Rajasthan News: विश्व प्रसिद्ध पीछोला झील का पानी नहाने योग्य नहीं, जानें कितनी साफ हैं उदयपुर की झीलें
इन झीलों में से सबसे साफ और सुरक्षित फतहसागर को माना जाता है जिसका पानी पीने योग्य नहीं जबकि सबसे बड़ी पीछोला झील जिसके बीच विश्व प्रसिद्ध लैक पैलेस और जगमंदिर मौजूद है उसका पानी नहाने योग्य नहीं है।
उदयपुर [सुभाष शर्मा]। Rajasthan News: राजस्थान के उदयपुर शहर का नाम सामने आते ही यहां की झीलों का चित्र सामने आने लगता है। शहर में पीछोला, फतहसागर, स्वरूपसागर के अलावा गोवर्धनसागर, उदयसागर प्रमुख झीलें हैं किन्तु इनका पीने या नहाने योग्य नहीं।
इन झीलों में से सबसे साफ और सुरक्षित फतहसागर को माना जाता है, जिसका पानी पीने योग्य नहीं, जबकि सबसे बड़ी पीछोला झील जिसके बीच विश्व प्रसिद्ध लैक पैलेस और जगमंदिर मौजूद है, उसका पानी नहाने योग्य नहीं है, इसके बावजूद शहर के एक बड़े हिस्सों को पानी पिलाया जा रहा है।
सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से इसका खुलासा हुआ है कि शहर की जिन दो झीलों से पानी सप्लाई किया जा रहा है, उनका पानी पीने योग्य नहीं। इनमें पीछोला और फतहसागर झील शामिल हैं। फतहसागर झील को पूरी तरह सुरक्षित माना जाता है, क्योंकि इसके भीतर मानसूनी पानी ही गिरता है लेकिन अब इसका पानी भी पीने योग्य नहीं रहा। इसका कारण देवाली छोर से गिरने वाली नहर है, जिसमें देवाली के घरों का मल—मूत्र तक गिरता है।
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सरकारी प्रयासों के बावजूद इस पर पूरी तरह रोक नहीं लग पाई। इसके विपरीत शहर की सबसे बड़ी पीछोला झील के हालात एकदम विपरीत हैं। इस होटल के चारों ओर छोटी—बड़ी ही नहीं, बल्कि विश्वप्रसिद्ध होटल हैं। इसका पानी नहाने योग्य नहीं। इस झील में नहाने से लोगों से बचने के लिए कहा गया है। इस झील में नहाने वाले लोग चर्मरोग के शिकार हो सकते हैं।
जानिए जल प्रदूषण का पैमाना, पीछोला का पानी नहाने योग्य नहीं
राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल हर बार जलीय प्रदूषण को लेकर पानी की गुणवत्ता की जांच करता है। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने जुलाई 2022 में उदयपुर की उन दो झीलें, जहां से पेयजल सप्लाई किया जाता है, उनकी जल गुणवत्ता जांच की थी। उस रिपोर्ट के आधार पर पीछोला झील का पानी नहाने योग्य नहीं है। उसके पानी में बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड तय पैमाने से अधिक है।
रिपोर्ट में बताया गया कि पीछोला झील में 7, 8 और 26 जुलाई को छह जगहों से पानी के नमूने लिए गए। जिसमें लीला पैलेस होटल की जेटी के समीप बीओडी यानी बायोकेमिकल आक्सीजन का न्यूनतम स्तर 2.9 और पंच देवरिया मंदिर के समीप बीओडी का अधिकतम स्तर 4.6 पाया गया। इस तरह इस झील के पानी में बीओडी का औसतन स्तर 3.37 पाया गया।
पीने योग्य पानी का बीओडी स्तर 2.0 से कम और नहाने योग्य पानी का बीओडी स्तर 3.0 से कम होना चाहिए
राजस्थान राज्य प्रदू्षण नियंत्रण मंडल और तय मानकों के अनुसार नहाने योग्य पानी का बीओडी स्तर 3.0 से कम, जबकि पीने योग्य पानी का जल स्तर 2.0 से कम होना चाहिए। जिसके अनुसार पीछोला झील के पानी को पीने योग्य तो दूर, नहाने योग्य तक नहीं। जबकि पुराने शहर के एक बड़े हिस्से को इसी झील का पानी पिलाया जा रहा है।
इस मामले में राजस्थान के पूर्व मुख्य अभियंता ज्ञान प्रकाश सोनी बताते हैं कि यह सब प्रशासन एवं विभाग की अनदेखी का परिणाम है। यह बहुत खतरनाक है। झील का पानी सुरक्षित रखने की बजाय उन होटल संचालकों को भी नाव के जरिए होटल तक जाने की अनुमति दे रखी है, जहां सड़क मार्ग के जरिए जाया जा सकता है।
पीछोला झील में महज एक होटल लैकपैलेस और जग मंदिर तक ही जाने के लिए नाव संचालन की अनुमति दी जानी चाहिए, जबकि दर्जनों होटल की जैटी झील में लगी है और डीजल—पेट्रोल की नावें संचालित होती रही हैं।
फतहसागर से भी पेयजल सप्लाई, उसका पानी भी सुरक्षित नहीं
उदयपुर की दूसरी बड़ी और सुरक्षित मानी जा रही फतहसागर झील का पानी अब पेयजल लायक नहीं रहा। गत सात और आठ जुलाई को जब पीछोला झील से पानी के नमूने लिए गए, तब फतहसागर झील से चार स्थानों से भी पानी के नमूने लिए गए। यहां न्यूनतम बीओडी स्तर 1.7 जबकि अधिकतम स्तर 2.9 पाया गया। इस तरह इस झील का औसतन बीओडी स्तर 2.22 पाया गया, जो पीने योग्य नहीं माना जाता।
हाईकोर्ट के आदेश पर पेट्रोल—डीजल की नावों का संचालन थमा पर पूरी तरह नहीं
राजस्थान हाईकोर्ट ने एक अक्टूबर से उदयपुर की झीलों के पानी को सुरक्षित रखने के लिए उनमें तरल ईंधन वाली नावों के संचालन पर पूरी तरह रोक लगा दी। फतहसागर में इस तरह की नावें पूरी तरह थम गई लेकिन पीछोला झील में अभी भी नावों का संचालन किया जा रहा है। नगर निगम के रोक नहीं लगाए जाने पर झील और पर्यावरण प्रेमियों ने विरोध भी जताया है।
झील संरक्षण समिति से जुड़े डॉ. अनिल मेहता बताते हैं कि झीलों के आसपास होटलों से गिरने वाली गंदगी पर पूरी तरह लगाम लगाया जाना चाहिए, साथ ही झीलों को नावमुक्त रखना चाहिए। तभी यहां की झीलें साफ हो जाएंगी। उदयपुर की स्वरूपसागर झील सबसे अधिक प्रदूषित है, जिसमें जलीय जीवन तक खतरे में है।