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    Ram Mandir: रामजन्मभूमि की मुक्ति के संघर्ष में सिखों की रही महत्वपूर्ण भूमिका, पढ़ें उनके योगदान के बारे में

    By Jagran News Edited By: Jeet Kumar
    Updated: Fri, 12 Jan 2024 07:25 AM (IST)

    सिख गुरु और उनके धर्म योद्धा ‘निहंग सिख’ रामजन्मभूमि मुक्ति के अभियान को अपना कर्तव्य समझते रहे और जब भी जरूरत पड़ी वह रामजन्मभूमि की मुक्ति के संघर्ष में शामिल नजर आए। रामजन्मभूमि से बमुश्किल दो सौ मीटर दूर स्थित गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड से भी गुरुओं और निहंग सिखों की यह भूमिका और जीवंतता से परिभाषित है। जन्मभूमि की मुक्ति का संघर्ष जितना दुरुह-दुर्धर्ष था।

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    रामजन्मभूमि की मुक्ति के संघर्ष में सिखों की रही महत्वपूर्ण भूमिका

     रमाशरण अवस्थी, अयोध्या। जन्मभूमि की मुक्ति का संघर्ष जितना दुरुह-दुर्धर्ष था, उसका परिणाम उतना ही मूल्यवान एवं आनंददायक है। मैं तो राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीमकोर्ट का निर्णय आने के बाद से ही पांच सदी के शोक-संताप को पीछे छोड़ कर उत्कर्ष-उन्नयन के नए युग में प्रविष्ट हो रही हूं।

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    एक मार्च 1528 को राम मंदिर तोड़ दिया था

    इसी के साथ शौर्य की उस विरासत के प्रति वात्सल्य उमड़ रहा है, जिसने मेरा गौरव वापस दिलाने के लिए अपूर्व अपनत्व-आत्मीयता का परिचय दिया। वे सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए आक्रांताओं से टकराने वाले गुरुओं और आक्रांताओं के विरुद्ध अभियान में गुरुओं के नेतृत्व में प्राण की बाजी लगाने वाले निहंग सिख थे। वे पंजाब सहित संपूर्ण पश्चिमोत्तर में आक्रांताओं के उसी तरह के कुकृत्य के प्रतिकार का सैन्य अभियान चला रहे थे, जैसा कुकृत्य उन्होंने एक मार्च 1528 को राम मंदिर तोड़ कर किया था।

    इसीलिए सिख गुरु और उनके धर्म योद्धा ‘निहंग सिख’ रामजन्मभूमि मुक्ति के अभियान को अपना कर्तव्य समझते रहे और जब भी जरूरत पड़ी वह रामजन्मभूमि की मुक्ति के संघर्ष में शामिल नजर आए। रामजन्मभूमि से बमुश्किल दो सौ मीटर दूर स्थित गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड से भी गुरुओं और निहंग सिखों की यह भूमिका और जीवंतता से परिभाषित है।

    गुरु नानकदेव ने सरयू के इसी ब्रह्मकुंड तट पर धूनी रमाई थी

    1499 ई. में हरिद्वार से पुरी जाते हुए प्रथम गुरु नानकदेव ने सरयू के इसी ब्रह्मकुंड तट पर धूनी रमाई थी, जहां आज गुरुद्वारा स्थापित है। यद्यपि तब गुरुद्वारा नहीं था, प्रथम गुरु के आगमन से यहां गुरुद्वारा की स्थापना का सूत्रपात जरूर हुआ। मुझे यह भी याद है कि प्रथम गुरु ने अयोध्या प्रवास के दौरान आमजन को आशीर्वाद देने एवं स्थानीय धार्मिक लोगों से भेंट करने के साथ रामजन्मभूमि की भी यात्रा की और वहां स्थापित श्रीराम के विग्रह का दर्शन किया।

    गुरु नानक की रामजन्मभूमि यात्रा मात्र आस्थागत नहीं थी, गुरु के यहां आगमन के पीछे इस स्थल को तत्कालीन परिस्थितियों में संबल-संरक्षण देना था। प्रथम गुरु ने रामजन्मभूमि के समीप ही जिस स्थल पर डेरा डाला था, वहां सन् 1667 में नवम गुरु तेगबहादुर तथा 1672 में दशम गुरु गोविंद सिंह भी आए। इस संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि परवर्ती गुरुओं के आगमन से रामजन्मभूमि मुक्ति के अभियान को संबल मिला होगा।

    निहंग सिखों का एक जत्था भेजा

    औरंगजेब के शासनकाल (1658-1707 ई.) के उत्तरार्द्ध में जब रामजन्मभूमि मुक्ति के लिए कुंवर गोपाल सिंह एवं ठाकुर जगदंबा सिंह के साथ बाबा वैष्णवदास ने निर्णायक अभियान छेड़ा, तब उन्होंने दशम गुरु से भी सहायता मांगी। औरंगजेब के ही विरुद्ध अन्य चमकौर एवं आनंदपुर साहिब के मोर्चे पर सफलतापूर्वक डटे दशम गुरु वैष्णवदास के आमंत्रण पर स्वयं अयोध्या नहीं आ सके, किंतु निहंग सिखों का एक जत्था जरूर भेजा।

    दशम गुरु के बाद भी निहंग सिख रामजन्मभूमि मुक्ति के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन करते रहे। इसी दायित्व के तहत होशियारपुर के निहंग सिख बाबा गुलाब सिंह दैवी प्रेरणा से अयोध्या पहुंचे। समझा जाता है कि वह गुरुओं के आगमन की विरासत सहेजने के साथ रामजन्मभूमि मुक्ति के अभियान को प्रभावी बनाने के लिए अयोध्या पहुंचे। उन्होंने इस स्थल पर गुरुद्वारा स्थापित करने के साथ इस स्थल को अखाड़ा के रूप में स्थापित किया और आक्रांताओं से मुकाबले के लिए निहंगों के साथ आम हिंदुओं को दीक्षित-प्रशिक्षित करना शुरू किया।

    सिख गुरु स्वयं श्रीराम के पुत्र लव एवं कुश के वंशज थे

    इस दिशा में गुरुद्वारा का प्रयास फलीभूत भी हुआ, जब 1858 में निहंग सिखों के जत्थे ने रामजन्मभूमि से मस्जिद के दावेदारों को बलपूर्वक बेदखल कर दिया और तभी पूरे 15 दिन तक रामजन्मभूमि को मुक्त रखा। मुझे यह बताते हुए बहुत गर्व हो रहा है कि रामभक्ति सिखों के डीएनए में है। सिख गुरु स्वयं श्रीराम के पुत्र लव एवं कुश के वंशज थे। गुरु ग्रंथ साहिब में साढ़े पांच हजार बार राम शब्द का उल्लेख मिलता है।

    ग्रंथ साहिब में ही संकलित नवम गुरु की वाणी में वर्णित है, जो सुख को चाहे सदा/ शरण राम की लेय। दशम गुरु कृत रामावतार में श्रीराम की महिमा विवेचित है। मैं चाहूंगी कि राम मंदिर के साथ मुझे श्रेष्ठतम सांस्कृतिक नगरी बनाने के अभियान में अपनत्व-आत्मीयता से युक्त सिखों की इस विरासत को भी पूर्ण आदर के साथ शामिल किया जाय और हमारे प्रति उनके अनन्य अवदान को अविस्मरणीय बनाया जाय।