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Enemy Property: क्या है शत्रु संपत्ति, पढ़िए सरकार ने किस तरह बनाई है निगरानी की योजना

Shatru Sampatti पूर्व गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने 2 जनवरी 2018 को लोकसभा को बताया था कि पाकिस्तानी नागरिकों द्वारा कुल 9280 संपत्ति और चीनी नागरिकों द्वारा 126 को छोड़ दिया गया था जिसका कुल मूल्य लगभग 1 लाख करोड़ रुपये है।

By Abhishek SaxenaEdited By: Published: Sat, 25 Jun 2022 03:29 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jun 2022 03:29 PM (IST)
Shatru Sampatti: देश में लगभग 1 लाख करोड़ रुपये की शत्रु संपत्ति है।

आगरा, जागरण टीम। 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के मद्देनजर, भारत से लोगों का पाकिस्तान में प्रवास हुआ था। भारत की रक्षा अधिनियम, 1962 के तहत बनाए गए भारत रक्षा नियमों के तहत, भारत सरकार ने पाकिस्तानी राष्ट्रीयता लेने वालों की संपत्तियों और कंपनियों को अपने कब्जे में ले लिया।

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शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत भारत के लिए शत्रु संपत्ति के अभिरक्षक में निहित अचल शत्रु संपत्तियों के निपटारे के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की अध्यक्षता में दो समितियां गठित की जाएंगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में मंत्रियों का एक समूह (जीओएम) 9,400 से अधिक शत्रु संपत्तियों के निस्तारण की निगरानी करेगा, जिसकी सरकारी कीमत का अनुमान लगभग 1 लाख करोड़ रुपये है।

लोकसभा में बताई शत्रु संपत्तियों की कीमत

पूर्व गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने 2 जनवरी, 2018 को लोकसभा को बताया कि कुल 9,280 दुश्मन की संपत्ति हैं। जिसमें पाकिस्तानी नागरिक और 126 चीनी नागरिकों द्वारा छोड़ी संपत्ति शामिल की गई थी। सरकार का अनुमान है कि इन संपत्तियों की कीमत करीब 1 लाख करोड़ रुपये है।

ये है शत्रु संपत्ति

बता दें कि आजादी के बाद जो लोग भारत से पाक जाकर बस गए उनकी संपत्तियों को भारत सरकार ने शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया। भारत सरकार द्वारा इस संबंध में आदेश 10 सितंबर 1959 में जारी किया गया था। वहीं शत्रु संपत्ति के संबंध में दूसरा आदेश 18 दिसंबर 1971 को जारी किया गया था। देश भर में ऐसी सभी संपत्तियां शत्रु संपत्ति स्वत: घोषित हो गईं।

चीन गए लोगों के साथ भी हुआ ऐसा

इन शत्रु संपत्तियों को केंद्र सरकार द्वारा भारत के लिए शत्रु संपत्ति के संरक्षक में शामिल किया गया था। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद चीन चले गए लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति को भी शत्रु संपत्ति में शामिल किया गया था। 10 जनवरी, 1966 की ताशकंद घोषणा में एक खंड शामिल था, जिसमें कहा गया था कि भारत और पाकिस्तान संघर्ष के संबंध में दोनों पक्षों द्वारा ली गई संपत्ति और संपत्ति की वापसी पर चर्चा करेंगे। हालांकि, पाकिस्तान सरकार ने अपने देश में ऐसी सभी संपत्तियों का निस्तारण वर्ष 1971 में ही कर दिया था।

भारत ने शत्रु संपत्ति के साथ क्या किया

कस्टोडियन के माध्यम से देश के कई राज्यों में फैली शत्रु संपत्तियां केंद्र सरकार के कब्जे में है। कुछ चल संपत्तियों को भी शत्रु संपत्ति के रूप में बांटा है। वर्ष 2017 में संसद ने शत्रु संपत्ति (संशोधन और सत्यापन) विधेयक, 2016 पारित किया, जिसमें शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 और सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों का निष्कासन) अधिनियम, 1971 में संशोधन किया था।

संशोधित अधिनियम ने शत्रु विषय और दुश्मन फर्म शब्द की परिभाषा का विस्तार करते हुए एक दुश्मन के कानूनी उत्तराधिकारी और उत्तराधिकारी को शामिल किया, चाहे वह भारत का नागरिक हो या किसी ऐसे देश का नागरिक जो दुश्मन न हो, और दुश्मन फर्म की उत्तराधिकारी फर्म, चाहे उसके सदस्यों या भागीदारों की राष्ट्रीयता कुछ भी हो।

संशोधित कानून में यह प्रावधान है कि शत्रु संपत्ति कस्टोडियन में निहित रहेगी, भले ही शत्रु या शत्रु विषय या शत्रु फर्म मृत्यु, विलुप्त होने, व्यवसाय के समापन या राष्ट्रीयता के परिवर्तन के कारण शत्रु न रह जाए। या कानूनी उत्तराधिकारी या उत्तराधिकारी भारत का नागरिक है या ऐसे देश का नागरिक है जो शत्रु नहीं है।

कस्टोडियन, केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन से अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार उसमें निहित शत्रु संपत्तियों का निपटारा कर सकता है, और सरकार इस उद्देश्य के लिए कस्टोडियन को निर्देश जारी कर सकती है।

इसलिए लाए गए ये संशोधन

संशोधनों का जोर युद्ध के बाद पाकिस्तान और चीन में प्रवास करने वाले लोगों द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों के उत्तराधिकार या हस्तांतरण के दावों से बचाव करना था। संशोधनों ने कानूनी वारिसों को दुश्मन की संपत्ति पर किसी भी अधिकार से वंचित कर दिया।

मुख्य उद्देश्य इस संबंध में अदालत के फैसले के प्रभाव को नकारना था।

विधेयक में उद्देश्यों और कारणों के बयान में कहा गया है, हाल ही में, विभिन्न अदालतों द्वारा विभिन्न निर्णयों ने शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत प्रदान किए गए कस्टोडियन और भारत सरकार की शक्तियों पर अच्छा प्रभाव डाला है। विभिन्न अदालतों द्वारा इस तरह की व्याख्या, कस्टोडियन को शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत अपने कार्यों को बनाए रखना मुश्किल हो रहा है।

कोर्ट के इन आदेशों में क्या कहा?

हजरतगंज, सीतापुर और नैनीताल में कई बड़ी संपत्तियों के मालिक महमूदाबाद के तत्कालीन राजा की संपत्ति के मामले में एक बड़ा फैसला सुनाया गया था। विभाजन के बाद, राजा इराक चले गए और लंदन में बसने से पहले कुछ वर्षों तक वहीं रहे।

उनकी पत्नी और पुत्र मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान थे जो भारतीय नागरिकों के रूप में भारत में उनके पीछे रहे और स्थानीय राजनीति में सक्रिय थे। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम लागू होने के बाद, राजा की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित किया गया था।

जब राजा की मृत्यु हुई, तो उसके बेटे ने संपत्तियों पर दावा किया। 30 साल से अधिक समय तक चली कानूनी लड़ाई के बाद, 21 अक्टूबर, 2005 को न्यायमूर्ति अशोक भान और न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की शीर्ष अदालत की खंडपीठ ने बेटे के पक्ष में फैसला सुनाया।

फैसले ने देश भर की अदालतों में आगे की दलीलों के द्वार खोल दिए, जिसमें पाकिस्तान में प्रवास करने वाले व्यक्तियों के वास्तविक या कथित रिश्तेदारों ने उपहार के दस्तावेज पेश किए। यह दावा किया कि वे शत्रु संपत्तियों के असली मालिक थे।

2 जुलाई, 2010 को तत्कालीन यूपीए सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया, जिसने अदालतों को सरकार को कस्टोडियन से दुश्मन की संपत्तियों को बेचने का आदेश देने से रोक दिया। ऐसे में 2005 के आदेश को अप्रभावी बना दिया गया और कस्टोडियन ने राजा की संपत्तियों को फिर से अपने कब्जे में ले लिया।

22 जुलाई, 2010 को लोकसभा में एक विधेयक पेश किया गया था और बाद में 15 नवंबर, 2010 को एक संशोधित विधेयक पेश किया गया था। इसके बाद इस विधेयक को स्थायी समिति को भेजा गया था। हालांकि इस विधेयक को 15वीं लोकसभा के कार्यकाल के दौरान पारित नहीं किया जा सका।

7 जनवरी 2016 को, भारत के राष्ट्रपति ने शत्रु संपत्ति (संशोधन और मान्यकरण) अध्यादेश, 2016 को प्रख्यापित किया, जिसे 2017 में कानून बनने वाले विधेयक से बदल दिया गया। 


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