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कचरे की कीमत तुम क्‍या जानो सरकार, दुनियाभर में बढ़ रहा है इसका ढेर!

शीर्ष अदालत ने कहा कि दिल्ली में कूड़े के पहाड़ हैं और मुंबई डूब रही है, लेकिन सरकारें कुछ नहीं कर रहीं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 15 Jul 2018 12:47 PM (IST)Updated: Sun, 15 Jul 2018 12:47 PM (IST)
कचरे की कीमत तुम क्‍या जानो सरकार, दुनियाभर में बढ़ रहा है इसका ढेर!
कचरे की कीमत तुम क्‍या जानो सरकार, दुनियाभर में बढ़ रहा है इसका ढेर!

नई दिल्‍ली (जागरण स्‍पेशल)। बीते मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कचरा प्रबंधन को लेकर राज्य सरकारों के उदासीन रवैये पर नाराजगी जताते हुए सख्त टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा कि दिल्ली में कूड़े के पहाड़ हैं और मुंबई डूब रही है, लेकिन सरकारें कुछ नहीं कर रहीं। शीर्ष अदालत ने कचरा प्रबंधन पर हलफनामा दाखिल कर योजना का ब्योरा न देने वाले राज्यों पर जुर्माना भी लगाया। शीर्ष अदालत सही फरमा रही है। कचरे की कीमत तुम क्या जानों सरकारों! दुनिया के तमाम देशों से सीखिए जो कूड़े को समस्या मानते ही नहीं। जिस कचरे को हम बोझ समझते हैं वही उनके लिए आर्थिक समृद्धि का एक जरिया साबित हो रहा है। इच्छाशक्ति पैदा कीजिए। तकनीक जुटाइए। समस्या अपने आप खत्म हो जाएगी। वर्ना इसी तरह अदालत की डपट सुनते रहिए।

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कार्य संस्कृति में बदलाव की जरूरत

हालांकि चेतना सिर्फ सरकारों को ही नहीं है। हमें भी अपनी जीवन और कार्य संस्कृति में बदलाव की जरूरत है। कभी सोचा है कि आखिर ये कूड़े के पहाड़ कहां से पैदा हो रहे हैं। अगर हम न्यूनतम कचरा करने वाली जीवनशैली अपना लें तो क्या हमारे घरों से ही इस समस्या के इलाज की शुरुआत नहीं हो जाएगी। उपभोक्तावाद से पहले भी लोग थे, सभ्यताएं थीं, दुनिया थी, लेकिन कचरा नहीं था। अब हम सब कहने को तो ज्यादा आधुनिक हुए हैं, लेकिन अपनी सभ्यता खोते जा रहे हैं। देर अभी भी नहीं हुई है, आइए, कचरा कम करने की जीवनशैली अपनाएं और बाकी का काम नीति-नियंताओं पर छोड़ें। देश की शीर्ष अदालत अगर ऐसे ही इन्हें फटकार लगाती रही, तो एक न एक दिन तो असर पड़ेगा ही। अन्यथा जनता की अदालत तो आखिरी इलाज बचा ही है।

कचरे का बढ़ता ढेर

दुनिया भर में कचरा तेजी से बढ़ रहा है। अमीर-गरीब, हर तरह के देश इस समस्या से जूझ रहे हैं। आज से छह साल पहले पूरी दुनिया में सालाना पैदा होने वाले कचरे की जो मात्रा 1.3 अरब टन थी, 2025 में उसके 2.2 अरब टन पहुंचने का अनुमान है। सदी के अंत कचरा 4 अरब टन हो जाएगा। अभी जो 1.3 अरब टन सालाना कचरा हम पैदा करते हैं, उसके आकार-प्रकार का अंदाजा आप ऐसे लगा सकते हैं कि उस कचरे का वजन 7000 एंपायर स्टेट बिल्डिंग्स के बराबर होगा। अब आप सहज कल्पना कर सकते हैं कि यदि साल 2100 में धरती पर निकलने वाले कचरे को रखने की जगह नहीं होगी। यत्र-तत्र-सर्वत्र कचरा ही कचरा दिखेगा। यह कचरा आकाश, पाताल और धरती के साथ हमारी सेहत का सबसे बड़ा दुश्मन बनेगा। यही सबसे बड़ी चिंता है। लिहाजा कचरे के आकार को कतरने के लिए हम सबको ही कमर कसनी होगी।

ठोस कचरा प्रबंधन नियम-2016

अप्रैल 2016 में 16 साल बाद म्युनिसपल सॉलिड वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रूल्स, 2000 की जगह इस कानून को लागू किया गया। नए नियमों के तहत कचरा प्रबंधन के दायरे को नगर निगमों से आगे भी बढ़ाया गया। ये नियम अब शहरी समूहों, जनगणना वाले कस्बों, अधिसूचित औद्योगिक टाउनशिप, भारतीय रेल के नियंत्रण वाले क्षेत्रों, हवाई अड्डों, एयर बेस, बंदरगाह, रक्षा प्रतिष्ठानों, विशेष आर्थिक क्षेत्र, केंद्र एवं राज्य सरकारों के संगठनों, तीर्थ स्थलों और धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थानों पर भी लागू किए गए। इन नियमों के समग्र निगरानी के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में एक केंद्रीय निगरानी समिति भी गठित हुई।

खास बातें

कोई भी खुद द्वारा उत्पन्न ठोस कचरे को अपने परिसर के बाहर सड़कों, खुले सार्वजनिक स्थलों पर, या नाली में, या जलीय क्षेत्रों में न तो फेंकेगा, या जलाएगा अथवा दबाएगा।

ठोस कचरा उत्पन्न करने वालों को ‘उपयोगकर्ता शुल्क’ अदा करना होगा, जो कचरा एकत्र करने वालों को मिलेगा।

निर्माण और तोड़-फोड़ से उत्पन्न ठोस कचरे को निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार संग्रहीत करने के बाद अलग से निपटाना होगा।

जन भागीदारी भी जरूरी

किसी भी बड़ी समस्या का समाधान तभी संभव है जब देश के आम नागरिक भी खुलकर उसके निदान में भागीदार बनें। यह सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए सरकारों और नीति-नियंताओं के स्तर पर साम-दाम, दंड और भेद जैसे कदम उठाए जाने चाहिए। हर बात पर लोकतंत्र की दुहाई देने वाले भारत जैसे देश में कोई आसानी से तो कुछ करने वाला नहीं है। अधिसंख्य आबादी को अगर कचरे की समस्या के समाधान से जोड़ना है तो डर, भय, लोभ-लालच दिखाना ही पड़ेगा। तमाम देशों ने इसी इंसा नी मनोभावों का फायदा उठाते हुए कूड़े की समस्या का निराकरण किया।

कूड़ा करें जमा पाएं छूट

आमतौर पर जो सजग नागरिक अपना कूड़ा खुद जमा करते हैं, उसे सही तरीके से रखते हैं उसके एवज में उन्हें सही फायदा नहीं मिलता है। जिसके चलते दूसरे लोग इस काम के प्रति प्रोत्साहित नहीं होते हैं। इस चीज को बढ़ावा देने के लिए हमें छोटे-छोटे देशों से सीखने की जरूरत है। मोंबासा में अगर कोई व्यक्ति कचरा एकत्र करता है तो उसके बिजली बिल में भारी-भरकम छूट दी जाती है। इसी तरह आदिस अबाबा में पानी के बिल में रियायत दिए जाने का प्रावधान है।

कूड़ेदान

कई देशों में सभी सार्वजनिक स्थलों, सड़कों आदि पर प्रशासन कूड़ेदान रखता है। लोग अपने कूड़े को इसमें डाल जाते हैं जिसे स्थानीय काउंसिल द्वारा उठवा लिया जाता है। भारत में जनता से लेकर प्रशासन की उदासीनता इसे विफल कर देती है।

अभियान

उत्तरी अमेरिका में राजमार्गों को अपनाने का कार्यक्रम चलता है। संगठन सड़क के एक हिस्से को साफ रखने की प्रतिबद्धता जाहिर करते हैं।

स्थलों की देखरेख

जापान में जियोग्राफिक इंफार्मेशन सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है।

कानून

कुछ देशों में कंटेनर डिपोजिट कानून बनाए गए हैं। इसके तहत लोगों को कूड़ा जमा करने के लिए प्रेरित किया जाता है, बाद में एल्युमिनियम कैन, शीशे व प्लास्टिक की बोतलों आदि के लिए लाभ भी पहुंचाया जाता है। जर्मनी, न्यूयार्क, नीदरलैंड और बेल्जियम के कुछ हिस्से में इस तरह के कानून लागू हैं। उत्पादकों और आयातकों पर टैक्स ज्यादा कचरा पैदा करने वालों और बाहर से कचरा आयात करने वालों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। केन्या में व्यापक पैमाने पर बाहर से खराब टायर आयात किए जाते थे। सरकार ने इस पर इतना टैक्स लगा दिया कि उद्यमियों के लिए यह घाटे का सौदा साबित होने लगा। लिहाजा उन्होंने ये आयात बंद कर दिया। इसी तरह टोगो में ऐसे उद्योग, होटल या अन्य उद्यम जो बहुत ज्यादा कचरा पैदा करते थे, उन पर सरकार ने भारी भरकम टैक्स थोप दिया।

कूड़ा किया तो खैर नहीं

अमेरिका:500 डॉलर का अर्थदंड, सामुदायिक सेवा या दोनों। अधिकांश राजमार्गों और पार्कों के लिए यह सजा 1000 डॉलर या एक साल की जेल है।

सिंगापुर: 1965 में स्वतंत्र हुआ देश आज प्रति व्यक्ति आय के मामले में अमेरिका सहित कई विकसित देशों के कान काटे हुए है। पेयजल के लिए भी मलेशिया पर निर्भर। कहीं भी कूड़ा फेंकने पर 200 डॉलर का अर्थदंड। कोई भी दलील नहीं सुनी जाएगी। बिक्री पर भी सजा हो सकती है। अवारा कुत्ते यहां नहीं पाए जाते।

ब्रिटेन: 2500 पौंड का अर्थदंड

ऑस्ट्रेलिया: राज्यों के स्तर पर कानून। अर्थदंड का भी प्रावधान

नीदरलैंड: गलियों में कूड़ा फेंकने पर जुर्माना सपना ही रहा देश का पहला ग्रीन हाईवे

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