पिघल रहे ग्लेशियर और फैल रहीं झीलें, लद्दाख के पैंगांग क्षेत्र में झीलें फूटीं तो मचेगी तबाही
पैंगांग क्षेत्र में लगातार सिकुड़ते ग्लेशियरों से पैंगांग समेत विभिन्न झीलों में जलस्तर और जलीय दबाव लगातार बढ़ रहा है। यह खुलासा कश्मीर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पैंगांग क्षेत्र में स्थित 87 ग्लेशियरों के अध्ययन के आधार पर किया है।
श्रीनगर, राज्य ब्यूरो : लद्दाख के पूर्वी हिस्से में स्थित पैंगोंग क्षेत्र में पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है। ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं और झीलों के आकार के साथ उनमें पानी की मात्रा बढ़ रही है। यह अच्छा संकेत नहीं है। इससे इन झीलों के फूटने का खतरा बढ़ गया है। चिंता इसलिए ज्यादा है कि यह क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से भी संवेदनशील है। अगर यह झीलें फूटती हैं तो इसका पानी एक बाढ़ की शक्ल में तेजी से बहेगा और अपने रास्ते में हर चीज को बहा ले जा सकता है।
पैंगोंग क्षेत्र में ग्लेशियर हर वर्ष 0.23 प्रतिशत की दर से सिकुड़ रहे हैं। पिछले 30 वर्षों में यह ग्लेशियर 6.7 प्रतिशत तक सिकुड़ चुके हैं। यह जानकारी कश्मीर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पैंगोंग क्षेत्र में स्थित 87 ग्लेशियरों के अध्ययन के आधार पर साझा की है। यह शोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त जर्नल फ्रंटियर्स इन अर्थ साइंस के 23 दिसंबर को जारी संस्करण में भी प्रकाशित है।
कश्मीर विश्वविद्यालय में जियोइनफार्मेटिक्स विभाग ने ट्रांस-हिमालय लद्दाख के पैंगोंग क्षेत्र में ग्लेशियरों का अध्ययन किया है। इस अध्ययन में अहम भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ प्रोफेसर डा. इरफान रशीद ने बताया कि हमने 87 ग्लेशियरों के वर्ष 1990 से 2019 तक उपलब्ध सेटलाइट डेटा का अध्ययन किया है। हमने इस अध्ययन में पाया है कि पैंगोंग क्षेत्र में लगातार सिकुड़ते ग्लेशियरों से इसी क्षेत्र में स्थित विश्व प्रसिद्ध पैंगोंग समेत विभिन्न झीलों में जलस्तर और जलीय दवाब लगातार बढ़ रहा है। इसलिए अगर यह ग्लेशियर समाप्त होते हैं तो एक समय पैंगोंग झील भी समाप्त हो जाएगी। बता दें कि पैंगोंग झील भारत और चीन में विभाजित है, जिसे देखने दुनिया भर से सैलानी आते हैं।
भूकंप से झीलें फूटने का खतरा अधिक : डा. इरफान ने बताया कि पैंगोंग क्षेत्र में हमें चार नयी ग्लेशियर झीलों का भी पता चला है। ग्लेशियरों से जल प्रवाह होता है और ग्लेशियर झीलों में गिरता है। इन झीलों का आकार वर्ष 1990 से 2019 तक लगातार बढ़ता हुआ नजर आता है। झीलों के आकार के साथ उनमें पानी की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है। यह ग्लेशियर झीलें जिन्हें आम बोलचाल में हम प्रो-ग्लेशियल लेक्स कहते हैं, किसी भी समय फूट सकती हैं। इन झीलों मेें तलछट और शिलाखंड कमजोर होते हैं। वह ज्यादा जलीय दबाव सहन नहीं कर सकते और किसी भी समय टूट सकते हैं। इसके अलावा यह क्षेत्र सिसमिक जोन-पांच में आता है। इसके अलावा यह झीलें अभी फैल रही हैं, इसलिए किसी भी समय भूकंप के कारण इनके फटने का खतरा रहता है।
क्षेत्र में बादल फटना भी हो सकता है घातक : डा. इरफान ने बताया कि लद्दाख में पहले बारिश नाममात्र होती थी। बीते कुछ वर्षों में स्थिति बदली है, अब वहां बारिश पहले से कहीं ज्यादा होती है। बादल फटने की घटनाएं भी हो रही हैं। इसलिए अगर पैंगोंग क्षेत्र में कोई बड़ा बदला फटता है तो वह भी पैंगोंग झील के फटने और बाढ़ का कारण बन सकता है।
ग्लेशियरों और पैगोंग झील को बचाने को यह करने होंगे उपाय : अगर पैंगांग क्षेत्र के ग्लेशियरों और पैंगांग झील काे बचाना है तो इस पूरे क्षेत्र में जारी गतिविधियों, लोगों की भीड़, मशीनों के इस्तेमाल, बढ़ते कार्बन उत्सर्जन को रोकना होगा। हमें स्थानीय पर्यावरण के मुताबिक ही विकास कार्य करने होंगे। इस पूरे क्षेत्र में यथासंभव पेट्रोल और डीजल का प्रयोग कम करना होगा। ईंधन और ऊर्जा के लिए सौर ऊर्जा और सीएनजी के विकल्प को अपनाना होगा। अन्यथा एक बड़ी आपदा से बचना मुश्किल होगा।