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डोकलाम पर चीन को बैकफुट पर लाने वाले विजय गोखले बने नए विदेश सचिव, जानिए उनसे जुड़ी अहम जानकारी

विजय केशव गोखले ने विदेश सचिव का पदभार संभाला। डोकलाम विवाद को सुलझाने में अहम भूमिका निभाने वाले गोखले ने एस जयशंकर का स्थान लिया।

By Nancy BajpaiEdited By: Published: Mon, 29 Jan 2018 08:57 AM (IST)Updated: Mon, 29 Jan 2018 03:03 PM (IST)
डोकलाम पर चीन को बैकफुट पर लाने वाले विजय गोखले बने नए विदेश सचिव, जानिए उनसे जुड़ी अहम जानकारी
डोकलाम पर चीन को बैकफुट पर लाने वाले विजय गोखले बने नए विदेश सचिव, जानिए उनसे जुड़ी अहम जानकारी

नई दिल्ली (जेएनएन)। डोकलाम विवाद को सुलझाने में अहम भूमिका निभाने वाले राजनयिक विजय केशव गोखले  विदेश सचिव का पदभार संभाल लिया है। उन्होंने एस जयशंकर का स्थान लिया है। भारतीय विदेश सेवा के 1981 बैच के अधिकारी गोखले को चीन से जुड़े मसलों का विशेषज्ञ माना जाता है। उन्होंने पिछले साल भारत और चीन की सेनाओं के बीच डोकलाम विवाद को हल कराने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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गोखले 20 जनवरी 2016 से 21 अक्तूबर 2017 तक चीन में भारत के राजदूत भी रहे। इसके बाद वे नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय के मुख्यालय आ गए। एस जयशंकर की जगह पर नियुक्त हुए गोखले का विदेश सचिव के तौर पर दो वर्ष का कार्यकाल होगा।

जानिए कौन हैं विजय गोखले

- विजय गोयल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में एमसी की डिग्री हासिल की है। 

- भारतीय विदेश सेवा के 1981 बैच के अधिकारी

- चीन के मामलों के विशेषज्ञ

- डोकलाम विवाद को खत्म कराने में निभाई अहम भूमिका

- 20 जनवरी 2016 से 21 अक्तूबर 2017 तक चीन में भारत के राजदूत भी रहे

- अक्तूबर 2013 से जनवरी 2016 तक जर्मनी में भारत के शीर्ष राजनयिक के तौर पर सेवा दी

- उन्होंने हांगकांग, हनोई और न्यूयॉर्क में भारतीय मिशनों में काम किया है

- विदेश मंत्रालय में चीन और पूर्वी एशिया के निदेशक और पूर्वी एशिया के सचिव के पद भी रह चुके हैं

बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने विदेश सचिव पद पर गोखले की नियुक्ति को मंजूरी दी थी। एस जयशंकर को 2015 में विदेश सचिव नियुक्त किया गया था। जिन्होंने सुजाता सिंह की जगह ली थी। 1977 बैच के आईएफएस अधिकारी जयशंकर के कार्यकाल को पिछले साल जनवरी में एक साल का विस्तार दिया गया था।

रिटायर हुए पीएम मोदी के भरोसेमंद एस.जयशंकर

विदेश सचिव के रूप में करीब तीन साल के कार्यकाल के बाद सुब्रह्मण्यम जयशंकर रविवार को सेवानिवृत्त हो गए। केवल सिंह (1976 में सेवानिवृत्त) के बाद वह सबसे लंबे समय तक विदेश सचिव रहे। बेहद खामोशी से अपना काम करने वाले एस. जयशंकर को ही नरेंद्र मोदी सरकार की आक्रमक विदेश नीति का आधार तैयार करने का श्रेय दिया जाता है।

एक साल के सेवा विस्तार समेत उनके कार्यकाल में विदेश मंत्रालय में कई बदलाव हुए। मंत्रालय में सचिव स्तर के पांच अधिकारी होते हैं और विदेश सचिव को सभी समान अधिकारियों में सिर्फ पहला माना जाता था। लेकिन मोदी सरकार द्वारा जयशंकर में व्यक्त किए गए विश्वास और उनकी बहुआयामी कूटनीतिक योग्यता की वजह से समीकरण बदल गए। अब विदेश सचिव को समान अधिकारियों से ऊपर माना जाता है। उन्हें विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का भी पूर्ण विश्वास हासिल है। यही वजह है कि उन्हें मंत्रालय में कार्य की ज्यादा आजादी हासिल हुई। प्रधानमंत्री मोदी भी उन पर काफी भरोसा करते हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री की राजनयिक मेल-मुलाकातों को वह खुद देखते थे और समकक्षों के साथ बैठकों में मोदी उन्हें साथ रखते थे। मोदी की विदेश यात्राओं की योजना बनाने और प्रमुख मसलों पर भारत का रुख स्पष्ट करने का दायित्व भी उन्हें सौंपा जाता था, भले ही वह अन्य सचिवों के अधिकार क्षेत्र में आता हो।

एस जयशंकर की उपलब्धियां

- भारत-अमेरिका परमाणु सौदे में अहम भूमिका

- सिंगापुर में उच्चायुक्त रहते हुए व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते का कार्यान्वयन सुनिश्चित किया।

- चीन में राजदूत रहते हुए कई मोचरें पर सहयोग को मजबूत बनाने में मदद की।

- अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन के लिए चीनी नागरिकों को जारी वीजा में इन इलाकों को भारतीय इलाकों के रूप में दिखाने का निर्देश दिया।

- लद्दाख के देपसांग में चीनी घुसपैठ खत्म करने केलिए चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग का भारत दौरा रद करने की धमकी दी। डोकलाम विवाद खत्म करने भी अहम भूमिका।

- देवयानी खोबरागड़े को भारत लाने के लिए चीन से अमेरिका गए और वार्ता की।

- न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वायर पर प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन की योजना।

- भारत-इजरायल संबंधों में मजबूती के लिए कठोर कूटनीतिक परिश्रम।

यह भी पढ़ें: तीन साल तक विदेश सचिव रहे जयशंकर सेवानिवृत्त


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