'मूड़ैमूड़ सगरो न गिनले गिनाला'
'गांव से चले के पहिलही बताए रहन कि मेला में रस्सी न छोड़ेव, लेकिन जलेबा चाची यू न कीहिन अउर कहीं भूलाय गईन।' मिश्रिख(सीतापुर) निवासी बच्चा यह कहते हुए गमगीन दिख रहे थे। 'देखौ काका, हम्मन क निशान लाल झंडा है रस्सी थामे रहियो, एहिका थामे जरूर रह्यो।' बांदा के
इलाहाबाद, [अनिल त्रिगुणायत]। 'गांव से चले के पहिलही बताए रहन कि मेला में रस्सी न छोड़ेव, लेकिन जलेबा चाची यू न कीहिन अउर कहीं भूलाय गईन।' मिश्रिख(सीतापुर) निवासी बच्चा यह कहते हुए गमगीन दिख रहे थे। 'देखौ काका, हम्मन क निशान लाल झंडा है रस्सी थामे रहियो, एहिका थामे जरूर रह्यो।' बांदा के सुरेश ने अपनी टोली में सबसे पढ़े-लिखे दद्दन काका को सचेत किया।
मौनी अमावस्या पर संगम में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देख तो यही कहा जा सकता है, 'मूड़ैमूड़ सगरो न गिनले गिनाला।' जी हां, मौनी अमावस्या पर संगम में उमडऩे वाले रेले में खो जाने से बचने के लिए हजारों ग्रामीणों ने ऐसे ही बंदोबस्त किए थे। गांवों में ऐसी योजना तो महीनों से बनाई जा रही थी कि किसको कौन थामेगा और किसको कौन संभालेगा। भीड़ ही कुछ ऐसी थी कि सारी तैयारियां कम ही नजर आ रहीं थीं। इनकी आस्था व विश्वास देखते ही बन रही थी। बस बड़ी तमन्ना, बस ऊंचे अरमान। किसी तरह 'गंगा नहाय लेई अउर पुन्न कमाय लेई।' कोई काखे तहे कंबल दबाए तो कोई गठरी दबाए भागे चला जा रहा था। गंगा मइया से मिलने, गंगा मइया को चूमने। मौनी अमावस्या के अवसर पर सूबे के श्रद्धालुओं के साथ केरल, तमिलनाडु, आंध्रपदेश, गोवा, गुजरात, पश्चिम बंगाल समेत समूचे देश के स्नानार्थी संगम में उमड़ पड़े थे। कुछ विशेष बसों से तो कोई फ्लाइट से आया था। कुछ ने तो दूरी की फिक्र किए बिना अपने साधन से आए थे। माघ मेले का दृश्य भी अद्भुत था। क्या बच्चे, क्या बूढ़े। क्या पुरुष और क्या महिलाएं। सभी पर गंगा में डुबकी लगाने की धुन दिखी।
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