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Shattila ekadashi 2019: इस व्रत में छह प्रकार से पूजन में तिल के प्रयोग से मिलता है मोक्ष

पद्मपुराण में षटतिला एकादशी का महात्मय बताते हुए गया है कि इस दिन तिल दान आैर विधि विधान से विष्णु जी की पूजा करने से मोक्ष प्राप्त हो कर वैकुंठ निवास का अवसर मिलता है।

By Molly SethEdited By: Published: Mon, 28 Jan 2019 11:14 AM (IST)Updated: Mon, 28 Jan 2019 11:21 AM (IST)
Shattila ekadashi 2019: इस व्रत में छह प्रकार से पूजन में तिल के प्रयोग से मिलता है मोक्ष

षटतिला एकादशी का बड़ा है महात्म्य

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हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं, परंतु जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। पद्मपुराण में भी एकादशी का बहुत ही महात्मय बताया गया है आैर उसके पूजन का विधि विधान का भी स्पष्ट किया गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन श्री हरि विष्णु का व्रत पूजन करने से हजारों गुणा फल मिलता है। इस वर्ष 31 जनवरी को माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिलों से जुड़ा हुआ है। हिंदू धर्म में तिल बहुत पवित्र माने जाते हैं। पूजा में इनका विशेष महत्व होता है।

कैसे करें तिलों का प्रयोग

षटतिला एकादशी के दिन तिलों का छह प्रकार से उपयोग किया जाता है। इसमें तिल का उबटन लगाना,  तिल से स्नान करना, तिल से हवन करना, तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना और तिलों का दान करना होता है, इसीलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है। मान्यता है कि जो मनुष्य विधिविधान पूर्वक षटतिला एकादशी के व्रत को करता है और इस दिन तिलों का दान करता है वह व्यक्ति उतने ही हजार वर्ष तक वह स्वर्गलोक में वास करता है। वहीं जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं, उनके सभी प्रकार के कष्टों और पापों का नाश हो कर मोक्ष प्राप्त होता है।

विष्णु जी का करें पूजन

षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। इस दिन सुबह उठकर तिल मिश्रत जल से स्नान करना चाहिए, भगवान विष्णु को तिल अर्पण करने चाहिए। तिल का हवन करना चाहिए, तिल से बने पकवान का प्रसाद भगवान विष्णु को चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार छह प्रकार के कृत्य में तिल का उपयोग करने से भगवान विष्णु जल्द ही प्रसन्न होते हैं और भक्त को मनवांछित फल प्रदान करते हैं। कहते हैं जब नारद मुनि त्रिलोक भ्रमण करते हुए भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे। तब स्वंय भगवान ने उन्हें षट्तिला एकादशी की क्या कथा है और इसको करने से कैसा पुण्य मिलता है, इसका वर्णन किया था।


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