Vaivasvata Puja Vrat 2022: आज करें सूर्यदेव के साथ उनके पुत्र वैवस्वत मनु की पूजा, जानें वैवस्वत पूजा के बारे में
Vaivasvata Puja 2022 हर साल आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को वैवस्वत सूर्य पूजा की जाती है। इस दिन सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु की पूजा करने का विधान है। इस दिन सूर्य को जल चढ़ाने से हर समस्या से छुटकारा मिल जाता है।
नई दिल्ली, Vaivasvata Puja Vrat 2022: सूर्य पुराण के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सूर्य सप्तमी या वैवस्वत सूर्य के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान सूर्य के पुत्र वैवस्वत मनु की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान की पूजा करने से सभी कष्टों से छुटकारा मिल जाता है और निरोग रहते हैं। सूर्योदय के समय सूर्य देव को जल अर्पित करें। इसके साथ ही को भगवान सूर्य के स्वरूप वरुण देव की पूजा करने का विशेष विधान है। जानिए वैवस्वत की तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त।
वैवस्वत पूजा का शुभ मुहूर्त
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि प्रारंभ- 5 जुलाई शाम 7 बजकर 28 मिनट से शुरू
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि समाप्त- 6 जुलाई शाम 7 बजकर 48 मिनट तक।
उदया तिथि के कारण वैवस्वत पूजा 6 जुलाई को की जाएगी।
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कौन है सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु?
भगवान सूर्य को विवस्वान भी कहा जाता है। विवस्वान और विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा के पुत्र थे वैवस्वत मनु। वैवस्वत मनु को सत्यव्रत और श्राद्धदेव भी कहा जाता है। इस दिन इनकी पूजा करने के कारण इसे वैवस्वत पूजा के नाम से जानते हैं। मान्यताओं के अनुसार, एक समय भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया और राजर्षि सत्यव्रत के समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने राजा से कहा कि सातवें दिन जल प्रलय आएगा और पूरी धरती जलमग्न हो जाएगी। इसलिए जीव-जंतु, पेड़-पौधों, मानव जाति आदि को बचाने के लिए एक नाव बनाओ। जिन्हें इन्हें आसानी से बचाया जा सके। जब प्रचंड तूफान से नाव हिलने लगेगी तब मैं स्वयं मत्स्य स्वरूप में तुम्हारी रक्षा करुंगा। नाव को मेरी सींग से बांध देना। प्रलय की समाप्ति तक मैं नाव को खींचता रहूंगा। प्रलय के समय भगवान मत्स्य ने उस नाव को हिमालय की चोटी से बांध दिया। प्रलय के खत्म होने पर भगवान विष्णु ने फिर से वेदों का ज्ञान दिया, जिसे ग्रहण करके सत्यव्रत वैवस्वत मनु कहलाने लगे। इसी घटना को याद करके इस दिन वैवस्वत मनु की पूजा की जाती है।
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ऐसे करें वैवस्वत पूजा
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। स्नान के बाद एक तांबे के लोटे में जल लें। इस जल में लाल चंदन या सिंदूर, लाल फूल डाल सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद ही वरुण देव का नमन करते हुए 'ऊं रवये नम:' मंत्र का जाप करें। इसके बाद दीपक और धूप जला दें।
सूर्य देव की पूजा से मिलते हैं ये लाभ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान सूर्य की पूजा करने और जल चढ़ाने से मन में आत्मविश्वास बढ़ता है। हर तरह के रोगों से व्यक्ति दूर रहता है।
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