बरेली में तकनीकी लापरवाही से ई-कवच सिस्टम पर खतरा, बीपी-डायबिटीज के मरीजों की मॉनिटरिंग अधूरी
यह रिपोर्ट ई-कवच डिजिटल हेल्थ पोर्टल में डेटा गड़बड़ियों और अप्रशिक्षित आशा-एनएनएम की वजह से बीपी और डायबिटीज मरीजों की स्क्रीनिंग में विफलता को उजागर करती है। स्वास्थ्य विभाग के तहत 36 अर्बन आयुष्मान मंदिर और 70 ग्रामीण पीएचसी-सीएचसी में कार्यरत लगभग 3,425 आशाएं मरीजों का डेटा ई-कवच में दर्ज करने की जिम्मेदारी संभालती हैं।

प्रतीकात्मक चित्र
अनूप गुप्ता, जागरण, बरेली। सीएमओ ने हजियापुर यूपीएचसी में चेकिंग के दौरान ई-कवच पोर्टल में हाइपरटेंशन और डायबिटीज के मरीजों की डेटा रिपोर्ट में गड़बड़ी पकड़ी थी। यहां ओपीडी तो करीब 55 मरीजों की हो गई थी लेकिन पोर्टल पर आधे से भी कम करीब 25 का ही ब्योरा दर्ज मिला है। दरअसल, यह गड़बड़ी केवल हजियापुर नगरीय स्वास्थ्य उपकेंद्र की ही नहीं है, बल्कि ज्यादातर शहरी और ग्रामीण पीएचसी और सीएचसी की है।
कारण यह है कि ई-कवच में डेटा अपलोड करने का काम जिन आशाओं या एएनएम को दिया गया है, उनमें ज्यादातर अप्रशिक्षित हैं। तकनीकी प्रशिक्षण उन्हें नहीं दिया गया है। ऐसे में सभी मरीजों की स्क्रीनिंग न हो पाने उनकी नियमित न तो जांच हो पा रही है और न ही उन्हें दवाइयां दी जा पा रही हैं।
स्वास्थ्य विभाग ने डिजिटल सेवा में ई-कवच को भी शामिल किया था। जिले में 36 अर्बन आयुष्मान और 26 नगरीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (यूपीएचसी) हैं। यहां करीब 472 आशा काम कर रही हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के 70 प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर इनकी संख्या 2,953 है। इनके साथ एनएनएम पर ई-कवच में हाइपरटेंशन और डायबिटीज के मरीजों की स्क्रीनिंग के लिए उनका डेटा अपलोड करने का जिम्मा है, लेकिन ई-कवच की की आनलाइन रिपोर्ट में आए दिन खामियां पकड़ी जा रहीं हैं।
सरकारी अस्पतालों में जितने भी मरीज आ रहे हैं, उनके मुकाबले डेटा फीडिंग काफी कम है। इसे स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी स्वीकार करते हैं। इससे ई-कवच की रैंकिंग पर तो असर पड़ ही रहा है, साथ ही सभी मरीजों का ब्योरा न मिल पाने से उनकी निगरानी भी नहीं हो पा रही है। दरअसल, ई-कवच की रिपोर्ट के आधार पर ही स्वास्थ्य टीमें भी मरीजों पर नजर रखती हैं। यानी मरीज ने अपने बीपी-शुगर की जांच कब कराई, अस्पताल से समय से दवाएं ली हैं या नहीं और बीमारी में कितना सुधार हुआ है।
मगर, ई-कवच की रिपोर्ट में गड़बड़ी इस सिस्टम पर खराब असर डाल रही है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि जिन आशाओं को इसका जिम्मा दिया गया है, उसमें तमाम तो ऐसी हैं, जो छठी और आठवीं पास हैं। हालांकि अब इंटरमीडिएट पात्रता कर दी गई है लेकिन तकनीकी तौर से अप्रशिक्षित होने से उन्हें ई-कवच जैसी तकनीकी जिम्मेदारी नहीं संभाल मिल रही है।
यही हाल एएनएम का भी है। इसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने आशा-एएनएम को यह राहत भी दी थी कि वे घर के किसी सदस्य से भी इस काम में मदद ले सकती हैं, लेकिन स्थिति अभी भी ठीक नहीं है। कारण, किसी घर के सदस्य को साथ रखना मुमकिन नहीं हो पा रहा है। ऐसे में इसका सीधा खराब असर ई-कवच की वास्तविक रिपोर्ट पर पड़ रहा है।
एक हजार की आबादी पर 370 मरीजों की होनी है स्क्रीनिंग
हाइपरटेंशन और डायबिटीज के मरीजों का चिह्नित करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने प्रति एक हजार आबादी में 370 मरीजों की स्क्रीनिंग होती है। स्वास्थ्य विभाग को इन सभी मरीजों की मानीटरिंग करनी चाहिए, जिन्हें बीपी और डायबिटीज की शिकायत है। हालांकि सालभर में इन्हें केवल दो ही बार बुलाया जाता है। बाकी इन्हें जितने दिनों तक दवाइयां दी जाती है, उसके बाद मरीज नहीं आता है तो उसे काल करके या फिर घर पहुंचकर दवाओं का वितरण करना चाहिए।
मरीजों के स्वास्थ्य पर खतरा, विभाग बेपरवाह
ई-कवच में बीमारी से ग्रसित बड़ी संख्या में मरीज ई-कवच से बाहर रहते है। हालांकि अधिकारियों का कहना है कि सीएचओ की भी जिम्मेदारी है कि जितने मरीजों की ओपीडी हुई है और बीपी-डायबिटीज से पीड़ित पाए गए हैं, उनका ब्योरा ई-कवच पर रहे लेकिन सीधे तौर से जिम्मेदार आशा और एएनएम को ट्रेनिंग देने में सिस्टम लचर दिखाई दे रहा है। उन्हें सालभर में सिर्फ एक बार ही प्रशिक्षण देने की व्यवस्था है। इसी के सहारे पूरा साल जैसे-तैसे खींचा जाता है।
समय-समय पर जांच करके ई-कवच पोर्टल में जो भी खामियां हैं, उन्हें दुरुस्त कराया जाता है। जिन आशाओं या एनएएम को मरीजों का डेटा अपलोड करने में दिक्कत हो रही है, उन्हें परिवार के सदस्यों से सहायता लेने को कहा गया है। इस पर लगातार निगरानी भी रखी जा रही है।
- डा. विश्राम सिंह, मुख्य विकास अधिकारी
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