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International Nurses Day 2022 : कोरोना काल में पलविंदर ने आइसोलेशन वार्ड में दिन-रात की मरीजों की सेवा, परिवार तक की नहीं की परवाह

Happy International Nurses Day 2022 कोरोना काल में सिविल अस्पताल की नर्स पलविंदर कौर ने आइसोलेशन वार्ड में दिन-रात मरीजों की सेवा की। पलविंदर इस दौरान खुद कोरोना की चपेट में आ गई और बच्चों व परिवार को छोड़ खुत को होम आइसोलेट किया।

By Vinay KumarEdited By: Published: Thu, 12 May 2022 07:36 AM (IST)Updated: Thu, 12 May 2022 07:36 AM (IST)
World Nursing Day : पलविंदर ने कोरोना काल में परिवार तक की परवाह किए बिना मरीजों की सेवा की।

लुधियाना [अशवनी पाहवा]। World Nursing Day 2022: कोरोना काल में जब कई मेडिकल स्टाफ सिविल अस्पताल में जाने से कतराते थे, वहीं पलविंदर कौर अपने घर परिवार की परवाह न कर कोरोना आइसोलेशन वार्ड में दिन-रात मरीजों की सेवा में लगी रहती थी। हालत यह हुई कि सेवा करते-करते पलविंदर खुद कोरोना की चपेट में आ गई और बच्चों व परिवार को छोड़ खुद को होम आइसोलेट कर लिया। परिवार के लोग परेशान हो गए, लेकिन कोरोना संक्रमण के दौरान भी वह घर पर रहकर अस्पताल में भर्ती मरीजों से मोबाइल पर संपर्क में रही। खुद कोरोना पीड़ित होने के बावजूद मरीजों को प्रेरित करती रही। 

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पलविंदर कौर कहती हैं कि मरीज भी उनके परिवार के अंग है और वह उन्हें अलग नहीं छोड़ सकती थी। यही कारण था कि उसने आइसोलेशन वार्ड के अंदर ड्यूटी करने से कभी इंकार नहीं किया, जबकि लोग उस वार्ड की ओर रुख तक नहीं करते थे। वह कहती हैं कि कोरोना काल में लगातार आठ घंटे आइसोलेशन वार्ड में रहकर भी उसे कभी अपने परिवार की चिंता नहीं हुई, क्योंकि मरीजों को मेरी जरूरत थी और मैंने अपना कर्तव्य निभाया।

बस्ती जोधेवाल के कैलाश नगर में रहने वाली स्टाफ नर्स पलविंदर कौर कहती हैं कि वह पिछले करीब 10 सालों से सिविल अस्पताल में तैनात है। लेकिन कोरोना काल जैसा समय अपने जीवन में नहीं देखा। आरंभ के कुछ दिनों में थोड़ा भय लगता था, लेकिन उसके परिवार ने उसका मनोबल बढ़ाया और फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 20 अगस्त 2020 को कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद वह 17 दिनोें तक अपने बच्चों से अलग घर में आइसोलेट रही और नेगेटिव होने के बाद फिर से मरीजों के बीच आ गई।

पलविंदर कहती है कि जब कोई कोरोना मरीज नेगेटिव होकर घर लौटता था तो उसे बड़ा सुकून मिलता था। मरीज उन्हें इस तरह से देखता था, जैसे वह उनके परिवार का सदस्य है और उसने उनकी जान बचाई है। आज भी कई मरीज उनसे मिलते या फोन पर संपर्क में रहते हैं। पलविंदर कहती हैं कि मरीजों की दुआ से ही वह कोरोना संक्रमण से उबरी और फिर से ड्यूटी पर आ सकी। खासबात यह है कि कोरोना के दौरान घर जाते ही पलविंदर खुद को सेनिटाइज्ड करती थी और उसके बाद अपने परिवार व बच्चों के बीच जाती थी। पलविंदर कहती हैं कि कभी-कभी बच्चों से दूर रहना अखरता था, लेकिन मरीजों के स्वस्थ होने और उनकी दुआ से जो अनुभूति होती थी, उसे बयां नहीं कर सकती।


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