। इस दौरान पूरे जिले में सत्याग्रहियों की धर-पकड़ शुरू हो गई। बरेली में हजारों लोगों के साथ प्रताप चंद्र आजाद भी जेल गए। जब आजाद गांव से दबोचे गए तो अंग्रेजी हुकूमत के सिपाहियों से साफ कह दिया कि भारत माता का सपूत हूं, जितना जुल्म करोगे, उतना ही लडूंगा। इससे खफा अंग्रेजी हुकूमत ने उनको छह माह कड़े कारावास की सजा सुनाई थी। वह जेल में एक अन्य क्रांतिकारी बृजमोहन लाल शास्त्री के साथ रहे। बृजमोहन लाल काशी विद्यापीठ में लालबहादुर शास्त्री के साथ रहे थे, इसलिए उस दौर के बड़े क्रांतिकारी माने जाते थे।

जेल से छूटने के बाद भी

जारी रहा आंदोलन

छह माह की सजा काटने के बाद प्रताप चंद्र आजाद जब रिहा हुए तो अंग्रेजों ने बाकी क्रांतिकारियों के साथ उन पर भी नजर रखनी शुरू कर दी। इससे बेपरवाह प्रताप ने आंदोलन में हिस्सा लेना जारी रखा। छह माह की सजा के बाद आजाद के हौसले और मजबूत हो गए थे। बाहर आकर उन्होंने दो साप्ताहिक पत्र- उर्दू का आजादी और ¨हदी का स्वराज्य अपने संपादन में शुरू कर दिया। इन दोनों अखबारों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खूब आग उगली। इस पर सरकार ने दोनों अखबार जब्त कर लिए। नौ अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल बजा तो प्रताप चंद्र साथ हो लिए। इसी के चलते अंग्रेजी हुकूमत ने एक बार फिर से उनको गिरफ्तार कर लिया। अनिश्चितकाल तक के लिए नजरबंद कर दिया गया। पहले जिला जेल में बंद किया गया फिर इज्जतनगर की सेंट्रल जेल में डाल दिया गया।

माफीनामा लिखने से इन्कार

वह दोनों जेलों में तीन साल तक बंद रहे। इस दौरान कलेक्टर ने जेल में बंद बाकी क्रांतिकारियों के साथ उनको भी माफीनामा लिखने के लिए प्रस्ताव भिजवाया। लालच दिया मगर उन्होंने दो टूक मना कर दिया। आजादी के बाद प्रताप चंद्र आजाद विधायक और जिला पंचायत के चेयरमैन रहे। उन्होंने कई सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों में सक्रियता निभाई। कई पुस्तकें भी लिखी हैं। शहर का पीसी आजाद इंटर कॉलेज उनके नाम से ही है।

प्रस्तुति : राजीव शर्मा


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