भेदभाव के खिलाफ हक की अनोखी जंग, इस बॉलीवुड फिल्म को बनाया हथियार
जाति-पाति के खिलाफ हक की लड़ाई में फिल्म आर्टिकल-15 पंजाब के गुरदासपुर जिले के कई सीमावर्ती गांवों में हथियार बन रही है। इन में अनुसूचित जाति के लोग पानी के हक से भी वंचित हैं।
गुरदासपुर, [सुनील थानेवालिया]। बॉलीवुड फिल्म 'आर्टिकल-15' का दृश्य- नायक एक गांव से गुजरते वक्त ड्राइवर को पानी की बोतल लाने के लिए कहता है। ड्राइवर यह कहकर पानी लाने से मना कर देता है कि ये नीची जाति के लोगों का गांव है। यहां से तो बोतल में बंद पानी भी नहीं ले सकते। फिल्म का यह दृश्य देख इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन की पंजाब इकाई के उपाध्यक्ष रमेश राणा को अपना 15 साल पहले किया संघर्ष याद आ जाता है। अब वह पानी पर हक की लड़ाई में इस बॉलीवुड फिल्म को मुख्य हथियार बना रहे हैं। जातिवादी सोच और इसके नाम पर पानी के लिए भेदभाव के पंजाब के गुरदासपुर और पठानकोट के कई गांवों के नीची जाति के लोग आज भी शिकार हैं।
राणा कहते हैं कि उन्हें आज भी याद है कि वर्ष 2004 में धार ब्लॉक के कई गांवों में पहाड़ों से आने वाले पानी को उच्च जाति के लोग नीचे बहने नहीं देते थे। नीचे के गांव में अनुसूचित जाति के लोग रहते थे। उच्च जाति के लोग पानी पर अपना हक समझते थे। राणा कहते हैं, उस वक्त हमने अनुसूचित जाति के लोगों के पानी के लिए काफी संघर्ष किया था, लेकिन कुछ कारणों से सफल नहीं हो पाए थे। इस लड़ाई को जीतने का ख्याल मन से उतर गया था। बॉलीवुड फिल्म आर्टिकल-15 अब इस लड़ाई में एक बड़ा हथियार है। इससे जाति-पाति पर वार कर भेदभाव का शिकार लोगों को पानी पर उनका हक दिलाएंगे।
रमेश राणा ने पेंडू मजदूर यूनियन, डेमोक्रेटिक मुलाजिम फेडरेशन, फेडरेशन के सदस्य संगठन आशा वर्कर, आंगनबाड़ी मुलाजिम यूनियन की बैठक बुलाई और जात-पात के भेदभाव के खिलाफ एकजुट होकर लडऩे की बात रखी। सभी यूनियन इस पर एकजुट हो गईं।
यूनियनों ने गांव-गांव तक इस फिल्म का दिखाने के लिए फंड इकट्ठा किया है। राणा ने सबसे पहले अपनी यूनियन के वर्करों को पठानकोट में थियेटर में यह फिल्म दिखाई। फंड से इकट्ठा रुपयों से प्रोजेक्टर खरीदा गया है। इस प्रोजेक्टर से यूनियन पठानकोट के धार क्षेत्र के अलावा गुरदासपुर जिले के दूरदराज के गांवों में लोगों को यह फिल्म दिखाकर अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करेंगे।
प्रोजेक्टर पर फिल्म देखते यूनियन के सदस्य।
कुएं से पानी पीने नहीं लेने दिया जाता था
करीब 30 साल पहले धार ब्लॉक के गांव मट्टी कोट में ऊंची जाति के लोग गांव के कुएं से निचली जाति के लोगों को पानी पीने नहीं देते थे। इस सामाजिक बुराई के खिलाफ उनकी यूनियन ने संघर्ष किया था और इस भेदभाव को समाप्त कराया था।
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रमेश राणा और अमरजीत शास्त्री।
सीमा से सटे और धार क्षेत्र में दूरियां ज्यादा
यूनियन यह फिल्म गुरदासपुर के सीमा से सटे गांवों और धार ब्लॉक के गांवों में खासकर दिखाएगी। इन क्षेत्रों में अब भी जात-पात के नाम पर बहुत भेदभाव है।
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भेदभाव वाले गांवों की सूची कर रहे तैयार
डेमोक्रेटिक मुलाजिम फेडरेशन के नेता अमरजीत शास्त्री उन गांवों की सूची तैयार कर रहे हैं, जहां अनुसूचित वर्ग के साथ भेदभाव ज्यादा है। शास्त्री कहते हैं कि गुरदासपुर लोकसभा हलके के कई क्षेत्रों का दौरा करने के बाद हमारे सामने आश्चर्यजनक तथ्य सामने आए। जाति-पाति को लेकर विचारों का असर लोगों में अब भी बहुत गहरा है। यह भेदभाव अब अनुसूचित जाति के लोगों के अंदर भी पहुंचने लगा है। वे खुद भी एक-दूसरे को भेदभाव की नजर से देखने लगे हैं। गांवों के सामुदायिक भवन में इस फिल्म को दिखाया जाएगा। इस बात का ध्यान रखेंगे कि संतुलन बना रहे।
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