कांग्रेस अध्यक्ष पद पर असमंजस के पीछे इतिहास का डरावना पन्ना! क्या कायम रहेगा गांधी परिवार का दबदबा?
पार्टी में एक तरफ कुछ मुखर स्वर अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में खम ठोकने का मन बना चुके हैं। थरूर इसमें सबसे आगे हैं जबकि पृथ्वीराज चह्वाण समेत कई नेता परिवार से बाहर से अध्यक्ष बनाए जाने के हक में हैं।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली : पिछले लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी अध्यक्ष पद से राहुल गांधी का इस्तीफा और तीन साल बाद बतौर अध्यक्ष वापसी को लेकर असमंजस सिर्फ इच्छा या अनिच्छा तक सीमित नहीं है। संभवत: यह असमंजस इस मुद्दे पर ज्यादा है कि भविष्य में भी पार्टी के अंदर गांधी परिवार का दबदबा रहेगा या फिर कांग्रेस छाया से निकल पूरी तरह नई पार्टी होगी। शायद यही कारण है एक तरफ जहां सोनिया गांधी ने पार्टी नेता शशि थरूर को यह कहते हुए अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी है कि वह निष्पक्ष रहेंगी। वहीं एक के बाद एक सात राज्यों से प्रदेश इकाई ने राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया है।
वर्ष 2019 में इस्तीफे के बाद राहुल गांधी ने स्पष्ट कहा था कि वह न तो वह दोबारा अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लेंगे और न ही परिवार के अंदर से कोई दूसरा बनेगा। वह काफी अरसे तक इस पर अडिग रहे। लेकिन समय से साथ थोड़ा बदलाव होता गया और अब परोक्ष रूप से यह संकेत दिया जाता है कि राहुल वापसी के लिए तैयार हो सकते हैं। जानकारों का मानना है कि यह बदलाव इतिहास की सीख के कारण है।
शशि थरूर भी मैदान में
पार्टी में एक तरफ कुछ मुखर स्वर अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में खम ठोकने का मन बना चुके हैं। थरूर इसमें सबसे आगे हैं जबकि पृथ्वीराज चह्वाण समेत कई नेता परिवार से बाहर से अध्यक्ष बनाए जाने के हक में हैं। यह मुखरता इसलिए दिख रही है क्योंकि पिछले वर्षों में गांधी परिवार के नेतृत्व में ही अमेठी जैसे सुरक्षित सीट भी हाथ से गए हैं और कई राज्यों में पार्टी के अंदर खिन्नता दिख रही है। सोनिया गांधी अस्वस्थ हैं, राहुल अपना नेतृत्व स्थापित नहीं कर पाए हैं और प्रियंका गांधी का करिश्मा रंग दिखाने में असफल रहा है।
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बागी नेताओं को लेकर गांधी परिवार में बेचैनी
जिस तरह जी-23 ने बगावत की है उसके बाद गांधी परिवार में भी बेचैनी है और यह जताने की कोशिश हो रही है कि पार्टी के लिए कोई भी कुर्बानी दी जा सकती है। लेकिन इसका खामियाजा बड़ा हो सकता है। इसमें शक नहीं कि राहुल गांधी आखिरी वक्त तक अध्यक्ष पद के लिए राजी नहीं हुए तो अशोक गहलोत जैसे विश्वस्त के हाथ कमान थमाने की कोशिश होगी। कमलनाथ, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नामों पर भी अटकलें लग रही हैं।
बहुत खराब हो गए थे गांधी परिवार ओर नरसिंह राव के रिश्ते
लेकिन इतिहास तो यह भी बताता है कि पीवी नरसिंह राव जैसे गांधी परिवार के विश्वस्त भी एक वक्त पर पूरी तरह नियंत्रण से बाहर हो गए थे। गांधी परिवार ओर नरसिंह राव के रिश्ते बहुत खराब हो गए थे। वस्तुत: राजीव गांधी की मृत्यु के बाद परिवार के प्रति उनकी निष्ठा के कारण ही उन्हें अध्यक्ष बनाया गया था। तब यह सामान्य विचार भी था राव एक अंतरिम अध्यक्ष हैं। तब कुछ लोग उन्हें प्रधानमंत्री पद की रेस से भी बाहर मान रहे थे। लेकिन संगठन पर पकड़ मजबूत बनाने के बाद वह प्रधानमंत्री भी बने और गांधी परिवार की छाया से बाहर निकलकर चुनौती भी पेश की। उनके बाद पार्टी अध्यक्ष बने सीताराम केसरी तो एक बागी ही थे और उन्हें एक तरह से अपमानित कर हटाया गया था। उसके बाद से पार्टी की कमान सोनिया गांधी के पास है। सिर्फ दो साल के लिए राहुल गांधी ने जिम्मेदारी संभाली थी।
...तो अंत में मैदान में उतर सकता है गांधी परिवार
पार्टी के सामने डा मनमोहन सिंह जैसा उदाहरण भी है जो लगातार दो कार्यकाल प्रधानमंत्री बने रहे और परिवार के प्रति उनकी निष्ठा में कोई बदलाव नहीं हुआ। लेकिन यह तब हुआ जब संगठन पर गांधी परिवार का दबदबा था। अगर राज्यों की बात की जाए तो खुद गहलोत कई मुद्दों पर नेतृत्व को झुकाने में कामयाब रहे हैं। जानकारों का मानना है कि पार्टी और राहुल के अंदर असमंजस का बड़ा कारण इतिहास का वह पन्ना है जो आशंकाओं को जन्म देता है। हालांकि पार्टी की ओर से स्पष्ट किया गया है कि किसी भी प्रदेश इकाई को कोई प्रस्ताव पारित करने के लिए नहीं कहा गया है लेकिन पार्टी के अंदर ही लोग इसे मानने से इन्कार कर रहे हैं। लेकिन यह संभावना अब प्रबल दिखने लगी है कि आखिरी वक्त में गांधी परिवार मैदान में दिख सकता है।
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