Ramvilas Paswan Passes Away: रामविलास पासवान के नाम रहा छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में काम करने का रिकॉर्ड
उन्होंने वीपी सिंह ले लेकर देवगौड़ा-गुजराल से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी जैसे अनेक प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। रामविलास पासवान के नाम छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री के तौर पर काम करने की अनूठी उपलब्धि जुड़ी थी।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। बिहार में वरिष्ठ दलित नेता और मोदी सरकार में उपभोक्ता मंत्री रहे रामविलास पासवान का गुरुवार को निधन हो गया। लंबे वक़्त से उनकी तबीयत ख़राब चल रही थी और दिल्ली के एस्कॉर्ट्स अस्पताल में भर्ती थे। रामविलास पासवान बिहार पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति के मैदान में उतरे थे। कांशीराम और मायावती की लोकप्रियता के दौर में भी बिहार के दलितों के मजबूत नेता के तौर पर लंबे समय तक टिके रहे।
रामविलास पासवान के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1960 के दशक में बिहार विधानसभा के सदस्य के तौर पर हुई और आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनावों से वह तब सुर्खियों में आए, जब उन्होंने हाजीपुर सीट पर चार लाख मतों के रिकार्ड अंतर से जीत हासिल की। उन्होंने वीपी सिंह ले लेकर देवगौड़ा-गुजराल से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी जैसे अनेक प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। राजनीतिक माहौल को भांप लेने की काबिलियत रखने वाले रामविलास पासवान का नाम छह प्रधानमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री के तौर पर काम करने की अनूठी उपलब्धि जुड़ी थी।
1989 में जीत के बाद वह वीपी सिंह की कैबिनेट में पहली बार शामिल किए गए और उन्हें श्रम मंत्री बनाया गया। एक दशक के भीतर ही वह एचडी देवगौडा और आईके गुजराल की सरकारों में रेल मंत्री बने। 1990 के दशक में जिस ‘जनता दल’ धड़े से पासवान जुड़े थे, उसने भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का साथ दिया और वह संचार मंत्री बनाए गए। बाद में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में वह कोयला मंत्री बने।
उन्होंने आगे चलकर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की स्थापना की। वह 2002 में गुजरात दंगे के बाद विरोध में अटल बिहारी बाजपेयी के मंत्रिमंडल से बाहर निकल गए और कांग्रेस नीत संप्रग की ओर गए। दो साल बाद ही सत्ता में संप्रग के आने पर वह मनमोहन सिंह की सरकार में रसायन एवं उर्वरक मंत्री नियुक्त किए गए।
वे साठ के दशक से ही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (संसोपा) में सक्रिय थे। आपातकाल में जेल गए, राजनारायण और चरण सिंह के साथ रहे। 1977 में रिकॉर्ड वोटों से जीतकर लोकसभा में आए पर मगर उनकी राजनीति चमकी वीपी सिंह के साथ ही जिन्हें मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने के बाद अपने आसपास शरद यादव और रामविलास पासवान को रखते थे। वीपी सिंह राज्यसभा के सदस्य थे इसलिए रामविलास ही लोकसभा में सत्ताधारी गठबंधन के नेता थे। उस दौर में रामविलास पासवान ने बिहार के दलितों और मुसलमानों में एक आधार बनाया जो अब तक उनके साथ बना हुआ था।
चुनावी जीत का रिकॉर्ड कायम करने वाले रामविलास पासवान उसी हाजीपुर से 1984 में भी हारे थे, जहां से वे रिकार्ड मतों से जीतते रहे। 2009 में भी उन्हें रामसुंदर दास जैसे बुज़ुर्ग समाजवादी ने उन्हें उनके गढ़ हाजीपुर हरा दिया था। हार के बाद यूपीए-दो के कार्यकाल में उन्हें मंत्री पद नहीं मिला। साल 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा ने पासवान का खुले दिल से स्वागत किया और बिहार में उन्हें लड़ने के लिए सात सीटें दी।
बिहार लोजपा छह सीटों पर जीत गयी। 2014 में नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में खाद्य, जनवितरण और उपभोक्ता मामलों के मंत्री के रूप में रामविलास पासवान ने काम किया। इस दौरान जन वितरण प्रणाली में सुधार लाने के अलावा दाल और चीनी क्षेत्र में संकट का भी प्रभावी तरीके से उन्होंने समाधान किया। 2019 में तबियत होने के कारण लोकसभा का चुनाव नहीं लड़े, फिर राज्यसभा से चुनकर फिर मंत्री बने।
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