Jaya Ekadashi 2019 Vrat Katha: इस व्रत से राजा हरिश्चंद्र को मिला खोया राजपाट, पढ़ें जया एकादशी व्रत कथा
Jaya Ekadashi 2019 Vrat Katha राजा हरिश्चंद्र ने भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखा था इस व्रत के प्रभाव से उनका खोया राजपाट मिला साथ ही पत्नी और पुत्र भी मिले।
Jaya Ekadashi 2019 Vrat Katha: सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखा था, इस व्रत के प्रभाव से उनका खोया राजपाट तो मिला ही, उनकी पत्नी और पुत्र भी मिल गए। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जया एकादशी या अजा एकादशी कहलाती है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा अर्चना करने का विधान है। यह व्रत रहने से भगवान विष्णु की कृपा तो मिलती ही है, माता लक्ष्मी भी सदा प्रसन्न रहती हैं।
जया एकादशी व्रत कथा
एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से अजा एकादशी के महत्व के बारे में जानना चाहा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनको अजा एकादशी के महत्व के बारे में बताते हुए इसकी कथा सुनाई थी। आइए उस कथा के बारे में जानते हैं —
एक बार नंदन वन में उत्सव हो रहा था। इसमें देवता, संत और दिव्य पुरूष आमंत्रित थे। गंधर्व संगीत गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इसी दौरान गंधर्व माल्यवान और पुष्यवती ने नृत्य प्रारंभ किया। दोनों एक दूसरे पर मोहित हो गए और सभी मर्यादाओं को ताक पर रखकर नृत्य करने लगे।
यह देखकर देवराज इन्द्र क्रोधित हो उठे। उन्होंने दोनों को स्वर्ग से वंचित होने और पृथ्वी पर निवास करने का श्राप दिया। माल्यवान और पुष्यवती को मृत्यु लोक में पिशाच योनि मिली। दोनों हिमालय पर एक पेड़ पर रहने लगे, उनका जीवन कष्टों से भरा था। माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनों अत्यंत दु:खी थे, उस दिन दोनों ने मात्र फलाहार किया। उस रात ठंड भी अधिक थी, तो उन दोनों ने रातभर जागरण किया।
ठंड इतनी थी कि दोनों की मृत्यु हो गई। अनजाने में माल्यवान और पुष्यवती से जया एकादशी का व्रत हो गया। उन दोनों पर भगवान विष्णु की कृपा हुई और दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गई। व्रत के प्रभाव से माल्यवान और पुष्यवती पहले से भी सुन्दर हो गए और स्वर्ग लोक में पहुंच गए।
इंद्रदेव उन दोनों को देखकर चकित हो गये। उन्होंने पूछा कि तुम दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति कैसे मिली? इस पर माल्यवान ने उनको जया एकादशी के महत्व के बारे में बताया। इससे ही उनको पिशाच योनि से मुक्ति मिली है। यह सुनकर इन्द्र प्रसन्न हुए और उन्होंने इसे भगवान विष्णु का आदेश मानकर माल्यवान और पुष्यवती को स्वर्ग में रहने की अनुमति दे दी।