समस्या प्रधान नाटकों के जनक थे लक्ष्मी नारायण मिश्र
आजमगढ़ : साहित्यिक प्रतिभा के धनी, हिन्दी साहित्य में समस्या प्रधान नाटकों के जनक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व विचारक पंडित लक्ष्मी नारायण मिश्र की गणना मूर्धन्य महाकवियों व नाटककारों में की जाती है।
पंडित मिश्र ने हिन्दी नाटक को राष्ट्रीय आन्दोलन से अनुप्राणित कर नई विधाओं व शैली का प्रयोग कर एक नई दृष्टि प्रदान किया। मिश्र का जन्म पौष शुक्ल प्रतिपदा संवत् 1960 तदनुसार 19 दिसंबर 1903 को जनपद के बस्ती ग्राम में हुआ था। 1928 में सेंट्रल हिन्दू कालेज वाराणसी से बीए करने के बाद 18 वर्ष की आयु में उन्होंने लेखन शुरू किया।
उनका पहला नाटक 'अशोक' था। 'मैं बुद्धिवादी क्यों' जैसी भूमिकाएं लिखकर वह 1930 से 1934 तक नए ढंग से समस्या प्रधान नाटकों का लेखन करते रहे। सन्यासी, सिन्दूर की होली तथा राजयोग आदि नाटक लिखकर वह हिन्दी साहित्य में समस्या प्रधान नाटकों के जनक के रूप में स्थापित हुए।
पंडित लक्ष्मी नारायण मिश्र मुख्यत: कवि थे। रामवृक्ष बेनीपुरी ने उन्हें जयशंकर प्रसाद के खंड काव्य 'आंसू' के छन्दों का आविष्कारक कहा था। वह मधुर भावनाओं के कवि तो थे लेकिन उनका स्वर प्रतापी था। मिश्र जी मुख्यत: विपक्ष के आदमी थे। अपनी उग्र राष्ट्रीयता, देशप्रेम से ओत-प्रोत रचनाओं के कारण 1942 के आंदोलन में वे राजबंदी बनाए गए और कारागार में उन्हे अमानवीय यातनायें दी गई। यह विद्रोह भाव उनके रक्त व संस्कार में था। वह कट्टर भारतीय थे। नाटक व काव्य क्षेत्र में मिश्र जी ने एक साथ उच्च सफलता प्राप्त की थी। उनकी 111 वीं जयंती पर 2 जनवरी को नगर पालिका तिराहा स्थित लक्ष्मी नारायण मिश्र स्मृति उद्यान में पूर्वाह्न साढ़े ग्यारह बजे गोष्ठी का आयोजन किया गया है। खास बात तो यह है कि मौसम कितना भी प्रतिकूल हो लेकिन उनकी जयंती पर प्रशासन के अफसर से लेकर जनप्रतिनिधि भी अपनी हाजिरी लगाते हैं।
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