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    'शापित' हो गया पंजाब का यह इलाका, यहां से चलती है 'कैंसर एक्सप्रेस'

    By Sunil Kumar JhaEdited By:
    Updated: Fri, 24 Nov 2017 01:15 PM (IST)

    पंजाब का मालवा क्षेत्र कैंसर बेल्‍ट के रूप में तब्‍दील हो गया है। हजारों लोग खराब पानी की वजह से कैंसर व अन्‍य जानलेवा बीमारियों की गिरफ्त में हैं, ले ...और पढ़ें

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    'शापित' हो गया पंजाब का यह इलाका, यहां से चलती है 'कैंसर एक्सप्रेस'

    जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब का मालवा क्षेत्र कैंसर बेल्‍ट के रूप में तब्‍दील हो गया है। दूषित भूजल के कारण इस भयावह बीमारी लोग मौत के ग्रास बन रहे हैं। कई जगह रसायन मिले पानी लोगों की हड्डियां को खोखला कर रहा है और वे त्वचा की बीमारियों की गिरफ्त में भी आ रहे हैं। लेकिन हालात से निपटने और लोगों को राहत देने के लिए जुबानी हलचल के सिवा अधिक कुछ नहीं हुआ। ऐसे में हजारों लोग हर रोज इलाज के लिए राजस्थान, चंडीगढ़ और दिल्ली जाने को मजबूर हैं।

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    मालवा को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए कई बड़े स्वास्थ्य संस्थान खोलने की घोषणाएं हुई हैं। विडंबना है कि कई प्रोजेक्ट घोषणाओं के एक से दो साल बाद भी एक कदम आगे नहीं बढ़ पाए। बेहतर सेहत सुविधाओं के लिए तरस रहे लोगों लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट बठिंडा एम्स एक साल में बाद भी एक कदम आगे नहीं बढ़ पाया है। फिरोजपुर के पीजीआइ सेटेलाइट सेंटर पर राजनीति इतनी भारी पड़ी की दो साल से जमीन का ही चयन नहीं हो पाया है। वहीं संगरूर में चल रहा पीजीआइ का सेटेलाइट सेंटर प्राथमिक उपचार करने तक सिमट कर रह गया है।

     

    कैंसर ट्रेन : बठिंडा टू बीकानेर

     

     

    यह है कैंसर ट्रेन।

    क्षेत्र में स्थिति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि बठिंडा से बीकानेर के लिए रात नौ बजे जाने वाली ट्रेन को कैंसर ट्रेन कहा जाता है। मालवा क्षेत्र के अधिकतर कैंसर पीड़ित लोग इसी ट्रेन से बीकानेर जाते हैं ताकि सुबह वहां पहुंच पाएं। इस ट्रेन में रोजाना करीब 250 लोग कैंसर के मरीज या उनके परिजन होते हैं।

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    एक साल में एक कदम नहीं बढ़ा एम्स प्रोजेक्ट

    बठिंडा :
    सुविधाओं की हालत अभी भी बेहतर नहीं हैं। घोषणाएं कई बार हुई लेकिन अमलीजामा पहनाने में गंभीरता नहीं दिखाई गई। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 25 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बठिंडा में डबवाली रोड स्थित पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रीजनल रिसर्च सेंटर की भूमि पर एम्स की नींव का पत्थर रखा था। ठीक एक साल बीत जाने के बाद भी इस प्रोजेक्ट का काम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया है।

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    एम्स प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए ढाई साल की समय सीमा तय की गई थी लेकिन एक साल में सिर्फ चारदीवारी लगाने के काम की शुरूआत की गई है। 4.12 किलोमीटर क्षेत्र में चारदीवारी कराई जानी थी जो अभी सिर्फ 1200 मीटर तक हो पाई है। एम्स प्रोजेक्ट के लिए स्पोट्र्स विभाग की 178 एकड़ जमीन ट्रांसफर की जा चुकी है। सिर्फ तीन एकड़ जमीन किसी कारण ट्रांसफर नहीं हो पाई है। जो जमीन एम्स के लिए दी गई है उस पर पूर्व मुख्यमंत्री और बीसीसीआइ ने खेल स्टेडियम बनाने की घोषणा भी की थी।


    ढाई साल थी समय सीमा, एक साल बीता

    25 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने बठिंडा में एम्स का प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए ढाई साल की समय सीमा तय की थी लेकिन एक साल बीत जाने पर चारदीवारी तक नहीं हो पाई है। इस प्रोजेक्ट के 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पूरा होने की उम्मीद काफी कम है।

    पीएम ने कहा था, उद्घाटन भी हम ही करेंगे

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साल पहले मंच से कहा था कि जिन प्रोजेक्टों के प्रोजेक्ट का नींव पत्थर हमने रखा है उनका उद्घाटन भी हम की करेंगे। प्रधानमंत्री की घोषणा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने गंभीरता से नहीं लिया है।

    इसलिए जरूरी है मालवा में एम्स

    पंजाब में 30 हजार से अधिक लोग कैंसर से पीडि़त हैं जिनमें सबसे अधिक मालवा के लोग प्रभावित हैं। बठिंडा से बीकानेर जाने वाली ट्रेन को कैंसर एक्सप्रेस के नाम से बुलाया जाता है। हर रोज सैकड़ों लोग कैंसर के उपचार के लिए दिल्ली, राजस्थान और चंडीगढ़ जाते हैं।

    एडवांस कैंसर इंस्टीट्यूट में न स्टाफ, न मशीनें

    बठिंडा में एडवांस कैंसर इंस्टीट्यूट भी स्थापित किया गया है लेकिन ढांचागत व्यवस्था और स्टाफ की कमी के चलते लोगों को इसका बहुत लाभ नहीं हो पा रहा है।

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    मिनी पीजीआइ में न इमरजेंसी, अल्ट्रासाउंड सुविधा

    संगरूर जिले में गांव घाबदां में मिनी पीजीआइ सेंटर शुरू होने के एक साल बाद भी मरीजों को सिर्फ ओपीडी की सुविधा ही देता है। इस सेंटर में लोगों को न इमरजेंसी सुविधाएं मिलती हैं न यहां अल्ट्रासाउंड होते हैं। हर रोज बिजली गुल होने से मरीजों को परेशान होना पड़ता है। नवंबर को पीजीआइ सेटेलाइट सेंटर में बिजली गुल रही। करीब 400 मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ा। इमरजेंसी के समय इस सेंटर से मरीजों को पटियाला, चंडीगढ़ या लुधियाना रेफर कर दिया जाता है। मिनी पीजीआइ में 12 डॉक्टर, 25 सहायक, 30 दर्जा चार कर्मचारी मौजूद हैं।

    तीन साल बाद शुरू हुई ओपीडी

    - 10 अक्टूबर 2013 को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने रखा पीजीआइ सेटेलाइट सेंटर का नींव पत्थर।
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    दो साल बाद जनवरी 2015 को इस सेंटर का उद्घाटन हुआ।
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    नवंबर 2016 में यहां ओपीडी शुरू हुई।

    दोपहर बाद ओपीडी में नहीं मिलते डॉक्टर

    - सुबह से दोपहर तक ही डॉक्टर ओपीडी लगाते हैं उसके बाद मरीजों को कोई सुविधा नहीं मिलती।
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    ओपीडी शुरू होने के एक साल बाद भी यहां न इमरजेंसी सेवा है न अल्ट्रासाउंड की सुविधा।

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    राजनीति लोगों की जान पर भारी, पीजीआइ सेटेलाइट सेंटर के लिए जमीन का चयन नहीं हुआ

    2015 में केंद्र सरकार ने फिरोजपुर में पीजीआइ सेटेलाइट सेंटर खोलने की घोषणा की थी। इस सेंटर के लिए 250 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान है। हैरानी की बात है कि दो साल बीत जाने के बाद भी इस सेटेलाइट सेंटर के लिए जमीन का चयन नहीं हो पाया है।

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    दो साल से नेताओं में क्रेडिट वार चलता रहा। खुद को क्रेडिट लेने की होड़ में जनता की परेशानी गौण हो गईं। विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन सरकार ने 25 एकड़ जमीन ट्रांसफर करने का दावा किया था। दो साल में पांच बार टीम जगह देखने फिरोजपुर आ चुकी है। अब कहा जा रहा है कि सेंटर के लिए फिरोजपुर-मोगा रोड पर जमीन देखी गई है।