इन्होंने मन की सुंदरता को परखा और हो गए एक-दूसरे के
एक नि:स्वार्थ प्रेम जहां न तो शारीरिक सौंदर्य मायने रखता है और न ही यह बात कि 'लोग क्या कहेंगे...' जानते हैं कुछ एेसे ही किस्से...
जालंधर [वंदना वालिया बाली]। प्रेम व समर्पण की परिभाषा बहुत विस्तृत है। अधिकांश मामलों में प्रेम आकर्षण से शुरू होता है लेकिन कुछ मामले ऐसे होते हैं जहां मन की सुंदरता को ही सर्वोपरि माना जाता है। एक नि:स्वार्थ प्रेम जहां न तो शारीरिक सौंदर्य मायने रखता है और न ही यह बात कि 'लोग क्या कहेंगे...'। प्रेम के उत्सव यानी वेलेंटाइन डे पर ऐसे ही कुछ उदाहरण संग्रहित किए हैं हमने, जहां कोई न कोई शारीरिक कमी होने के बावजूद प्रेम हुआ। शारीरिक आकर्षण से कहीं ऊपर वाला 'लव'।
जज्बे की रानी, समर्पण का सरोज
ओड़िसा की रहने वाली रितुपरना उर्फ रानी 25 साल की है। वह इन दिनों दिल्ली में एसिड अटैक फाइटर लक्ष्मी द्वारा शुरू की गई स्टॉप एसिड अटैक कैंपेन के तहत चल रहे 'शीरोज़ होम' में रहती है, जहां उसके आगामी इलाज का इंतजाम भी किया जा रहा है। रानी ने बताया कि मात्र 15 साल की उम्र में 2009 में उस पर एसिड अटैक हुआ। सिर के अधिकांश भाग के साथ-साथ पीठ व शरीर का बायां हिस्सा भी बुरी तरह झुलस गया था। आंखों की रोशनी चली गई। वह तेजाब से करीब 80 प्रतिशत जल चुकी थीं।
नौ महीने अस्पताल के आइसीयू में रही। करीब पांच साल तक अस्पताल में इलाज चलता रहा। इसी अस्पताल की एक नर्स का दोस्त सरोज अक्सर वहां आता और सभी पेशेंट्स से भी मिलता था। रानी से भी वह कई बार मिला था। रानी के परिवार का सारा पैसा उसके इलाज पर बह गया था। दो माह से अस्पताल के कमरे का किराया नहीं दे पाए थे। उस पर भी उसकी हालत ज्यादा सुधरती न देख अस्पताल वालों ने रानी का आगे इलाज करने से इन्कार कर दिया और उसका सामान उठाकर बाहर फेंकना शुरू कर दिया।
इसी बीच सरोज वहां पहुंच गया। उक्त नर्स ने उसे चेताया कि रानी के ठीक होने की उम्मीद बहुत कम है। सरोज ने न केवल रानी के सारे बिल अदा किए, बल्कि अस्पताल वालों के चैलेंज को भी स्वीकार किया। उसने चार माह में ठीक करने की बात कह दी। उसने अपनी मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव की जॉब छोड़ दी और पूरा समय रानी की तिमारदारी में लगाने लगा। जो कुछ धन राशि कमा कर जोड़ी थी सभी रानी के इलाज पर खर्च दी।
सरोज के परिवार में भी इस बात को लेकर तनाव रहने लगा, पर वह अपने निर्णय पर अडिग रहा। सरोज की मेहनत व रानी के सकारात्मक जज्बे ने रानी को चार महीने में चलने लायक बना दिया। आगे के इलाज के लिए रानी को 'शीरोज' में दिल्ली आना पड़ा। सरोज ओडि़शा में ही रह गया।
इसी दौरान उसे एहसास हुआ कि उसका जीवन रानी के बिना अधूरा है। उनकी दोस्ती, उनका अपनापन प्रेम में बदल चुका है। अपने प्रेम का इजहार करने सरोज दिल्ली पहुंचा और रानी को 2016 में प्रपोज़ किया। उसे भी शीरोज़ में ही जॉब भी मिल गई है और अब निरंतर इलाज के बाद रानी की आंखों में करीब 30 प्रतिशत रोशनी लौट आई है। वे दोनों संग जीवन बीताने का प्रण कर चुके हैं और जल्द ही शादी करने वाले हैं।
प्रोत्साहन बना प्रेम मंत्र
दूरदर्शन जालंधर से बतौर असिस्टेंट स्टेशन डायरेक्टर रिटायर हुए डा. हरजीत सिंह अब पंजाबी फिल्में निर्देशित करते हैं। हरभजन मान व नीरू बाजवा की 'हीर रांझा' तथा पवन मल्होत्रा की 'एह जनम तुम्हारे लेखे' जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके हरजीत सिंह की हमसफर हैं डा. तेजिंदर कौर। एक शिक्षाविद होने के साथ वह बेहतरीन लेखिका व गीतकार भी हैं। उनकी बेटी सरगी अभिनेत्री हंै तो दामाद अनुराग सिंह व बेटा परमशिव भी निर्देशक हैं।
कालेज और फिर यूनिवर्सिटी में हुई इनकी दोस्ती से आपसी अंडरस्टैंडिंग बढ़ी और दोनों ने जीवनसाथी बनने का फैसला किया। यह कोई साधारण फैसला नहीं था। दरअसल, डा. तेजिंदर का बायां हाथ व शरीर का कुछ भाग बचपन में हुए एक हादसे में झुलस गया था। वह अपने उस हाथ को छिपाने के लिए हमेशा उस पर एक रुमाल बांधे रखती थीं।
डॉ. हरजीत ने डॉ. तेजिंदर कौर की उस भावना को दूर करने के लिए उन्हें ब्राज़ील के शिल्पकार एंटोनियो लिसबोआ के बारे में एक कविता सुनाई, जिसके हाथों की उंगलियां न होने पर वह अपनी बाहों पर औजार बांध कर शिल्पकारी के अद्भुत नमूने तैयार करता था। उनके प्रोत्साहन व निश्चल प्रेम ने दोनों को जीवनसाथी बनाया।
डा. हरजीत सिंह का कहना है कि 'गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी में हमारी दोस्ती हुई, एक-दूसरे को जानने का मौका मिला तो तेजिंदर के स्वभाव की खूबसूरती के आगे कभी उसकी कोई कमी दिखाई ही नहीं दी। वह बेहद मिलनसार व खुशमिजाज नेचर की हैं। दिल की गहराइयों को खूबसूरती से शब्दों में पिरोने वाली तेजिंदर केवल मेरी हमसफर ही नहीं बल्कि हमनवां भी बन गईं।'
'ज्योति' ने रोशन हुआ जहां
बात सितंबर 2012 की है। लुधियाना के गुरविंदर सिंह माथा टेकने गुरुद्वारे गए। वहां सीढिय़ों पर पैर फिसलने से गिरे और रीढ़ की हड्डी में लगी चोट के कारण चलने की शक्ति खो बैठे। डेढ़ साल बिस्तर पर पड़े रहने से बेड सोल हो गए। भविष्य अंधकारमय लगने लगा, लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। बेड पर पड़े-पड़े पीठ पर घाव हो गए, इन्हीं के इलाज के लिए गुरदासपुर एक दोस्त के अस्पताल में पहुंचे। वहां प्रशिक्षण ले रही नर्स ज्योति से मुलाकात हुई।
दोनों की बातों का सिलसिला आगे बढ़ा और एक-दूसरे के व्यक्तित्व से प्रभावित हो उन्होंने एक होने का फैसला कर लिया। अक्टूबर 2016 में दोनों ने कोर्ट मैरिज कर अपने प्रेम को प्रमाणित किया। 2014 में गुरविंदर ने स्पाइनल कोर्ड इंजरी एसोसिएशन की मदद से री-हैबिलिटेशन सेंटर में व्हील चेयर पर ही अपने सभी काम करने की ट्रेनिंग ली और लगभग पूरी तरह आत्मनिर्भर हो चुके हैं। आत्मविश्वास से ओतप्रोत गुरविंदर को जालंधर में एक अस्पताल में व्हील चेयर यूजर्स की काउंसलिंग करते हैं। इस दम्पति का उदाहरण अनेक लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन चुका है।
खुशियों की 'वर्षा'
दिव्यांग सौरभ व वर्षा की मोहब्बत की कहानी जानकार लगता है कि प्रेम आज भी 'जिंदाबाद' है। वर्षा न सिर्फ दिव्यांग सौरभ को दिल दे बैठीं, बल्कि दुनिया वालों से लड़कर उनसे शादी भी की। सौरभ पैर से असहाय हैं, लेकिन पटना की वर्षा ने सौरभ की तन से ज्यादा मन की खूबसूरती पर ध्यान दिया। वर्षा बताती हैं कि एक कोचिंग में पढ़ाने के दौरान सौरभ से उनकी मुलाकात हुई। उन्होंने मुझे अपने कोचिंग में कंप्यूटर क्लास लेने के लिए ऑफर किया।
उनके कोचिंग में मैं पढ़ाने लगी। मैंने महसूस किया कि सौरभ का व्यवहार काफी अच्छा हैं और वह नशा नहीं करते। बातचीत कब दोस्ती और फिर प्यार में बदल गई पता ही नहीं चला। शादी के पहले वर्षा की मां ने सवाल खड़े किया कि उनकी वह अच्छी-भली लड़की है और लड़का...? मगर, वर्षा ने अपनी मां को समझाया कि यदि किसी शारीरिक तौर पर सामान्य लड़के से उनकी शादी हो जाए और लड़के का व्यवहार खराब हो तो? सौरभ की तरह उस लड़के का किसी दुर्घटना में पैर चला जाए तो?
मां ने वर्षा की बात मानकर उन दोनों की शादी करवा दी। वर्षा कहती हैं, मुझे अपने पति के साथ पार्क या सिनेमा हॉल जाने में कोई लज्जा नहीं आती। बड़ी बात है कि वह हर पल मेरे साथ हैं। सौरभ बताते हैं, 'मैं पूरी कोशिश करता हूं कि वर्षा की हर खुशी का ख्याल रखूं। मेरी कोशिश है कि हमारा प्यार किसी के लिए मिसाल बन सके।'
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