SC/ST संशोधित एक्ट 2018 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित
एससी/एसटी संशोधित एक्ट 2018 पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को SC/ST संशोधित कानून, 2018 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपने आदेश को सुरक्षित रख लिया।
इससे पहले मंगलवार को 3 जजों जस्टिस अरुण मिश्रा, एमआर शाह और बीआर गवई की बेंच ने अपने 2018 के निर्देशों को वापस ले लिया और पुराने एससी/एसटी एक्ट, 1989 को यथावत लागू कर दिया गया। केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने केंद्र की समीक्षा याचिका पर 1 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए इस फैसले का स्वागत किया था। उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को भी शुक्रिया कहा। उन्होंने कहा अनुसूचित जातियों व जनजातियों के अधिकारों के लिए शीर्ष अदालत में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उठाया गया यह सराहनीय कदम है।
इसके अनुसार अब अनुसूचित जाति व जनजाति पर अत्याचार की शिकायत के तुरंत बाद बिना जांच गिरफ्तरी की जा सकेगी जबकि संशोधित कानून में जांच के बाद गिरफ्तारी का प्रावधान था।
बता दें कि संशोधित कानून के अनुसार, अनुसूचित जाति जनजातियों पर अत्याचार के आरोपी को जमानत का कोई प्रावधान नहीं है।
1989 में अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए लाए गए कानून का लक्ष्य इन्हें अत्याचारों से मुक्ति दिलाना और सामान्य वर्गों की तरह समाज में अधिकार दिलाना है। इसके तहत इस वर्ग के लोगों पर अत्याचार करने या इनके खिलाफ अपराध करने वालों पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान किया गया।
संशोधित कानून के तहत यह प्रावधान किया गया कि इस वर्ग पर अत्याचार करने वालों या इनके खिलाफ अपराध करने वालों की तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी। पहले सात दिनों तक डीएसपी स्तर पर जांच की जाएगी जिसके बाद अपराध साबित होने पर गिरफ्तारी होगी। इसके पीछे का उद्देश्य यह था कि किसी तरह का झूठा मामला न हो सके। लेकिन इसके लिए देश भर में दलित वर्ग की ओर से तीव्र विरोध हुआ और केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित एक्ट पर समीक्षा याचिका दर्ज कराई थी।
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