जिम्बाब्वे ने बनाई लोकल अमेरिकी डॉलर छापने की योजना
2009 में सरकार ने बेलगाम मुद्रास्फीति को देखते हुए अमेरिका और दक्षिण अफ्रीकी मुद्राओं अपनाया था।
हरारे।जिम्बाब्वे में गुरुवार को नकदी की कमी के कारण बैंकों के बाहर लगी लंबी कतारों को देखते हुए वहां की सरकार ने अमेरिकी डॉलर के स्थानीय संस्करण छापने की घोषणा कर दी है। विदेशी नोटों की हाल ही कमी के बाद सरकार ने यह फैसला रिजर्व बैंक के गवर्नर जॉन मनगुदया के नेतृत्व में लिया है।
मनगुदया ने कहा कि केंद्रीय बैंक अपने डॉलर के समकक्ष ही नोटों को प्रिंट करेगा। जिसका डिजाइन वर्तमान जैसा ही रहेगा। ऐसा करके नकदी की कमी को कम किया जा सकता है। सीमित निकासी के कारण लोग एक दिन में 1000 डॉलर और 20,000 दक्षिण अफ्रीकी रैंड ही निकाल सकते हैं।
आपको बता दें कि 2009 में सरकार ने बेलगाम मुद्रास्फीति को देखते हुए अमेरिका और दक्षिण अफ्रीकी मुद्राओं अपनाया था। स्वतंत्र अर्थशास्त्री जॉन रॉबर्टसन ने हरारे में विदेशी न्यूज चैनल से कहा कि ‘यह हर किसी के हितों के लिए अत्यंत हानिकारक है और अर्थव्यवस्था के लिए बहुत खतरनाक है’। उन्होंने आगे कहा कि दुकान उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि वे इन्हें फिर से इकट्ठा करने के लिए इस्तेमाल करेंगे।
गौरतलब है कि बॉन्ड सिक्के छोटे परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए 2014 में जिम्बाब्वे में शुरू किए गए थे। मालूम हो, 2009 में जिम्बाब्वे को भारी मंदी का सामना करना पड़ा था। तब इस दक्षिण अफ्रीकी देश ने अमेरिकी डॉलर और दक्षिण अफ्रिकी रैंड जैसी विदेशी मुद्राओं का उपयोग शुरू कर दिया था।
इससे ठीक पहले 2008 में मुद्रा का पतन इतना हो चुका था कि लोगों को रोजमर्रा की चीजें खरीदने के लिए भी थैले भर के नोट ले जाने पड़ते थे। दूध और ब्रेड जैसी चीजों के दाम एक दिन में दो बार बढ़ रहे थे।
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