Tulsi Vivah 2022: इसलिए माता तुलसी से किया जाता है भगवान शालिग्राम का विवाह, जानें पौराणिक कथा
Tulsi Vivah 2022 हर साल कार्तिक मास के द्वादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह का भव्य आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान शालिग्राम का विवाह माता तुलसी से कराया जाता है। घर में भी तुलसी विवाह करने से बहुत लाभ मिलता है।
नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Tulsi Vivah 2022: देशभर में कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। हिन्दू धर्म में इस पर्व का विशेष महत्व है। तुलसी विवाह से एक दिन पहले भगवान विष्णु चार मास के योग निद्रा से जागते हैं, जिसे देवउठनी एकादशी या देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। तुलसी विवाह के दिन भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम भगवान से माता तुलसी का विवाह रचाया जाता है। इस दिन पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। इस वर्ष तुलसी विवाह का भव्य आयोजन 5 नवम्बर (Tulsi Vivah 2022 Date) के दिन किया जाएगा। शास्त्रों में बताया गया है कि घर पर ही तुलसी विवाह का अयोजन करने से और कन्या के रूप में माता तुलसी का कन्यादान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। आइए जानते हैं क्यों कराया जाता है भगवान शालिग्राम का माता तुलसी से विवाह।
तुलसी विवाह की कथा (Tulsi Vivah 2022 Katha)
तुलसी विवाह की परम्परा सदियों से चली आ रही है। लेकिन इस परम्परा के पीछे एक पौराणिक कथा छिपी हुई है। शिव पुराण में बताया गया है कि भगवान शिव के क्रोध से एक दैत्य जिसका नाम जलंधर था, का जन्म हुआ। जलंधर का विवाह वृंदा नाम की कन्या से हुआ था जो बहुत पतिव्रता स्त्री थी। जलंधर को यह वरदान प्राप्त था कि वह तब तक नहीं मर सकता जब तक उसकी पत्नी का सतीत्व नष्ट नहीं हो जाता। इस वरदान के अहंकार में जलंधर ने चारों तरफ हाहाकार मचा दिया था। साथ ही उसने स्वर्ग लोक को भी जीत लिया था।
इस अहम में एक दिन उसने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव का वध करने का प्रयास किया। लेकिन वह सफल ना हो पाया। उसके पास वृंदा के सतीत्व की शक्ति होने के कारण भगवान शिव भी उसे पराजित ना कर सके। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास उस दैत्य को पराजित करने की विनती लेकर पहुंचे। भगवान विष्णु को भी यह ज्ञान था कि जलंधर को उसकी पत्नी वृंदा के सतीत्व ने बचा रखा है। इसके बाद भगवान विष्णु जलंधर के वेश में वृंदा के पास पहुंचे और इस अज्ञानता में वृंदा उन्हें अपना पति समझ कर पतिव्रता का व्यवहार करने लगी। इससे उसका सतीत्व टूट गया और ऐसे जलंधर का वध हो गया।
भगवान विष्णु के द्वारा किए गए इस लीला से वृंदा बहुत क्रोधित हुई और भगवान विष्णु को पाषाण बनने का श्राप दे दिया। इसके बाद भगवान विष्णु पत्थर के रूप में बन गए। इसके बाद सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। सभी देवता गण वृंदा के पास पहुंचे और उनसे भगवान विष्णु को श्राप मुक्त करने की विनती की। तब वृंदा ने उन्हें श्राप मुक्त कर दिया और स्वयं आत्मदाह कर लिया। तब वृंदा के भस्म से तुलसी का पौधा उग आया। भगवान विष्णु वृंदा के सतीत्व से इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने शालिग्राम रूप ले लिया और यह भी कहा कि वह बिना तुलसी के एक भी प्रसाद ग्रहण नहीं करेंगे। इसलिए आज भी तुलसी विवाह के दिन भगवान शालिग्राम का विवाह उनसे कराया जाता है।
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