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मिटाने होंगे पराधीनता के अवशेष, मुगल गार्डन का नाम बदलना विदेशी आक्रांताओं के महिमामंडन की भूल सुधारने जैसा

नाम परिवर्तन से जुड़ा राष्ट्रपति का फैसला मोदी सरकार के उस एजेंडे के अनुरूप ही है जिसमें आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान औपनिवेशिक प्रतीकों से मुक्ति पाने का संकल्प लिया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने अगले 25 वर्षों की अवधि को भी ‘अमृत काल’ का नाम दिया है।

By Jagran NewsEdited By: Praveen Prasad SinghPublished: Fri, 03 Feb 2023 12:05 AM (IST)Updated: Fri, 03 Feb 2023 12:05 AM (IST)
मिटाने होंगे पराधीनता के अवशेष, मुगल गार्डन का नाम बदलना विदेशी आक्रांताओं के महिमामंडन की भूल सुधारने जैसा
मुगल गार्डन का नाम बदलकर अमृत उद्यान करने में विदेशी आक्रांताओं के महिमामंडन की भूल भी सुधारी गई है।

ए. सूर्यप्रकाश : राष्ट्रपति भवन स्थित मुगल गार्डन का नाम परिवर्तित कर ‘अमृत उद्यान’ करना कुछ तबकों को उनकी चिर-परिचित आदत के चलते रास नहीं आ रहा है। महत्वपूर्ण स्थानों के नाम बदलने को लेकर सुविधाजनक रवैया अपनाने वाली कांग्रेस के नेता भी इसकी आलोचना में आगे हैं। वामपंथियों को तो भारतीयता की दिशा में बढ़ाए गए किसी भी कदम पर अपच होने लगता है। मोदी-विरोधियों का एक वर्ग तो है ही, जिसे प्रधानमंत्री के किसी भी फैसले की बस आलोचना ही करनी है।

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बहरहाल, नाम परिवर्तन से जुड़ा राष्ट्रपति का फैसला मोदी सरकार के उस एजेंडे के अनुरूप ही है, जिसमें आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान औपनिवेशिक प्रतीकों से मुक्ति पाने का संकल्प लिया गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने अगले 25 वर्षों की अवधि को भी ‘अमृत काल’ का नाम दिया है, जिसमें देश के पुराने गौरव को प्राप्त कर भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। ऐसे में मुगल गार्डन का नाम बदलना औपनिवेशिक काल और उन विदेशी आक्रांताओं के अंतिम अवशेषों को मिटाने के व्यापक एजेंडे का ही हिस्सा है, जिन्होंने न केवल भारतीय सभ्यता पर आघात किए, बल्कि भारतीयों को भी उनकी क्षमताओं एवं शक्ति पर संदेह करने के लिए विवश कर दिया।

मोदी जबसे प्रधानमंत्री बने हैं तबसे कांग्रेस बार-बार स्मृतिलोप की शिकार हुई है। वह अपने ही कृत्यों को भूल गई, जब उसने किंग्सवे को राजपथ, क्वींसवे को जनपथ, कर्जन रोड को कस्तूरबा गांधी मार्ग और योर्क रोड को मोतीलाल नेहरू मार्ग जैसे नाम दिए। इसी प्रकार ड्यूक आफ कनाट के नाम पर पड़े कनाट सर्कस को इंदिरा चौक और कनाट प्लेस को राजीव चौक का नाम दिया। कांग्रेस सरकार में ही क्वीन विक्टोरिया रोड को राजेंद्र प्रसाद रोड, किंग एडवर्ड रोड को मौलाना आजाद रोड और विलिंगडन क्रिसेंट को मदर टेरेसा क्रिसेंट का नाम मिला।

हालांकि नाम परिवर्तन के मामले में कांग्रेस और भाजपा का रवैया विपरीत है। चूंकि कांग्रेस ने जो अधिकांश नाम बदले, उनका नामकरण अधिकांशत: पार्टी दिग्गजों और विशेषकर एक परिवार के नेताओं के नाम पर किया तो इस मामले में उसकी मंशा उतना भरोसा जगाने वाली नहीं। उसकी मंशा औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति के बजाय अपने प्रतीकों के महिमामंडन पर अधिक केंद्रित रही। यहीं दोनों पार्टियों में अंतर दिखता है। वहीं मौजूदा सरकार द्वारा राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ करने और मुगल गार्डन को अमृत उद्यान करने की पहल में उपनिवेशवाद-विरोधी रुख नजर आता है।

नाम परिवर्तन को लेकर जब भारतीयता, महान भारतीय सभ्यता और लोकतंत्र-पंथनिरपेक्षता जैसी संवैधानिक अवधारणाओं की बात आती है तो कांग्रेस बड़ी दुविधा में रही है। यह 2015 में तब भी जाहिर हुआ था जब मोदी सरकार ने राजधानी दिल्ली की औरंगजेब रोड का नाम बदलकर एपीजे अब्दुल कलाम रोड किया तो कांग्रेस नेताओं ने यह आरोप लगाते हुए इस कदम का विरोध किया कि सरकार ने औरंगजेब को मुस्लिम प्रतीक होने के नाते निशाना बनाया। उन्होंने इसे इतिहास से छेड़खानी का मामला भी बताया। इस मुहिम में उन्होंने उस कट्टर औरंगजेब के दुष्कृत्यों को भी अनदेखा किया, जिसने हिंदुओं, सिखों और भारतीय धरा पर जन्मे अन्य धर्मों पर तमाम अत्याचार किए।

उसकी कहानी को संक्षेप में समझ लीजिए। उसने 1669 में तमाम हिंदू मंदिरों एवं शैक्षणिक संस्थानों को ध्वस्त करने का आदेश दिया। इनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर और मथुरा में कृष्ण मंदिर जैसे धर्मस्थल भी शामिल थे। हिंदुओं के प्रति उसकी घृणा की कोई सीमा नहीं थी। मथुरा में मंदिर ध्वस्त कर उसने वहां मस्जिद बनवाई। उसने वहां से मूर्तियां हटवाकर आगरा में एक मस्जिद की सीढ़ी के नीचे दफन करा दीं ताकि मस्जिद में प्रवेश करते समय मुसलमान उनके ऊपर से पैर रखकर घुसें। उसने हिंदुओं पर जजिया कर लगाया। हिंदू मेले प्रतिबंधित किए। हिंदू लिपिकों और लेखाकारों को पद से हटाया। हिंदुओं पर सामान मंगाने के एवज में ऊंचे कर लगाए। मतांतरण के बाद मुस्लिम बनने को तैयार हिंदू कैदियों की सजा घटाई। सिखों के प्रति भी वह उतना ही निर्मम एवं क्रूर था। उसने गुरु तेग बहादुर को कैद किया। कई दिनों तक प्रताड़ना दी। इसके बावजूद गुरु जी इस्लाम स्वीकार करने को तैयार नहीं हुए तो उनका शीश धड़ से अलग करा दिया। फिर उसने गुरु गोबिंद सिंह को निशाना बनाया और उनके चार पुत्रों की हत्या कराई। अपनी उल्लेखनीय कृति ‘द स्टोरी आफ सिविलाइजेशन’ में विल डुरांट ने लिखा है कि करीब आधी शताब्दी के दौरान भारत से इस्लाम को छोड़कर अन्य धर्मों को मिटाने की भरसक कोशिश की गई। औरंगजेब ने अपने मुख्य मातहतों को आदेश दिया कि हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने के साथ ही उनके उपासना स्थलों को वर्जित कर दिया जाए। डुरांट के अनुसार, ‘औरंगजेब की कट्टरता का ही परिणाम था कि सदियों से भारत की कला-संस्कृति को दर्शाने वाले हजारों मंदिर खंडहरों में तब्दील हो गए। आज के भारत को देखकर हम यह कल्पना ही नहीं कर सकते कि अतीत में वह कितना भव्य और सुंदर रहा होगा।’

क्या औरंगजेब में कुछ भी ऐसा था जिस पर एक पंथनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र गर्व कर सके? फिर भी कांग्रेस ने राजधानी की एक प्रमुख सड़क का नामकरण उसके नाम पर किया और जब इसे बदलने की कोशिश हुई तो उसने इस पर नाराजगी जताई। यह इस पार्टी के छद्म-पंथनिरपेक्ष रवैये का सटीक उदाहरण है। अपने इस रुख-रवैये के चलते ही उसने राजधानी की अन्य प्रमुख सड़कों को बाबर, हुमायूं और शाहजहां जैसे विदेशी आक्रांताओं का नाम दिया और यहां के सबसे खूबसूरत बगीचे को मुगल गार्डन की संज्ञा दी। इस दृष्टि से देखा जाए तो अभी इतिहास की गलतियों को दुरुस्त करने का कार्य अपूर्ण है। यदि हम बड़े संघर्ष से मिली अपनी आजादी और असाधारण संविधान के माध्यम से प्राप्त हुए उदारवादी एवं लोकतांत्रिक ढांचे को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो बाबर और अन्य औपनिवेशिक प्रतीकों के मामले में भी वही करना होगा जैसा मोदी सरकार ने औरंगजेब के मामले में किया।

(लेखक लोकतांत्रिक विषयों के जानकार एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)


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