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पंजाब में 34 साल बाद होंगे छात्र संघ चुनाव, संगठनों में खुशी की लहर

पंजाब में छात्र संघ चुनाव कराए जाने की मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह की घोषणा से छात्र संगठनों में खुशी है। राज्‍य में ये चुनाव 34 साल बाद होंगे।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 28 Mar 2018 09:40 AM (IST)Updated: Wed, 28 Mar 2018 09:40 AM (IST)
पंजाब में 34 साल बाद होंगे छात्र संघ चुनाव, संगठनों में खुशी की लहर

जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में 1984 से बंद छात्र संघ चुनाव फिर से हो सकेंगे। यह चुनाव 34 साल बाद होंगे। राज्यपाल के अभिभाषण को लेकर हुई बहस का उत्तर देते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा में यह घोषणा की। कैप्टन के इस फैसले का बड़े स्तर पर स्वागत हुआ। छात्र संगठनों में इससे काफी खुशी है।

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कैप्टन ने कहा कि उन्होंने चुनाव से पहले अपने मेनिफेस्टो में युवाओं से यह वादा किया था। कैप्टन ने स्पष्ट किया कि पंजाबी यूनिवर्सिटी, गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी समेत विश्वविद्यालयों व उनसे संबंधित कॉलेजों में चुनाव करवाए जाएंगे। गौरतलब है कि पंजाब में आतंकवाद के दौर में 1984 में छात्र संघ चुनाव पर रोक लगा दी गई थी। हरियाणा में छात्र संघ चुनाव करवाने की घोषणा भी दो माह पहले ही हुई थी।

चुनाव के लिए हुआ था आमरण अनशन

पंजाब में छात्र संघ चुनाव फिर से शुरू करवाने के लिए सबसे पहले संघर्ष छेडऩे वाले पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन काउंसिल के प्रधान कुलजीत नागरा ने लंबे समय तक संघर्ष किया। अंत में वह आमरण अनशन पर बैठ गए। 11वें दिन पंजाब यूनिवर्सिटी प्रशासन ने डिपार्टमेंटल रिप्रेसेंटेटिव और कॉलेजों में क्लास प्रतिनिधियों में से प्रधान बनाने की कवायद शुरू हुई।

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नागरा ने कहा, 'वे दिन बहुत संघर्षमयी थे। लेकिन जब मैं 1996-97 में सीनेट का मेंबर बना, तो सबसे पहला फैसला डायरेक्टर इलेक्शन के रूप में करवाया। 2012 में 1984 के बाद पहली बार कोई साधारण परिवार का मेंबर स्टूडेंट्स यूनियन से विधायक बना। यही नहीं, पार्टी में भी स्टूडेंट यूनियनों के प्रतिनिधियों को आगे लाने के लिए राहुल गांधी से कई बार बात की और आखिर 2017 के चुनाव में स्टूडेंट्स यूनियनों में काम करने वाले सात लोगों को टिकट मिलीं। जिनमें से मैं और दलबीर गोल्डी विधायक भी बने।'

पॉलिटिक्स की पनीरी तैयार करने वाली नर्सरी

लंबे समय तक पंजाब स्टूडेंट्स यूनियन के महासचिव रहे बलजीत बल्ली ने सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि पॉलिटिक्स में जाने वालों के लिए छात्र संघ किसी नर्सरी से कम नहीं है। उनका मानना है कि स्टूडेंट यूनियन के नए नेताओं को तैयार करने का एक माध्यम है। इनके न होने की वजह से ही पॉलिटिक्स में परिवारवाद बढ़ रहा है।

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'' हम छात्र संघ के चुनाव बहाल किए जाने का स्वागत करते हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि चुनाव का स्वरूप क्या होगा। चुनाव प्रत्यक्ष होगा या अप्रत्यक्ष। इसको लेकर सबको संशय है। सरकार को इसे साफ करने देना चाहिए। चुनाव पूरी तरह पंजाब यूनिवर्सिटी की तर्ज पर ही होने चाहिए।

                                                                          -सौरव कपूर, प्रदेश मंत्री पंजाब व चंडीगढ़, एबीवीपी।

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'' यह साहसी फैसला है। स्टूडेंटस के लिए उनकी मांगों को पूरा करने का यह सही माध्यम है। इसके जरिए वो अपनी बात सब तक पहुंचा सकते हैं। 2017 के चुनावों में यह पार्टी का एजेंडा था। हम पंजाब के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव बहाल किए जाने की लगातार मांग कर रहे थे।

-जसविंदर जस्सी, एनएसयूआइ के पूर्व महासचिव एवं पंजाब यूथ कांग्रेस के महासचिव

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'' फैसले का स्वागत करते हैं। इसके जरिए छात्र अपने हितों की लड़ाई लड़ सकेंगे, लेकिन चुनाव में लिंगदोह कमेटी की रिकमेंडेशन फॉलो नहीं की जानी चाहिए। यह पूरी तरह से गलत हैं। चुनाव में मसल पावर और पैसे का इस्तेमाल न हो इसके लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।

                                                                       -हरमन, प्रवक्ता, एसएफएस पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़।


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