Farmers Protest: कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के खिलाफ अब आंदोलन क्यों, पंजाब में 2006 से लागू है एक्ट
Farmers Protest किसान कृषि कानूनों में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का भी विरोध कर रहे हैं और उनको इसको लेकर गहरी आपत्ति हैं। पंजाब के किसान संगठन इस पर सबसे अधिक मुखर हैं लेकिन यह चाैंकाने वाली बात है कि पंजाब में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट 2006 से लागू है।
चंडीगढ़, राज्य ब्यूरो। केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए तीन कृषि कानूनों में से एक कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट को लेकर किसान जोरदार विरोध जता रहे हैं और पंजाब के किसान संगठन इसका सबसे अधिक विरोध कर रहे हैं। अब खुलासा हुआ है कि पंजाब में इस एक्ट को लागू हुए 16 साल हो गए हैं। गेहूं और धान को छोड़कर कमर्शियल फसलों को इस कॉन्ट्रैक्ट के तहत ही उगाया जा रहा है।
2006 में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने लागू किया था एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट संशोधन एक्ट
पंजाब में प्राइवेट सेक्टर को कृषि सेक्टर में लाने के लिए तब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट संशोधन एक्ट 2006 पारित किया था और प्राइवेट मंडियों के लिए रास्ता खोल दिया था। आज किसान जिस रिलायंस ग्रुप का बहिष्कार करने का एलान कर रहे हैं उसे सबसे पहले पंजाब के कृषि सेक्टर में लाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह ही हैं।
कैप्टन अमरिंदर ने तब 3000 करोड़ रुपये के निवेश से एग्री बिजनेस में उतरने का ऐलान किया था। कंपनी ने तब अपने बड़े-बड़े स्टोर खोलकर इसमें ताजी सब्जियां बेचने का प्रावधान किया और ये सब्जियां बिना किसी बिचौलियों से खरीदने के लिए किसानों से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत खेती करवाने की योजना तैयार की गई। चुनाव बाद सत्ता बदली और अकाली-भाजपा की सरकार पंजाब में बन गई। इस सरकार ने रिलायंस के एग्री बिजनेस को धीमा कर दिया।
अकाली सरकार ने भी कुछ फेरबदल संग 2013 मेें एक्ट को फिर लागू किया
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तब भी कई बार इसका विरोध किया कि अगर आगे बढ़ना है और पंजाब की कृषि को नई दिशा देनी है तो हमें बड़ी कंपनियों की मदद लेनी होगी। इसकी शुरूआत हमने कर दी, लेकिन अकाली भाजपा सरकार इसे बंद करने पर तुली हुई है। 2012 में एक बार फिर जब अकाली सत्ता में आ गए तो उन्होंने फिर से कुछ फेरबदल करते हुए पंजाब कांट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट 2013 पारित कर दिया।
कृषि अर्थशास्त्री सरदारा सिंह जौहल ने किसान नेताओं से पूछे सवाल
प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री सरदारा सिंह जौहल ने सार्वजनिक तौर पर किसान नेताओं को इस एक्ट का विरोध करने की आलोचना है। उन्होंने बलबीर सिंह राजेवाल से पूछा कि क्या आपने नहीं कहा कि वह कॉरपोरेट को घुसने नहीं देंगे, लेकिन क्या आपको पता नहीं है कि उनके लिए तो पिछले 16 साल से कांग्रेस और अकाली भाजपा सरकार ने दरवाजे खोल रखे हैं, तब आपने विरोध क्यों नहीं किया। अब जब उसी एक्ट की नकल मारकर इसे पूरे देश पर लागू कर दिया है तो आप इतना हाहाकार मचा रहे हो। अब क्यों सड़कें बंद करके धरनों पर बैठे हो। क्या लिखने पढ़ने की या मुद्दों को समझने की जरूरत नहीं होती।
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सरदारा सिंह जौहल आज से नहीं बल्कि 90 के दशक से ही धान का रकबा कम करने की वकालत करते आ रहे हैं। 2002 में जब उन्हें कैप्टन अमरिंदर सिंह योजना बोर्ड का डिप्टी चेयरमैन लगाया तब भी उन्होंने चार हजार करोड़ का एक प्रोजेक्ट बनाया और कहा कि जो किसान धान नहीं लगाएंगे उन्हें इस फंड से सब्सिडी दी जाएगी। लेकिन यह प्रोजेक्ट सिरे नहीं चढ़ सका। यह हताशा उन्हें आज भी है कि उस समय अगर उनकी बात मान ली गई होती तो आज पंजाब की स्थिति कुछ और ही होती।
पंजाब में आज भी बड़े पैमाने ,खासतौर पर आलू की खेती कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर होती है। पेप्सी कंपनी ने पटियाला और संगरूर के बीच अपने दो प्लांट लगाए हुए हैँ और वह पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों से आलू से लेकर इसे इन प्लांटों में प्रॉसेस करते हैं।
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