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Veer Bal Diwas 2023: मुगलों को मनवाया ताकत का लोहा, बलिदानी दी पर नहीं झुकाया सिर... यहां पढ़िए वीर बाल दिवस का इतिहास

Veer Bal Diwas 2023 गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों की शहादत के उपलक्ष्य पर पूरे देश में वीर बाल दिवस मनाया जा रहा है। मुगल सम्राट औरंगजेब की सेना से लड़ते हुए बलिदान हुए गुरू गोविंद सिंह के चारों साहिबजादों की याद में इस दिवस को मनाया जाता है। उन्होंने मुगलों को अपनी ताकत का लोहा मनवा दिया लेकिन सिर नहीं झुकाया।

By Preeti Gupta Edited By: Preeti Gupta Published: Wed, 27 Dec 2023 02:23 PM (IST)Updated: Wed, 27 Dec 2023 03:11 PM (IST)
Veer Bal Diwas 2023: इतिहास में अमर गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों की गाथा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। Veer Bal Diwas 2023: गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों की शहादत के उपलक्ष्य पर पूरे देश में वीर बाल दिवस मनाया जा रहा है। आज वीर बाल दिवस का दूसरा दिन है।

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मुगल सम्राट औरंगजेब की सेना से लड़ते हुए बलिदान हुए गुरू गोविंद सिंह के चारों साहिबजादों की याद में इस दिवस को मनाया जाता है। इस दौरान पूरे हफ्ते सिख समाज के लोग कोई खुशी के पर्व में शामिल नहीं होते हैं।

हर साल 26 दिसंबर को मनाया जाता है वीर बाल दिवस

बता दें कि केंद्र सरकार ने हर साल 26 दिसंबर को माता गुजरी और चार साहिबजादों की शहादत की याद में वीर बाल दिवस मनाने की घोषणा की थी। इन चार साहिबजादों की शहादत इतिहास के पन्नों पर अमर है क्योंकि इन्होंने छोटी उम्र में मुगलों को धूल चटाते हुए अपनी ताकत को लोहा मनावाया था और किसी के आगे झुके नहीं थे।

आइए जानते हैं श्री गुरु गोबिंद सिंह के साहिबजादा जोरावर सिंह (9),साहिबजादा फतेह सिंह (7) , बाबा अजीत सिंह (17), बाबा जुझार सिंह और माता गुजरी की शहादत का इतिहास, जिनके बलिदान को याद कनरे के लिए वीर बाल दिवस मनाया जाएगा।

आनंदपुर साहिब किले से शुरू हुआ था संघर्ष

साल 1705 में पंजाब के रूपनगर में स्थित आनंदपुर साहिब किले से उनके संघर्ष की शुरुआत हुई थी। मुगलों और गुरु गोबिंद के बीच लंबे-समय से जंग जारी थी। वे कई रणनीतियां अपनाकर उन्हें हराना चाह रहे थे, लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी झुकने वालों में से नहीं थे और अंत में भी उन्होंने मुगलों को अपनी ताकत का लोहा मनवा ही दिया।

मुगल सेना ने गुरु गोबिंद सिंह के परिवार पर किया हमला

मुगल शासक औरंगजेब ने गुरु गोबिंद सिंह जी को हराने के लिए नई रणनीती बनाई। उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह से आनंदपुर किला खाली कराने के लिए पत्र लिखा।

ऐसे में उन्होंने किला खाली करना ही उचित समझा, लेकिन किले से निकलते वक्त मुगल सेना ने उन पर हमला कर दिया था, जिसमें उनका परिवार बिछड़ गया। गोबिंद सिंह जी के साथ दो बड़े साहिबजादे थे जबकि छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी के साथ चले गए थे।

मदद करने के बहाने गंगू ने दिया धोखा

छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह और माता गुजरी एक गुफा में ठहरे, लेकिन उनके ठहरने की सूचना लंगर की सेवा करने वाले गंगू को मिल गई और उसने पहले गुजरी देवी के पास रखी अशर्फियों को चुराया।

फिर दोनों को सरहिंद के नवाब वजीर खां से पकड़वा दिया। गंगू से सूचना मिलने पर कोतवाल ने तुरंत कई सिपाही भेजकर माताजी और साहिबजादों को पकड़ कर कैदी बना लिया।

छोटे साहिबजादों और माता को ठंडे बुर्ज में किया कैद

वजीर खां ने छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह बाबा फतेह सिंह तथा माता गुजरी जी को तकलीफ देने के लिए ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया। यह चारों ओर से खुला और ऊंचा था। इस ठंडे बुर्ज से ही माता गुजरी जी ने छोटे साहिबजादों को लगातार तीन दिन धर्म की रक्षा के लिए शीश न झुकाने और धर्म न बदलने का पाठ पढ़ाया था।

अगले दिन साहिबजादा 9 वर्ष के जोरावर सिंह और 7 वर्ष के फतेह सिंह को नवाब वजीर खां के सामने पेश किया। उसने उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए कहा, लेकिन दोनों साहिबजादों ने धर्म परिवर्तन से इन्कार कर दिया।

दीवार में जिंदा चुनवाए गए छोटे साहिबजादे

इससे गुस्साए वजीर खान ने 26 दिसंबर, 1705 को दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवा दिया था। जब छोटे साहिबजादों की कुर्बानी की सूचना माता गुजरी जी को ठंडे बुर्ज में मिली तो उन्होंने भी शरीर त्याग दिया।

इसी स्थान पर आज गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब बना है। इसमें बना ठंडा बुर्ज सिख इतिहास की पाठशाला का वह सुनहरी पन्ना है, जहां साहिबजादों ने धर्म की रक्षा के लिए शहादत दी थी।

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चमकौर की जंग में बड़े साहिबजादों ने गंवाए प्राण

वहीं, पिता गुरु गोबिंद के साथ गए दो बडे़ साहिबजादों ने युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी। वे अपने पिता के दिखाए गए रास्तों पर चले। गुरु गोबिद ने अपने दो पुत्रों को स्वयं आशीर्वाद देकर चमकौर की जंग में भेजा था। चमकौर की जंग में 40 सिखों ने हजारों की मुगल फौज से लड़ते हुए शहादत प्राप्त की थी। 6 दिसंबर, 1705 को हुई इस जंग में बाबा अजीत सिंह (17) व बाबा जुझार सिंह (14) ने धर्म के लिए बलिदान दिया था।

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