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अब 112 वर्ष बाद बनेगा ऐसा संयोग, कुंभ का पुण्य दिलाएगी डुबकी

ज्योतिर्विदों का दावा है कि इस बार ग्रह-नक्षत्रों की जुगलबंदी मंगलवार को पड़ रही मौनी अमावस्या विशिष्ट बनाने जा रही है। ऐसा दुर्लभ संयोग अगले 112 वर्ष बाद आएगा। यह संयोग अमावस्या पर संगम में डुबकी लगाने पर कुंभ पर्व से भी ज्यादा फल दिलाएगी। वयोवृद्ध ज्योतिर्विद डॉ. जेएन मिश्र

By Rajesh NiranjanEdited By: Published: Mon, 19 Jan 2015 02:04 PM (IST)Updated: Mon, 19 Jan 2015 02:05 PM (IST)
अब 112 वर्ष बाद बनेगा ऐसा संयोग, कुंभ का पुण्य दिलाएगी डुबकी

इलाहाबाद, जागरण संवाददाता। ज्योतिर्विदों का दावा है कि इस बार ग्रह-नक्षत्रों की जुगलबंदी मंगलवार को पड़ रही मौनी अमावस्या विशिष्ट बनाने जा रही है। ऐसा दुर्लभ संयोग अगले 112 वर्ष बाद आएगा। यह संयोग अमावस्या पर संगम में डुबकी लगाने पर कुंभ पर्व से भी ज्यादा फल दिलाएगी। वयोवृद्ध ज्योतिर्विद डॉ. जेएन मिश्र का कहना है वृष राशि के गुरु की मकर के सूर्य व चंद्रमा पर नौवीं दृष्टि पडऩे पर प्रयाग में कुंभपर्व लगता है। जबकि 20 जनवरी मंगलवार को सूर्य, चंद्रमा व बुध मकर राशि में रहेंगे, जिनके ऊपर कर्क राशि में उच्च के गुरु की दृष्टि पड़ेगी। जो कुंभपर्व से भी अधिक कल्याणकारी योग है। वैवर्त पुराण व निर्णय सिंधु के अनुसार ऐसे योग में गंगा-यमुना में स्नान कर दान करने से एक हजार गाय के दान व एक हजार यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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श्रीधर्मज्ञानोपदेश संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी कहते हैं अमावस्या तिथि 19 की रात 9.22 बजे लगकर मंगलवार की शाम 7.32 बजे तक रहेगी। सूर्य, बुध व चंद्रमा 20 जनवरी की सुबह 9.03 पर मकर में आएंगे तभी अमावस्या का महत्व शुरू होगा।


क्या है मौनी अमावस्या

भारतीय विद्या भवन के निदेशक ज्योतिर्विद डॉ. रामनरेश त्रिपाठी के अनुसार माघ मास की प्रथम अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन सूर्य तथा चंद्रमा गोचर में मकर राशि में आते हैं। युग प्रवर्तक मनु ऋषि का जन्म भी इसी दिन माना गया है। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मजी ने मनु महाराज व महारानी शतरूपा को प्रकट कर सृष्टि की शुरुआत की थी।

पितरों को करें स्मरण

ज्योतिर्विद आचार्य अविनाश राय के अनुसार मौनी अमावस्या पर स्नान के साथ पितरों के श्रद्धा व तर्पण का विधान है। स्नान के बाद पितरों को तर्पण, श्राद्ध व जलांजलि देने से वह उन्हें सीधे प्राप्त होता है। स्नान के बाद पितरों का नाम लेकर तीन, पांच या सात बार जलांजलि देनी चाहिए।

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