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कर्ज का जंजाल: पंजाब में 15 सालों में 16 हजार किसानों व खेती मजदूरों ने दी जान

पंजाब में तीन विश्‍वविद्यालयों द्वारा किए गए सर्वेक्षण में खुलासा हुआ है कि पिछले 15 सालों में पंजाब के 16 हजार 606 किसान व खेत मजदूर खुदकशी कर चुके हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 19 Jan 2018 02:32 PM (IST)Updated: Fri, 19 Jan 2018 04:30 PM (IST)
कर्ज का जंजाल: पंजाब में 15 सालों में 16 हजार किसानों व खेती मजदूरों ने दी जान
कर्ज का जंजाल: पंजाब में 15 सालों में 16 हजार किसानों व खेती मजदूरों ने दी जान

जालंधर, [कुसुम अग्निहोत्री]। पिछले 15 सालों में पंजाब के 16 हजार 606 किसान व खेत मजदूर खुदकशी कर चुके हैं। सरकार के आदेश पर पंजाब कृषि विश्वविद्यायल लुधियाना (पीएयू), पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला और गुरुनानकदेव विश्वविद्यालय अमृतसर द्वारा किए गए एक संयुक्त सर्वे की रिपोर्ट के इस आंकड़े को लेकर अब भारतीय किसान यूनियन हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।

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पहले एक बार उसकी याचिका यह कहते हुए रद्द कर दी गई थी कि खुदकशी का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। यूनियन द्वारा किसानों को मुआवजा देने का मांग की जाएगी। भारतीय किसान यूनियन के जरनल सेक्रेटरी जगमोहन सिंह ने बताया कि सरकार द्वारा करवाए गए सर्वे की रिपोर्ट से विश्वसनीय और क्या डाटा हो सकता है।

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इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2000 से लेकर 2015 तक 9007 किसानों और 7,234 खेतीबाड़ी मजदूरों ने खुदकशी की है। पंजाब के छह जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। इनमें 88 फीसदी खुदकशी के मामले दर्ज किए गए हैं। पंजाब के 22 जिलों में यह सर्वे किया गया है।

पीएयू के एचओडी इक्नोमिक्स एंड सोशल डिपार्टमेंट के प्रो. सुखपाल सिंह के नेतृत्व में हुए छह जिलों के सर्वे रिपोर्ट के अनुसार 14, 667 किसान व मजदूरों ने 2000 से 2015 तक इन जिलों में खुदकुशी की है जिनमें 1238 खुदकुशी लुधियाना, 1423 मोगा, 1706 बरनाला, 3094 बङ्क्षठडा व 3818 खुदकुशी के मामले मानसा में सामने आए हैं।

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पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफेसर किसानों की आत्महत्या के कारणों की पता लगाने वाली टीम के सदस्य प्रो. सुखपाल सिंह बताते हैं कि पंजाब के ग्रामीण इलाकों में हमारी रिपोर्ट के अनुसार 35,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। किसानों की आय इतनी नहीं है कि वह कर्ज दे सकें।

कृषि मामलों के जानकार और पंजाब के अर्थशास्त्री सुच्चा सिंह गिल ने बताया कि पंजाब के कर्ज के कारण किसानों की आत्महत्या के मामले 1997 में तब शुरू हुए थे जब कॉटन बेल्ट में फसल बर्बाद होने पर कपास किसान कर्ज न चुकाने के कारण आत्महत्या करने लगे।

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अब तो खतरे की घंटी तक स्थिति पहुंच चुकी है। रिपोर्ट यह भी जाहिर कर रही है कि 1997 में कर्ज 5700 करोड़ था जो कि अब 80,000 करोड़ से ऊपर पहुंच चुका है। इन कर्जों में 62 फीसद कर्ज सरकार द्वारा संचालित बैंकों से हैं और 38 फीसदी कर्ज अन्य महाजनों से प्राप्त है। वह बताते हैं कि 64 फीसदी कुल एग्रीकल्चर का पैसा तो कर्ज देने में ही चला जाएगा।

आमदनी कम, खर्च ज्यादा

चंडीगढ़ स्थित ग्रामीण एवं औद्योगिक विकास अनुसंधान केंद्र की ओर से किए गए अध्ययन के अनुसार, पंजाब के 96 फीसदी ग्रामीण परिवारों की आय उनके खर्च की तुलना में कम है। 98 फीसदी ग्रामीण परिवार कर्ज में डूबे हैं। ऐसे में पंजाब की भयावह स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

अधिकतर किसान कम पढ़े लिखे

आत्महत्या करने वाले किसानों में अधिकतर अनपढ़ या प्राइमरी पास ही थे। बहुत ही कम किसान मैट्रिक पास थे।

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