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SC/ST Act में पहले की तरह गिरफ्तारी का प्रावधान लागू, सुप्रीम कोर्ट ने वापस लिया अपना फैसला

SC/ST Act के तहत गिरफ्तारी के प्रावधानों में ढील देने वाले 2018 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध केंद्र की समीक्षा याचिका को कोर्ट ने आंशिक अनुमति दे दी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 30 Sep 2019 08:53 PM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 01:15 PM (IST)
SC/ST Act में पहले की तरह गिरफ्तारी का प्रावधान लागू, सुप्रीम कोर्ट ने वापस लिया अपना फैसला
SC/ST Act में पहले की तरह गिरफ्तारी का प्रावधान लागू, सुप्रीम कोर्ट ने वापस लिया अपना फैसला

नई दिल्ली, प्रेट्र।  SC/ST Act: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र की समीक्षा याचिका को अनुमति दे दी। कोर्ट ने केंद्र की याचिका को स्वीकार कर अपने पुराने फैसले को वापस ले लिया और इस कानून के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म कर दिया। कोर्ट के फैसले के अनुसार अब बिना जांच के मामला दर्ज किया जाएगा और किसी की गिरफ्तारी से पहले अनुमति की आवश्‍यकता नहीं है और न ही जांच की जरूरत है। इससे पहले शिकायत दर्ज करने के बाद जांच करने पर ही मामला दर्ज करने का आदेश था।

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कोर्ट ने दिया था ये फैसला-

20 मार्च 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अग्रिम जमानत का प्रावधान पेश किया था साथ ही गिरफ्तारी के लिए गाइड लाइंस दिए थे। जिसे कानून में ढील के तौर पर लिया गया जिसके बाद दलित संगठनों का विरोध शुरू हो गया और तब केंद्र की ओर से समीक्षा याचिका दाखिल की गई।

बता दें कि अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल का कहना था कि मार्च 2018 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान के तहत सही नहीं था। कोर्ट ने 13 सितंबर को केंद्र की समीक्षा याचिका तीन जजों की पीठ को सौंपी थी।

तीन सदस्यीय खंडपीठ का फैसला

जस्टिस अरुण मिश्रा, एमआर शाह और बीआर गवई की खंडपीठ ने एससी/एसटी अधिनियम के मामले में फैसला दिया। गत 18 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 20 मार्च को दो जजों की पीठ के फैसले की आलोचना की थी। कोर्ट ने कहा था कि क्या संविधान की भावना के विरुद्ध भी कोई फैसला दिया जा सकता है।

आजादी के 70 साल बाद भी भेदभाव और छूआछूत

सर्वोच्च अदालत ने तब संकेत दिया था कि वह समानता कायम करने के लिए कानून के दायरे में कुछ दिशा-निर्देश जारी करेगी। कोर्ट ने कहा कि आजादी के 70 साल बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को भेदभाव और छूआछूत का सामना करना पड़ रहा है।

केंद्र की समीक्षा याचिका पर फैसला सुरक्षित

खंडपीठ ने कहा था कि क्या जाति के आधार पर आप किसी पर शक कर सकते हैं? क्या कोई आदेश संविधान के विरुद्ध इसलिए पारित किया जा सकता है कि उस कानून का दुरुपयोग होता है। जनरल कैटेगरी के लोग भी झूठी एफआइआर दर्ज करा सकते हैं। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र की समीक्षा याचिका पर फैसला सुरक्षित कर लिया था।

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