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    AAP RS Candidate Sant Seechewal: पवित्र काली बेईं को साफ कर दिखाई नदियों को प्रदूषण मुक्त करने की राह, दुनिया को दिया सीचेवाल माडल

    By Pankaj DwivediEdited By:
    Updated: Sat, 28 May 2022 05:29 PM (IST)

    संत सीचेवाल ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पवित्र शबद पवन गुरु पानी पिता माता धरत महत्त को हर जनमानस के दिल में बिठाने को लेकर गांव सीचेवाल से समाज सेवा की शुरुआत की। उन्हें 160 किमी लंबी काली बेईं की सफाई का श्रेय दिया जाता है।

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    पद्मश्री संत बलबीर सिंह सीचेवाल की फाइल फोटो।

    हरनेक सिंह जैनपुरी, कपूरथला। आम आदमी पार्टी ने इस बार पंजाब से दो ऐसे चेहरों के नाम राज्यसभा सदस्य के रुप में चुने हैं, जो पद्मश्री पुरस्कार से अलंकृत हैं। इनमें से एक हैं पद्मश्री संत सीचेवाल और दूसरे पद्मश्री विक्रमजीत सिंह साहनी। संत बलबीर सिंह सीचेवाल नदियों में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए जाने चाहते हैं। उन्हें सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) में 160 किमी लंबी काली बेई नदी की सफाई का श्रेय दिया जाता है। उन्हें वर्ष 2017 में पर्यावरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया गया था।

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    संत सीचेवाल ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पवित्र शबद पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत्त को हर जनमानस के दिल में बिठाने को लेकर गांव सीचेवाल से समाज सेवा की शुरुआत की। उन्होंने लुप्त हो रही पवित्र काली बेई को पुनः जीवंत करने के साथ देश भर में पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाई है। वह पंजाब के साथ साथ गंगा व देश की अन्य प्रमुख नदियों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने की मुहिम में शिद्दत से जुटे हुए हैं।

    संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने न केवल काली बेई की तस्वीर बदली, बल्कि ऐसा माडल भी विकसित किया, जिससे खेतों में फसलें और बाग-बगीचों में फूल और फलों के पेड़ भी लहराने लगे हैं। पर्यावरण को साफ रखने के लिए किए गए संघर्ष के लिए टाइम्स पत्रिका ने वर्ष 2008 में उन्हें दुनिया के 30 पर्यावरण नायकों की सूची में शामिल किया था। सीचेवाल माडल अब विभिन्न राज्यों की सरकारें भी अपना रही हैं।

    गंदगी, सीवरेज और फैक्ट्रियों के गंदे पानी के कारण 163 किलोमीटर काली बेईं का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर था। छह से ज्यादा नगरों और 40 गांवों के लोग इसमें कूड़ा भी फेंकते थे। लोगों की नासमझी से यह नदी गंदे नाले में तब्दील हो गई थी। इससे लगभग 93 गांवों की 50 हजार एकड़ जमीन सूखे की चपेट में आ गई। संत सीचेवाल की नजर इस मर रही नदी पर पड़ी। उन्होंने प्रण लिया कि वह इस नदी का उद्धार कर रहेंगे। इसके लिए उन्होंने वर्ष 2000 में जनचेतना यात्रा आरंभ की। इसके साथ ही कारसेवा के जरिए काली बेईं की सफाई शुरू कर दी। पहले खुद लगे तो चंद लोग उनके साथ जुटे, फिर धीरे धीरे लोग जुड़ते गए और कारवां बनता चला गया और काली बेईं स्वच्छ जल की धारा बहने लगी।

    गंदा पानी साफ कर सिंचाई में लगाया

    नदी तो साफ होने लगी पर एक सवाल संत सीचेवाल को परेशान करने लगा कि गंदे पानी का क्या किया जाएगा। सीवरेज और फैक्ट्रियों का गंदा पानी नदियों में गिरे या कहीं और जमा हो, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य को नुकसान ही पहुंचाएगा। सीचेवाल ने इस पर मंथन किया और गंदे पानी को साफ कर उसका इस्तेमाल खेती में करने का देसी तरीका निकाला। गंदे पानी को देसी तरीके से साफ कर खेती के लिए इस्तेमाल करने वाले सींचेवाल माडल को कई राज्य सरकारें भी लागू कर चुकी हैं।

    क्या है सीचेवाल माडल

    संत सीचेवाल ने काली बेईं में सीवरेज के गंदे पानी को जाने से रोकने के लिए सीवर लाइन बिछाई। नदी के गंदे पानी को एक बड़े तालाब में जमा करना शुरू किया। तालाब में डालने से पहले पानी को तीन गड्ढों से गुजारा गया। देसी तरीके से बना यह सीवरेज प्लांट पूरी तरह सफल रहा। इस प्लांट के जरिये साफ हुए पानी का खेती में इस्तेमाल होने लगा।

    अभी बहुत काम बाकी है : सीचेवाल

    संत सीचेवाल का कहना है कि अभी तो बहुत काम पड़ा है। काला संघिया ड्रेन व बुड्ढा नाला को साफ करना बढ़ी चुनौती है, इसे अंजाम तक पहुंचाना होगा। लुधियाना के बुड्ढा नाला, काला संघिया व जमशेर ड्रेन को दरियाओं में जाने से रोकना प्राथमिकता है। वह कहते हैं कि प्रदूषण से अंतिम सांस तक जंग जारी रहेगी। देश की अन्य नदियों के जनता के सहयोग से ही साफ किया जा सकता है। नदियों और जलस्रोतों की सफाई सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन राजनीतिक दलों के नेता इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है। प्राकृतिक जल स्रोतों को दूषित करने पर आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए