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Agra: मुगलकाल की पुलिसिंग में अंग्रेजों ने किया था सुधार, मारे जाते थे कोड़े, पढ़ें 162 वर्ष पुरानी व्यवस्था

Agra News लार्ड कार्नवालिस को माना जाता है पुलिस व्यवस्था का जनक। मुगलकाल में कड़ी सजाएं मिलती थीं। अंग भंग जैसे सजा भी कानून में शामिल थी। मृत्युदंड के लिए अलग से दंडाधिकारी तैनात किया गया था।

By Nirlosh KumarEdited By: Abhishek SaxenaPublished: Sun, 27 Nov 2022 09:21 PM (IST)Updated: Sun, 27 Nov 2022 09:21 PM (IST)
Agra: मुगलकाल की पुलिसिंग में अंग्रेजों ने किया था सुधार, मारे जाते थे कोड़े, पढ़ें 162 वर्ष पुरानी व्यवस्था
Agra News: मुगलकाल की पुलिसिंग में अंग्रेजों ने किया था सुधार।

आगरा, जागरण संवाददाता। आगरा में पुलिस कमिश्नरी की स्थापना होने जा रही है। पुलिस में सुधार की शुरुआत आज से 162 वर्ष पूर्व ब्रिटिश काल में वर्ष 1860 में हुई थी। मुगल शहंशाह अकबर के समय जिले में फौजदार और शहर में कोतवाल कानून व्यवस्था बरकरार रखने के साथ अपराधों पर नियंत्रण करते थे। मुगल काल की पुलिसिंग को अंग्रेजों ने अपने हित के लिए बेहतर किया था।

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गांवों में चौकीदारों की हुई व्यवस्था

प्राचीन भारत के इतिहास में दंडधारी का उल्लेख मिलता है। राजा-महाराजा के समय ग्रामीक व स्थानिक की तैनाती होने लगी। मुगल काल में इसमें परिवर्तन हुआ। गांवों में चौकीदारों की व्यवस्था की जाने लगी, जो गांव में व्यवस्था बनाए रखने व अपराध रोकने का काम करते थे। मुगल काल में सूबे में सूबेदार, जिले में फौजदार व शहर में कोतवाल हुआ करते थे। तब तहसील को परगना कहते थे और परगने में शिकदार की तैनाती होती थी। वर्तमान में जो पुलिस व्यवस्था नजर आती है, उसका जनक बंगाल के गर्वनर जनरल लार्ड कार्नवालिस को माना जाता है। उनके समय दारोगा की तैनाती कर उसके अधीन पुलिसकर्मी तैनात किया जाना शुरू हुआ।

ऐसे हुआ बदलाव

  • वर्ष 1843 में पुलिस बल का गठन आइरिश पद्धति पर किया गया
  • 1860 में पुलिस आयोग बनाया गया
  • उसकी सिफारिश पर वर्ष 1861 में पुलिस एक्ट बनाया गया
  • इसकी धारा तीन के तहत पुलिस के तीन काम तय किए गए थे
  • शासकीय आदेशों का पालन कराना
  • गुप्त सूचनाओं का संग्रह करना और अपराध रोकना व अपराधियों को पकड़ना था

कोतवाल का पद हुआ करता था

इतिहासविद् राजकिशोर राजे बताते हैं कि वर्तमान पुलिस का जनक बंगाल के गर्वनर जनरल रहे लार्ड कार्नवालिस को कहा जाता है। वर्ष 1803 में आगरा अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया था। अंग्रेजों के नियंत्रण में होने के बावजूद कुछ वर्षों तक मुगलकालीन सुरक्षा व्यवस्था यहां जारी रही। अंग्रेजों ने बाद में आगरा के साथ ही दिल्ली में पुलिस व्यवस्था लागू की। मुगल काल में शहर कोतवाल का पद हुआ करता था। आजादी के बाद भी कुछ वर्षों तक शहर कोतवाल का पद रहा।

कोड़े मारना था आम बात

राजे बताते हैं कि मुगल काल में कोतवाल अगर चोरी के बाद चोर पकड़ने में असफल रहता था या चोरी का माल बरामद नहीं कर पाता था तो उसे चोरी हुए माल या सामान की क्षतिपूर्ति स्वयं करनी होती थी। उस समय कोड़े मारना आम बात हुआ करती थी। सूबेदार अंग भंग की सजा दिया करता था। मृत्यु दंड देने के लिए सम्राट से अनुमति प्राप्त करनी होती थी।

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नोर्थ वेस्ट प्रोविंस के पहले आइजी थे एचएम कोर्ट

वर्ष 1803 में आगरा अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया था। यहां आगरा प्रेसीडेंसी बनाई गई थी, जिसके गर्वनर सीटी मेटकाफ थे। इसके बाद आगरा को नोर्थ वेस्ट प्रोविंस की राजधानी बनाया गया। नोर्थ वेस्ट प्रोविंस में उप्र, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश शामिल थे। वर्ष 1860 में यहां पहले आइजी एचएम कोर्ट की तैनाती अंग्रेजों ने की थी।

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आगरा गजेटियर में उपलब्ध है ब्योरा

1905 में प्रकाशित आगरा गजेटियर में एचआर नेविल ने आगरा में पुलिस व्यवस्था की जानकारी दी है। उस समय आगरा में 31 थाने थे, जिनमें से नौ थाने शहर में थे। शहर में कोतवाली, छत्ता, हरीपर्वत, रकाबगंज, लोहामंडी, एत्माद्दौला, ताजगंज, सदर व लाल कुर्ती थे। 


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