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तलाक केस में पत्‍नी अदालत में नहीं आ रही थी, हाईकोर्ट फिर उठाया यह कदम

तलाक के एक मामले में पत्‍नी को बार-बार अदालत में पेश नहीं होना भारी पड़ गया। पत्‍नी के रवैये पर सख्‍त हाई कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला सुना दिया।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 03 Sep 2019 08:31 AM (IST)Updated: Tue, 03 Sep 2019 08:30 PM (IST)
तलाक केस में पत्‍नी अदालत में नहीं आ रही थी, हाईकोर्ट फिर उठाया यह कदम
तलाक केस में पत्‍नी अदालत में नहीं आ रही थी, हाईकोर्ट फिर उठाया यह कदम

चंडीगढ़, [कमल जोशी]। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने वैवाहिक विवाद के मामले को अदालत में लटकाने और सुनवाई के दौरान लगातार अनुपस्थित रहने पर पत्नी के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला दे दिया और तलाक की उसकी मांग मंजूर कर ली। हाईकोर्ट ने कहा है कि अदालत और मध्यस्थता की तारीखों पर पेश न होकर पत्नी ने अपने तलाक को स्वयं आमंत्रित किया है।

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कोर्ट में बार-बार पत्नी की गैरहाजिरी पर पति की तलाक की मांग मंजूर

इस मामले में बठिंडा अदालत द्वारा दिए गए आदेशों के खिलाफ सेना में कार्यरत एक लेफ्टिनेंट कर्नल की याचिका को जस्टिस राजन गुप्ता और जस्टिस मंजरी नेहरू कौल की खंडपीठ ने स्वीकार कर लिया। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में पत्नी ने ट्रायल कोर्ट में जहां पति के साथ रहने का बयान दिया वहीं, मध्यस्थता और हाईकोर्ट में लगातार सुनवाइयों में पेश न होकर साबित कर दिया कि वह पत्नी के तौर पर अपने दायित्वों को निभाने की इच्छुक नहीं है।

लेफ्टिनेंट कर्नल ने बठिंडा अदालत के उन आदेशों को चुनौती दी थी जिनमें ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता और उनकी पत्नी की आपसी समझौते से तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था। बठिंडा अदालत ने यह आदेश  जिला अदालत में पत्नी द्वारा आपसी समझौते से तलाक से इन्‍कार कर देने के बाद दिया था। इसके बाद जिला अदालत ने 11 नवंबर, 2016 को तलाक की याचिका को खारिज कर दिया।

जिला अदालत के फैसले के खिलाफ  दायर की गई अपील पर हाईकोर्ट ने 16 दिसंबर, 2017 को इस मामले को मध्यस्थता से सुलझाए जाने के लिए मध्यस्थता केंद्र में भेज दिया था। अपीलकर्ता की पत्नी के मध्यस्थता केंद्र में पेश न होने पर मामला दोबारा हाईकोर्ट पहुंच गया। हाईकोर्ट में भी लगातार सात सुनवाइयों पर पेश न होकर लगभग दो साल के अंतराल के बाद बीती 23 जुलाई को हाईकोर्ट में पेश होकर दावा किया कि वे अपने पति के साथ असम में उनकी कंपनी में रहेंगी।

इस दौरान अपीलकर्ता पति ने 18 जुलाई को अदालत में एक हलफनामे में कहा कि वे अपनी पत्नी को सात लाख रुपये की एलीमनी अदा करने को तैयार है। अदालत को बताया गया कि दंपती की पुत्री अब अपीलकर्ता पिता के साथ रहती है और वह 2016 से अपनी पत्नी को मासिक 15,000 रुपये का गुजारा भत्ता भी दे रहे हैं।

महिला का व्यवहार क्रूरता का संकेत
महिला द्वारा लगातार अदालत में अनुपस्थित रहने पर अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि महिला का व्यवहार उसके अपनी इच्छा से पति का परित्याग करने और उसके प्रति क्रूरता करने का संकेत देता है। मध्यस्थता केंद्र और हाईकोर्ट में अनुपस्थित रहकर महिला ने मामले को लंबा खींचने और अपने पति को मानसिक प्रताडऩा देने का प्रयास किया है। हाईकोर्ट ने दोनों के तलाक के आदेश देते हुए कहा है कि अपीलकर्ता पति अपने वायदे के अनुसार एलीमनी के सात लाख रुपये एक महीने में महिला के बैंक खाते में जमा करवा दे।


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