तीन साल तक विदेश सचिव रहे जयशंकर सेवानिवृत्त
बेहद खामोशी से अपना काम करने वाले एस. जयशंकर को ही नरेंद्र मोदी सरकार की आक्रमक विदेश नीति का आधार तैयार करने का श्रेय दिया जाता है।
नई दिल्ली, जागरण न्यूज नेटवर्क। विदेश सचिव के रूप में करीब तीन साल के कार्यकाल के बाद सुब्रह्मण्यम जयशंकर रविवार को सेवानिवृत्त हो गए। केवल सिंह (1976 में सेवानिवृत्त) के बाद वह सबसे लंबे समय तक विदेश सचिव रहे। बेहद खामोशी से अपना काम करने वाले एस. जयशंकर को ही नरेंद्र मोदी सरकार की आक्रमक विदेश नीति का आधार तैयार करने का श्रेय दिया जाता है।
एक साल के सेवा विस्तार समेत उनके कार्यकाल में विदेश मंत्रालय में कई बदलाव हुए। मंत्रालय में सचिव स्तर के पांच अधिकारी होते हैं और विदेश सचिव को सभी समान अधिकारियों में सिर्फ पहला माना जाता था। लेकिन मोदी सरकार द्वारा जयशंकर में व्यक्त किए गए विश्वास और उनकी बहुआयामी कूटनीतिक योग्यता की वजह से समीकरण बदल गए। अब विदेश सचिव को समान अधिकारियों से ऊपर माना जाता है। उन्हें विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का भी पूर्ण विश्वास हासिल है। यही वजह है कि उन्हें मंत्रालय में कार्य की ज्यादा आजादी हासिल हुई।
प्रधानमंत्री मोदी भी उन पर काफी भरोसा करते हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री की राजनयिक मेल-मुलाकातों को वह खुद देखते थे और समकक्षों के साथ बैठकों में मोदी उन्हें साथ रखते थे। मोदी की विदेश यात्राओं की योजना बनाने और प्रमुख मसलों पर भारत का रुख स्पष्ट करने का दायित्व भी उन्हें सौंपा जाता था, भले ही वह अन्य सचिवों के अधिकार क्षेत्र में आता हो।
उपलब्धियां
- भारत-अमेरिका परमाणु सौदे में अहम भूमिका
- सिंगापुर में उच्चायुक्त रहते हुए व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते का कार्यान्वयन सुनिश्चित किया।
- चीन में राजदूत रहते हुए कई मोचरें पर सहयोग को मजबूत बनाने में मदद की।
- अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन के लिए चीनी नागरिकों को जारी वीजा में इन इलाकों को भारतीय इलाकों के रूप में दिखाने का निर्देश दिया।
- लद्दाख के देपसांग में चीनी घुसपैठ खत्म करने केलिए चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग का भारत दौरा रद करने की धमकी दी। डोकलाम विवाद खत्म करने भी अहम भूमिका।
- देवयानी खोबरागड़े को भारत लाने के लिए चीन से अमेरिका गए और वार्ता की।
- न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वायर पर प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन की योजना।
- भारत-इजरायल संबंधों में मजबूती के लिए कठोर कूटनीतिक परिश्रम।