सफाई पर लाखों खर्च के बाद भी बदहाल रेलवे स्टेशन
जागरण संवाददाता, बांदा : प्रथम श्रेणी का तमगा पाए स्थानीय रेलवे स्टेशन की साफ-सफाई में महकम
जागरण संवाददाता, बांदा : प्रथम श्रेणी का तमगा पाए स्थानीय रेलवे स्टेशन की साफ-सफाई में महकमा हर माह 1.46 लाख रुपये खर्च कर रहा है। फिर भी यहां जगह-जगह गंदगी का अंबार है। प्लेटफार्मो और यात्रियों के बैठने के स्थान पर पान के पीक और गोबर की गंदगी दुश्वारियां पैदा कर रहे हैं। मुसाफिरों को नाक में रुमाल लगाकर बैठना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वच्छता अभियान स्थानीय रेलवे स्टेशन पर बेअसर है। परिसर और प्लेटफार्मो पर कई जगह स्वच्छता संबंधी स्लोगन लिखी तख्तियां टंगी है। कुछ जगहों पर गंदगी फैलानों वालों के लिए चेतावनी भी लिखी है। लेकिन यह सिर्फ दिखावटी है। गंदगी फैलाने में खुद रेलवे विभाग के कर्मचारी व लेवर ही शामिल है। दफ्तरों में बैठे-बैठे दरवाजों के पास पान की पीक थूकते हैं। प्लेटफार्म नंबर एक की बात करें तो यहां जीआरपी थाने से लेकर फुटओवर ब्रिज तक कई गड्ढे महीनों से खुदे पड़े हैं। बताया गया कि ये गड्ढे रेलवे लाइन विद्युतीकरण के लिए लगने वाले पोलों के लिए खोदे गए हैं। कुछ गड्ढे पाइप लाइन के लिए खुदे पड़े हैं। इन्हीं गड्ढों पर यात्री कचरा व गंदगी फेंकते हैं। रेलवे विभाग में पहले स्थानीय स्तर पर सफाई कर्मी रखे जाते रहे हैं। 10 कर्मचारी परिसर व प्लेटफार्मों की दिन रात सफाई करते थे। लेकिन पिछले कुछ सालों से यह व्यवस्था खत्म कर दी गई है। ठेकेदारी पर यहां सफाई कराई जा रही है। संस्था राजनीति से प्रेरित है। ऐसे में सफाई में महज औपचारिकता की जा रही है। प्राइम क्ली¨नग ने लिया है ठेका
रेलवे परिसर को स्वच्छ व साफ सुथरा रखने के लिए महकमे ने लखनऊ की संस्था प्राइम क्ली¨नग को ठेका दिया है। उसे हर माह 1.46 लाख रुपये सफाई के नाम पर दिए जा रहे हैं। अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सफाई के लिए यहां संस्था ने छह कर्मचारी लगा रखे हैं। लेकिन वे सफाई सिर्फ सुबह और रात में करते हैं। जबकि नियमत: हर तीन घंटे में प्लेटफार्मो पर झाड़ू व पोछा लगना चाहिए। कीटाणु नाशक केमिकलों का भी सफाई में इस्तेमाल नहीं किया जाता है। सफाई का ठेका ऊपर से है
स्टेशन अधीक्षक वीपी वर्मा का कहना है कि सफाई का ठेका उच्चाधिकारियों के स्तर से होता है। यहां से कुछ नहीं होता। पहले कमान उनके हाथ थी तो प्लेटफार्म चमचमाता था। अब स्थित आप खुद ही देख सकते हैं।