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Pitru Paksha Shradh 2019 Gayasur Katha: इस राक्षस के दर्शन मात्र से पापमुक्त हो जाते थे लोग, आज भी मोक्ष भूमि के नाम से है विख्यात

Pitru Paksha Shradh 2019 Shradh 2019 Gayasur Katha Pind Daan in Gaya इस वर्ष पितृ पक्ष शकुवार 13 सितंबर से प्रारंभ होकर 28 सितंबर तक चलेगा। 16 दिनों तक श्राद्ध कर्म किए जाएंगे।

By kartikey.tiwariEdited By: Published: Thu, 12 Sep 2019 12:19 PM (IST)Updated: Thu, 12 Sep 2019 12:19 PM (IST)
Pitru Paksha Shradh 2019 Gayasur Katha: इस राक्षस के दर्शन मात्र से पापमुक्त हो जाते थे लोग, आज भी मोक्ष भूमि के नाम से है विख्यात
Pitru Paksha Shradh 2019 Gayasur Katha: इस राक्षस के दर्शन मात्र से पापमुक्त हो जाते थे लोग, आज भी मोक्ष भूमि के नाम से है विख्यात

Pitru Paksha Shradh 2019 Gayasur Katha: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पितृ पक्ष श्राद्ध प्रारंभ होता है। इस वर्ष पितृ पक्ष शकुवार 13 सितंबर से प्रारंभ होकर 28 सितंबर तक चलेगा। 16 दिनों तक पितरों के लिए श्राद्ध कर्म किए जाएंगे, जिससे वे तृप्त होकर आशीर्वाद प्रदान करें। पूरे विश्व में श्राद्ध कर्म के लिए पवित्र फल्गु नदी के तट पर बसा गया शहर का विशेष महत्व है, जिसे मोक्ष भूमि भी कहा जाता है। गयासुर राक्षस के नाम पर ही इसका नाम गया पड़ा। आइए जानते हैं गयासुर की कथा के बारे में —

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गयासुर कथा /Gayasur Katha

वायु-पुराण में प्राप्त एक आख्यान के अनुसार, आर्यावर्त के पूर्वी क्षेत्र में कोलाहल नाम के पर्वत पर गय नामक असुर ने हज़ारों वर्ष तक घनघोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को उसे वरदान देने के लिए कहा।

ब्रह्मा जी सभी देवताओं के साथ गयासुर के पास पहुँचे। उन्होंने गयासुर से वर माँगने को कहा। गयासुर ने वर माँगा कि समस्त देवताओं, ऋषियों और मुनियों का सभी पुण्य उसे प्राप्त हो जाए। उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पापमुक्त हो जाएं। इस पर सभी देवताओं ने तथास्तु कह दिया।

देवताओं के वरदान का परिणाम यह हुआ कि जो भी उसके दर्शन करता वो पापमुक्त होकर पवित्र हो जाता था। उस गयासुर के पास जाने वाला हर जीव स्वर्ग जाने लगा। विधि के विधान को समाप्त होता देखकर ब्रह्मा जी भगवान विष्णु जी के आदेश पर गयासुर के पास गए। उन्होंने कहा, “हे परमपुण्य गयासुर! मुझे ब्रह्म-यज्ञ करना है और तुम्हारे समान पुण्य-भूमि मुझे कहीं नहीं मिली। अतः तुम अपनी बीस कोस में व्याप्त शरीर को मुझे प्रदान कर दो।

गयासुर ने यज्ञ के लिए ब्रह्मा जी को अपना शरीर दे दिया। जब यज्ञ प्रारम्भ हुआ तो उसका शरीर हिलने लगा। ब्रह्मा जी ने नाभि प्रान्त से उसे सन्तुलित किया तथा विष्णु ने ह्रदय पर विराजमान होकर अपनी गदा से गयासुर के कम्पन को सन्तुलित किया। तभी से उस सम्पूर्ण बीस कोस के क्षेत्र का नाम गयासुर के नाम से विख्यात हुआ, जिसे गया के नाम से जाना जाता है।

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ब्रह्मा जी ने उस भूमि को श्राद्ध-कर्म की भूमि घोषित किया। वहाँ, तर्पण करने से पितरों की तृप्ति होती है। वायु-पुराण में तो यहाँ तक उल्लेख मिलता है कि गया की ओर मुख करके तर्पण करने मात्र से पितरों की मुक्ति हो जाती है।

आज भी हिन्दू धर्म में गया को महत्व काफी है। जो भी गया में अपने पितरों को पिंडदान करता है, उसके पितर तृप्त हो जाते हैं। गया में श्राद्ध कर्म करने से पितरों को बैकुंठ की प्राप्ति होती है।

गया में तीन पद प्रधान हैं-प्रेत पद, ब्रह्म पद और विष्णु पद। इन पदों को शिला भी कहा जाता है।

— ज्योतिषाचार्य चक्रपाणि भट्ट


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