Move to Jagran APP

जानें क्या है कॉरपोरेट और कृषि कर्ज माफी में अंतर, जिसे लेकर हमलावर हैं राहुल गांधी

किसानों का कर्ज वेव ऑफ होता है। मतलब उन्हें कर्ज लौटाने की जरूरत नहीं। कॉरपोरेट कर्ज को बैंक राइट ऑफ करता है। इन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है।

By Amit SinghEdited By: Published: Sun, 23 Dec 2018 01:44 PM (IST)Updated: Sun, 23 Dec 2018 06:15 PM (IST)
जानें क्या है कॉरपोरेट और कृषि कर्ज माफी में अंतर, जिसे लेकर हमलावर हैं राहुल गांधी
जानें क्या है कॉरपोरेट और कृषि कर्ज माफी में अंतर, जिसे लेकर हमलावर हैं राहुल गांधी

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। हर बार चुनावी साल में कर्ज माफी राजनीतिक पार्टियों के लिए एक बड़ा मुद्दा बनता है। हाल में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने किसानों से कर्ज माफी का वादा कर तीन राज्यों में सरकार भी बना ली। अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लोकसभा चुनाव 2019 के लिए भी यही दांव खेल रहे हैं। कॉरपोरेट और कृषि कर्ज माफी को लेकर वह सरकार पर लगातार हमला कर रहे हैं। ऐसे में आपके लिए भी दोनों तरह की कर्ज माफी के फर्क को समझना जरूरी है। साथ ही ये भी जानना जरूरी है कि कृषि कर्ज माफी से किसानों को कितना लाभ होगा? क्या किसानों के लिए कर्ज माफी से भी अहम कोई मुद्दा है?

loksabha election banner

सबसे बड़ी बात ये है कि कर्ज माफी जैसे अद्भुत विचार को कुछ अर्थशास्त्रियों का भी समर्थन मिल रहा है। वे दलील दे रहे हैं कि जब कॉरपोरेट (बड़ी कंपनियों) के कर्जों को माफ किया जा सकता है, तो किसानों का क्यों नहीं? सतह पर तो ये सवाल काफी वाजिब मालूम पड़ता है, लेकिन वास्तविकता क्या है? बैंकिग सेक्टर के जानकारों के अनुसार कॉरपोरेट और कृषि कर्ज माफी सुनने में एक जैसे ही लगते हैं। ज्दातार लोगों को लगेगा कि दोनों कर्ज ही तो हैं, इसमें अंतर क्या है? इसके लिए जरूरी है कि हमें दोनों तरह के कर्ज और उनकी माफी की प्रक्रिया के बारे में जानकारी हो।

ऐसे होती है कृषि कर्ज माफी
इजी मनी ट्रिलॉजी के विवेक कौल बताते हैं कि कॉरपोरेट जगत की कर्ज माफी नहीं होती है। हमें कर्ज के वेव ऑफ और कर्ज के राइट ऑफ करने के बीच का अंतर जानना जरूरी है। जब कोई भी राज्य सरकार किसानों के कर्ज को माफ करती है, तो इसका मतलब होता है कि वह कर्ज को वेव ऑफ कर रही है। इसके सीधे मायने ये हुए कि जिन किसानों ने बैंक से कर्ज लिया हुआ था, सरकारी वेव ऑफ के बाद उन्हें उस कर्ज को लौटाने की कोई जरूरत नहीं है। इससे बैंकों का जो नुकसान होता है, उसकी पूरी भरपाई राज्य सरकार करती है।

ये है कॉरपोरेट कर्ज का गणित
अब एक कॉरपोरेट कर्ज का गणित समझें। कॉरपोरेट बैंक से काफी बड़े और मोटे कर्ज लेते हैं। किन्हीं वजहों से वे कर्ज को लौटाना बंद कर देते हैं। इस तरह कॉरपोरेट कर्जदार के डिफॉल्ट हो जाने पर 90 दिन के बाद, इस कर्ज को खराब-कर्ज करार दिया जाता है। अगर बैंक को ऐसा लगता है कि वह इस कर्ज को कर्जदार से नहीं वसूल पाएगा, तो बैंक इस लोन को राइट ऑफ कर सकता है। इस राइट ऑफ में सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है। किसी कर्ज को राइट ऑफ करने से वह बैंक की बैलेंसशीट से हट जाता है। हालांकि, इसका मतलब ये नहीं है कि लोन के राइट ऑफ होने के बाद कॉरपोरेट अपने आगे का सफर आराम से चला सकता है। एक लोन को राइट ऑफ करने के बाद भी बैंक वसूली की प्रक्रिया जारी रख सकता है।

ऐसे होती है कॉरपोरेट कर्ज वसूली
इसका एक तरीका यह है कि बैंक कॉरपोरेट के साथ एकमुश्त निपटान (वन टाइम सेटलमेंट) कर सकता है। अमूमन सरकारी बैंकों में यह होता नहीं है। पिछले दो साल से बैंक इंसॉल्वेंसी और बैंक्रप्सी कोड का भी इस्तेमाल कर रहा है। इस कोड के तहत बैंक कर्ज वसूली के लिए उस डिफॉल्टर कॉरपोरेट को किसी और कॉरपोरेट को बेच सकता है, या फिर कॉरपोरेट को टुकड़ों-टुकड़ों में भी बेचा जा सकता है। तो किसी कॉरपोरेट का कर्ज राइट ऑफ हो सकता है, पर इसका मतलब ये नहीं कि कॉरपोरेट के लिए उसका कोई नकारात्मक परिणाम नहीं होगा।

इंसॉल्वेंसी और बैंक्रप्सी कोड ने बैंकों को दी ताकत
भूषण स्टील कंपनी ने करीब 56,000 करोड़ का कर्ज बैंकों को नहीं लौटाया। इंसॉल्वेंसी और बैंक्रप्सी कोड के तहत कंपनी को टाटा स्टील को बेच दिया गया। कर्ज नहीं लौटाने की वजह से मूल प्रमोटर के हाथ से कंपनी चली गयी। एस्सार स्टील के साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाला है। पते की बात तो ये है कि, इस वित्तीय वर्ष के पहले छह महीनों में (अप्रैल से सितंबर 2018) सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने करीब 60,726 करोड़ रुपये की वसूली की है। अप्रैल से सितंबर 2017 में हुई वसूली से यह दोगुने से भी ज्यादा है। जब तक इंसॉल्वेंसी और बैंक्रप्सी कोड नहीं था, तब तक काफी कॉरपोरेट को लोन लेकर नहीं चुकाने की आदत पड़ गयी थी। कंपनियां चलाने वाले प्रबंधकों और मालिकों को यह मालूम था कि अगर वे कर्ज न भी चुकायें तो बैंक उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकते थे। इससे क्रेडिट कल्चर का सत्यानाश होता था। किसानों का कर्ज माफ करने से भी यही होता है।

कर्ज माफी से महत्वपूर्ण है किसानों का ये मुद्दा
अब एक ऐसे किसान का उदाहरण ले लीजिये जो कि कर्ज समय पर लौटा रहा है। सरकारी कर्ज माफी के बाद वो बहुत ही बेवकूफ दिखेगा। वह खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगेगा। इसके बाद जब वो अगली बार कर्ज लेगा तो उसे लौटाने के बारे में सोचेगा। कर्ज माफी से किसानों को यह भी संदेश जाता है कि कर्ज चुकाने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि आने वाले समय में सरकार चुनाव के पहले कर्ज माफ कर सकती है। आगामी लोकसभा चुनावों में भी कृषि कर्ज माफी की उम्मीद में कई जगह पर किसानों ने कर्ज चुकाना बंद कर दिया है। इसके अलावा कर्ज माफी से किसानों के एक बहुत छोटे तबके का फायदा होता है। ज्यादातर किसान साहूकारों से कर्ज लेते हैं। यहां सबसे बड़ी बात यह है कि कर्ज माफी से किसान की जो मुख्य समस्या है, अपने उत्पादन के लिए उचित मूल्य प्राप्त करने में सक्षम नहीं होना, उसका कुछ नहीं होने वाला है। प्रत्येक किसानों के लिए उत्पादन का उचित मूल्य सबसे अहम मुद्दा है, जिस पर कोई बात नहीं करता।

यह भी पढ़ेंः 14 साल पहले आयी इस आपदा ने छोटे कर दिए दिन और बदल दिया दुनिया का नक्शा
यह भी पढ़ेंः 107 साल पहले गाया गया था राष्ट्रगान ‘जन गण मन’, जानें- क्या है इसका इतिहास
यह भी पढ़ेंः ईसाइयों, मुस्लिमों और यहूदियों के लिए बड़ा आस्था का केंद्र है ये जगह, लेकिन रहता है विवाद
यह भी पढ़ेंः अवैध शिकार का गढ़ रहा है भारत, अंतरराष्ट्रीय तस्करों से लेकर सेलिब्रिटी तक हैं सक्रिय


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.